Tuesday, March 19, 2024
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हिंदू लड़की से शादी के लिए धर्मांतरण, जेल से छूटा तो ईद की नमाज, अंत में दफनाया गया दिलशाद हुसैन: गोरखपुर हत्या मामला

उसकी गतिविधियाँ कुल मिला कर मुस्लिम वाली ही थी। भागवत निषाद के बेटे दीपक ने भी बताया कि दिलशाद हुसैन अभी भी मुस्लिम ही था। साथ ही उन्होंने जानकारी दी वो उनके घर वालों को वो काफी परेशान भी कर रहा था। फोन कॉल कर के धमकियाँ देता था और उलटी-सीधी बातें किया करता था।

उत्तर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर की दीवानी अदालत की गेट पर शुक्रवार (21 जनवरी, 2022) की दोपहर को बलात्कार की शिकार हुई एक नाबालिग बच्ची के पिता ने जमानत पर बाहर घूम रहे दिलशाद हुसैन की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके बाद वामपंथी मीडिया में ये चलाया जा रहा है कि दिलशाद ने हिन्दू धर्म अपना कर शादी की थी और ये दो ‘वयस्कों’ के बीच सहमति का मामला है। हालाँकि, बिहार के मुजफ्फपुर जिले के सकरा थाना क्षेत्र के विधिपुर के रहने वाले मृतक दिलशाद हुसैन की सच्चाई कुछ और ही है।

ऑपइंडिया ने इसकी तहकीकात करने के लिए हैदराबाद के उस आर्य समाज मंदिर से संपर्क किया, जहाँ दिलशाद ने लड़की के साथ शादी की थी। सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने इस शादी की तस्वीरें साझा करते हुए दावा किया था कि दिलशाद ने हिन्दू धर्म अपना कर हिन्दू रीति-रिवाज से सारी प्रक्रियाएँ पूरी की। ‘लल्लनटॉप’ और ‘जनज्वार’ जैसे मीडिया संस्थानों ने इस नैरेटिव को आगे बढ़ाया था। तो क्या दिलशाद ने इस्लाम छोड़ कर हिन्दू धर्म अपना लिया था? आइए, सच्चाई बताते हैं।

हैदराबाद के आर्य समाज मंदिर ने बताए दिलशाद के शादी-धर्मांतरण सम्बंधित विवरण

आर्य समाज के मंदिर ने ऑपइंडिया से बात करते हुए बताया कि उन्हें लड़की का ‘उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड’ का इंटरमेडिएट का प्रमाण-पत्र दिया गया था। उत्तर प्रदेश के जौनपुर स्थित ‘वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय’ का स्नातक प्रथम वर्ष (BA) का प्रमाण-पत्र सबमिट किया। उन्होंने ये भी जानकारी दी कि लड़की का जो आधार कार्ड पहचान पत्र के रूप में दिया गया, उसमें उसकी जन्मतिथि 5 दिसंबर, 1998 अंकित है। इस हिसाब से उन्हें बताया गया कि लड़की वयस्क है और 21 वर्ष की है।

वहीं दिलशाद ने शादी के लिए अपने पहचान के रूप में आधार कार्ड और पैन कार्ड सबमिट किए थे। हैदराबाद स्थित आर्य समाज मंदिर की तरफ से बताया गया कि पुलिसकर्मी तेलंगाना आए थे, जहाँ से लड़के और लड़की को लेकर चले गए थे। उन्होंने बताया कि बच्ची से मंदिर में प्यार और विवाह को लेकर प्रश्न किए गए थे (जैसे क्या माता-पिता तुम्हारे सहमत हैं, कैसे प्यार हुआ, तुम सब कहाँ-कैसे मिले) और इस संवाद का वीडियो मंदिर के पास अभी भी उपलब्ध है।

पंडित जी ने बताया कि पूरी पुष्टि करने के बाद ही आर्य समाज मंदिर में विवाह किया जाता है। हालाँकि, उन्होंने कहा कि दिलशाद की हत्या हो गई है और मामले अदालत में चल रहा है, इसीलिए इस वीडियो के वायरल होने के बाद उन्हें भी कानूनी दाँवपेंच का सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने ये भी कहा कि अगर उन्हें समन आता है और पूछताछ की जाती है तो वो इसमें सहयोग के लिए तैयार हैं। उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले दिलशाद उनके पास आया भी था।

