Friday, March 29, 2024
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लाखों पेड़ लगाने वाली तुलसी गौड़ा से लेकर वैदिक मंत्रों के साथ पेड़ लगाने वाले कल्याण रावत तक: आम लोगों के लिए अब दूर नहीं राष्ट्रपति भवन

कल्याण सिंह रावत ने लड़की की शादी में फलदार पौधे दूल्हा-दुल्हन को दिए जाने का अभियान चलाया। वैदिक मंत्रों के साथ उन्हें रोपा जाता है। इसी तरह 'सीड मदर' के नाम से पहचानी जाने वाली राहीबाई सोमा पोपेरे को सम्मान मिला।

जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है, तब से आम लोगों के लिए पद्म पुरस्कार के लिए राष्ट्रपति भवन के दरवाजे भी खुल गए हैं। ऐसा ही एक नाम तुलसी गौड़ा का भी है। उन्होंने पर्यावरण को बचाने की दिशा में अभूतपूर्व कार्य किया है। कर्नाटक की 72 वर्षीय पर्यावरणविद तुलसी गौड़ा हलक्की नामक वनवासी समुदाय से आती हैं। औपचारिक शिक्षा न मिलने के बावजूद पेड़-पौधों को लेकर उनकी जानकारी विशिष्ट है। उन्हें ‘जंगलों का इनसाइक्लोपीडिया’ कहा जाता है।

जब वो किशोराववस्था में थीं, तभी से उन्होंने पर्यावरण को बचाने की दिशा में कार्य आरंभ कर दिया था और अब तक वो हजारों पेड़-पौधे लगा चुकी हैं। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के साथ वो अस्थायी स्वयंसेवक के रूप में जुड़ी रही हैं। उनकी मेहनत व कार्य को देखते हुए उन्हें स्थायी रूप से जोड़ा गया। उन्होंने अब तक लाखों पौधे लगाए हैं और 10 वर्ष की उम्र से ही इस दिशा में कई और कार्य किए हैं। उनकी माँ एक नर्सरी में काम करती थीं और उनके साथ कार्य करते हुए ही उन्हें इसकी प्रेरणा मिली।

तुलसी गौड़ा इसके अलावा लाखों पेड़-पौधों की देखभाल भी करती हैं। वो खुद भूल चुकी हैं कि उन्हें कितने पौधे लगाए हैं। वो अघासुर नर्सरी में पिछले 50 वर्षों से काम कर रही हैं। वो कई पौधों के बीज जमा करती थीं और उन्हें रोपने के बाद नन्हे पौधों की देखभाल करती थीं। फिर उन्हें जंगलों में रूप देती थीं। ऐसे कर के कई किस्म के पेड़ों के जंगल बने। इलाके के अधिकारी उन्हें ‘बेयरफुट इकोलॉजिस्ट’ कहते हैं। इस उम्र में भी वो नर्सरी जाती हैं और पर्यावरण का काम करती हैं। महज 3 साल की उम्र में ही उनके पिता का निधन हो गया था।

गुजरात की बात करें तो इनमें अपनी रचनाओं के जरिए लोगों को हँसाने वाले शाहबुद्दीन राठौड़ को शिक्षा एवं साहित्य के क्षेत्र में पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया। वापी के उद्यमी एवं गाँधीवादी गफूरभाई बिलखिया को व्यापार एवं उद्यम के क्षेत्र में अपूर्व योगदान के लिए पद्मश्री पुरस्कार दिया गया। आईआईटी गाँधीगर के निदेशक प्रोफेसर सुधीर जैन को साइंस एंड इंजीनियरिंग के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्मश्री अवार्ड से नवाजा गया। अयोध्या के मोहम्मद शरीफ को पद्म पुरस्कार मिला, जो सभी धर्मों के लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करते हैं।

एक राजस्थान के अनिल प्रकाश जोशी भी हैं, जिन्हें पर्यावरण व गाँवों के विकास के लिए ये पद्म भूषण पुरस्कार मिला। कल्याण सिंह रावत ने लड़की की शादी में फलदार पौधे दूल्हा-दुल्हन को दिए जाने का अभियान चलाया। वैदिक मंत्रों के साथ उन्हें रोपा जाता है। इसी तरह ‘सीड मदर’ के नाम से पहचानी जाने वाली राहीबाई सोमा पोपेरे को सम्मान मिला। 57 साल की पोपेरे स्वयं सहायता समूहों के जरिए 50 एकड़ जमीन पर 17 से ज्यादा देशी फसलों की वैज्ञानिक तकनीक से जैविक खेती करती हैं। 

इसी तरह एक साधारण से शर्ट और धोती में कर्नाटक के नारंगी विक्रेता हरेकला हजब्बा जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से पद्मश्री का सम्मान लेने पहुँचे, तो सभी की नजरें उनकी तरफ अनायास ही मुड़ गईं। प्रति दिन मात्र 150 रुपए कमाने वाले 68 वर्ष के फल विक्रेता ने अपने खर्चे से गाँव में एक प्राइमरी स्कूल का निर्माण करवाया है। कई वर्षों पहले एक विदेशी पर्यटक ने उनसे अंग्रेजी में नारंगी का दाम पूछा था। हरेकला हजब्बा को अंग्रेजी नहीं आती थी और इसीलिए उन्हें कुछ समझ में नहीं आया। इस बात ने उन्हें परेशान कर दिया और स्कूल बनाने की ठान ली। उन्हें गरीबी के कारण शिक्षा पाने का अवसर नहीं मिल सका था।

दिव्यांग एस रामकृष्णन व्हीलचेयर से पद्मश्री सम्मान को लेने पहुँचे। उनके योगदान को देखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें हाथ जोड़कर प्रणाम किया। तमिलनाडु के तिरुनेलवेली के रहने वाले रामकृष्णन स्वयं लकवाग्रस्त हैं और चलने में असमर्थ हैं, इसके बावजूद वह दिव्यांग लोगों के पुनर्वास में मदद करने का सराहनीय काम पिछले 40