वहाँ उन्होंने उसे कहा कि तुमलोगों का विवाद हिन्दू रीति-रिवाजों से हो चुका है और लड़का-लड़की वयस्क होने के साथ-साथ सहमत भी हैं, तो न्यायालय को ये प्रमाण-पत्र दिए जाने चाहिए थे। दिलशाद का धर्मांतरण प्रमाण-पत्र भी बना था। वहीं उन्होंने बताया कि लड़की के पिता भागवत निषाद ने अपनी बेटी का जन्म प्रमाण पत्र सबमिट कर के पुलिस/न्यायालय को बताया कि वो नाबालिग है। उक्त आर्य समाज मंदिर हैदराबाद के ‘चेंगिचेरला’ क्षेत्र में स्थित है।

हैदराबाद के आर्य समाज मंदिर में दिलशाद हुसैन ने फरवरी 2019 में की थी शादी

मंदिर के पुजारी पंडित गणेश कुमार शास्त्री का कहना है कि दिलशाद का हिन्दू धर्म में धर्मांतरण करने के बाद ही शादी की अनुमति दी गई थी। उनका कहना है कि उन्हें जो दस्तावेज सौंपे गए, उसके हिसाब से लड़की बालिग़ है। उन्हें भी अख़बार से ही पता चला कि दिलशाद को भागवत निषाद ने गोली मारी। वो लगभग दो महीने पहले तस्वीरें लेने के लिए मंदिर आया हुआ था। धर्मांतरण वाले सर्टिफिकेट में 13 फरवरी, 2020 की तारीख़ लिखी है। धर्मांतरण के बाद उसका नाम बदल कर ‘दिलराज’ रखा गया था।

उसके पिता का नाम ताहिर हुसैन है। साथ ही उसकी जन्मतिथि 1 जनवरी, 1991 दी गई थी। इस हिसाब से उसकी उम्र 31 वर्ष हुई। इन बातों से साफ़ है कि दिलशाद ने अपना नाम धर्मांतरण के बाद हिन्दू बन कर ‘दिलराज’ रखा तो सही, लेकिन ये सब सिर्फ शादी के लिए किया गया था। क्योंकि, सोशल मीडिया पर उसने अपना नाम ‘दिलशाद हुसैन दिलराज’ रखा हुआ था। उसने अपनी मुस्लिम पहचान को अपने साथ कायम रखा था। आगे हम आपको इसके और भी सबूत दिखाएँगे।

शादी के लिए हिन्दू धर्मांतरण के बावजूद मुस्लिम ही बना हुआ था दिलशाद

गाँव विधिपुर में दिलशाद का अंतिम संस्कार इस्लामी रीति-रिवाज से हुआ था। उसे गाँव के लोगों ने इस बात की पुष्टि की है। सवाल ये है कि अगर वो हिन्दू बन गया था तो उसे जलाया जाता, जबकि ऐसा नहीं हुआ। हिन्दू धर्म में कब्रिस्तान में दफनाने का रिवाज तो है नहीं। अब सवाल उठता है कि क्या दिलशाद हुसैन ने आर्य समाज मंदिर के साथ धोखाधड़ी करते हुए उन्हें लड़की का फर्जी आधार कार्ड सौंपा था? क्योंकि ऑपइंडिया के पास जो आधार कार्ड आया है, उसमें स्पष्ट दिख रहा है कि उसकी जन्मतिथि 21 दिसंबर, 2002 है।

अर्थात, इस हिसाब से अभी उसकी उम्र 19 वर्ष हुई, जबकि शादी के समय उसकी उम्र (13 फरवरी 2020) मात्र 17 वर्ष रही होगी। उसके वयस्क होने में अभी 10 महीने बाकी थे। गोरखपुर केंट थाना के इंस्पेक्टर इस मामले के ‘इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर (IO)’ भी हैं, उन्होंने बताया कि जब दिलशाद हुसैन लड़की को लेकर भागा था, तब वो नाबालिग थी। इस हत्याकांड के मामले में लड़की के पिता भागवत निषाद को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। लड़के के हिन्दू धर्मांतरण के सम्बन्ध में उस समय पुलिस को कोई जानकारी नहीं थी।

गोरखपुर की अदालत ‘बार एसोसिएशन’ के अध्यक्ष भानु प्रताप पांडेय और स्थानीय पत्रकार धर्मेंद्र मिश्रा का कहना है कि दिलशाद हुसैन ने सिर्फ हिन्दू बनने का दिखावा किया था। अर्थात, उनका मानना है कि असल में उसने धर्म-परिवर्तन नहीं किया था और वो मुस्लिम ही बना हुआ था। दिलशाद हुसैन पर ‘यौन अपराध से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO)’ के तहत कार्रवाई की जा रही थी। इसके बावजूद वो अदालत से जमानत लेने में कामयाब रहा था।

जमानत की गुहार लगाते हुए वकील (जिन्होंने उसकी तरफ से वकालतनामा पेश किया) अरविंद मिश्रा का कहना था कि उनका मुवक्किल निर्दोष है और उसे किसी अन्य मंशा से गलत तरीके से फँसाया गया है। साथ ही लड़की के बयान का जिक्र किया गया था कि उसने अपनी सहमति से दिलशाद हुसैन के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाए और वो वयस्क है। लड़की के हवाले से कहा गया था कि वो आरोपित के साथ रहना चाहती है और उसके खिलाफ उसने कोई काम बलपूर्वक नहीं किया है।

वकील ने दिलशाद हुसैन के खिलाफ कोई आपराधिक इतिहास न होने की दलील भी दी थी। जबकि गोरखपुर बार के अध्यक्ष का कहना है कि एक निषाद परिवार के दरवाजे पर ही वो अपनी पंक्चर की दुकान चलाता था और वो नाबालिग लड़की को भगा ले गया। उन्होंने बताया कि वो अपने फेसबुक हैंडल से उलटी-सीधी टिप्पणियाँ करता रहता था, जिससे उद्वेलित होकर लड़की के पिता ने उसकी हत्या की। वहीं ‘दैनिक जागरण’ के कानूनी मामलों के स्थानीय पत्रकार धर्मेंद्र मिश्रा ने बताया कि शादी के लिए ही उसने धर्मांतरण को माध्यम बताया और हिन्दू नाम कर लिया, लेकिन वो मुस्लिम था और उसने हिन्दू धर्म स्वीकार नहीं किया था।

उनका कहना है कि उसकी गतिविधियाँ कुल मिला कर मुस्लिम वाली ही थी। भागवत निषाद के बेटे दीपक ने भी बताया कि दिलशाद हुसैन अभी भी मुस्लिम ही था। साथ ही उन्होंने जानकारी दी वो उनके घर वालों को वो काफी परेशान भी कर रहा था। फोन कॉल कर के धमकियाँ देता था और उलटी-सीधी बातें किया करता था। वहीं दिलशाद हुसैन के वकील शंकर शरण शुक्ला ने कहा कि युवक के परिवार वालों ने बताया है कि उनके बीच चल रहा मुकदमा भी इस रंजिश का कारण है।

उन्होंने कहा कि दिलशाद हुसैन ने हिन्दू धर्म अपना लिया था और फिर शादी की थी, इस साक्ष्य को प्रथम दृष्टया सही मना जाए और उच्च-न्यायालय में अपील दायर करते हुए भी इसे पेश किया गया था। हालाँकि, मौत के बाद दिलशाद हुसैन को इस्लामी तौर-तरीके से ‘सुपुर्द-ए-ख़ाक’ किए जाने के सम्बन्ध में पूछे जाने पर उन्होंने कोई टिप्पणी नहीं की। लड़की के नाबालिग होने के सवाल पर उन्होंने कहा कि ये चीजें सभी पक्ष अपने-अपने हिसाब से बताते हैं और ऐसे मामलों में अभियोजन पक्ष नाबालिग बताता है और डिफेंस बालिग बताता है।

इस्लामी रीति-रिवाज से किया गया ‘सुपुर्द-ए-ख़ाक’: गाँव के लोगों और परिवार ने भी की पुष्टि

वहीं बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित विधिपुर में रहने वाले दिलशाद हुसैन के बचपन के दोस्त ऋतिक पटेल ने कहा कि उसे गाँव के कब्रिस्तान में ही दफनाया गया है। गाँव में ही मुस्लिमों का अलग से कब्रिस्तान भी है। उसे बताया कि हिन्दू होने का कारण हमलोग इस प्रक्रिया में नहीं गए। जबकि मृतक के पिता का कहना है कि उनके बेटे ने बालिग लड़की से शादी की थी, लेकिन उस रंजिश में उसकी हत्या कर दी गई। हत्या की FIR में उन्होंने यही लिखवाया है।

दिलशाद के गाँव की उप मुखिया के पति मोहम्मद रउफ ने भी इस बात की पुष्टि की कि उसे इस्लामी तौर-तरीके से ‘सुपुर्द-ए-ख़ाक’ किया गया है और पूरी प्रक्रिया में वो उसके परिजनों के साथ ही रहे हैं। पुश्तैनी कब्रिस्तान में फातिहा इत्यादि पढ़ कर ये प्रक्रिया पूरी की गई। मौत वाले दिन वो सुबह 7 बजे बाइक से निकला था। कुछ देर बाद उसके वकील ने फोन किया और यहाँ से वो भी परिवार के साथ निकले। उन्होंने आरोप लगाया कि गोरखपुर पुलिस लाश लेकर जल्दी वापस जाने का दबाव बना रही थी।

मोहम्मद रउफ का कहना है कि दोनों परिवारों के घर आमने-सामने थे और लड़का-लड़की बचपन से दोस्त थे, साथ पढ़ते थे। जबकि दिलशाद हुसैन के पिता ताहिर हुसैन का कहना है कि भागवत निषाद उनके बचपन के दोस्त थे और हत्या के बाद लॉकअप में बंद निषाद से उनकी बात भी हुई। उन्होंने बताया कि उन्होंने ही 30 वर्ष पहले पंक्चर की दुकान खोली थी, जिसे अब उनका बेटा दिलशाद चला रहा था। उन्होंने बताया कि गाँव के इमाम मोहम्मद ज़हूर आलम ने इस्लामी प्रक्रिया से उनके बेटे की अंतिम प्रक्रिया पूरी की और फातिहा पढ़ा।

दिलशाद हुसैन का विधिपुर स्थित घर, जहाँ लगी है मक्का-मदीना की तस्वीर

सवाल ये भी उठता है कि जो व्यक्ति पंक्चर की दुकान चलाता है, उसका हैदराबाद से लड़की को लेकर फ्लाइट से आना-जाना, सोशल मीडिया पर लक्जरी लाइफ जीने की तस्वीरें पोस्ट करना और इलाहाबाद उच्च-न्यायालय से एक गंभीर मामले में जमानत भी पा जाना – ये सब सवाल खड़ा करता है कि क्या उसके पीछे किसी का वित्तीय बैक-अप था? क्योंकि उसके अब्बा का कहना है कि वो बेरोजगार हैं और परिवार के पास खेती की जमीन तक नहीं है। उसके गाँव के घर पर अभी भी मक्का-मदीना और काबा की तस्वीर लगी हुई है। जमानत के बाद वो गाँव में ही रह रहा था।

दिलशाद हुसैन का एक भाई हैदराबाद में रहता था और वो वहाँ से उसे रुपए वगैरह भेजते थे। एक ने होटल मैनेजमेंट किया है, लेकिन दुर्घटना के बाद याददाश्त चले जाने के कारण वो घर पर ही रहता था। उसके परिजनों का कहना है कि गाँव में कभी वो लड़की को लेकर नहीं आया। उनका कहना है कि ताहिर हुसैन ने जब लॉकअप में बंद भागवत निषाद से पूछा कि ये तुमने क्या किया, तो उन्होंने जवाब दिया कि और मैं करता भी क्या? मोहम्मद रउफ का कहना है कि जेल से लौट कर आने के बाद उसने ईद की नमाज पढ़ी थी। इससे साफ़ है कि वो हिन्दू नहीं बना था और मुस्लिम ही था।

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राहुल पाण्डेय
राहुल पाण्डेयhttp://www.opindia.com
धर्म और राष्ट्र की रक्षा को जीवन की प्राथमिकता मानते हुए पत्रकारिता के पथ पर अग्रसर एक प्रशिक्षु। सैनिक व किसान परिवार से संबंधित।

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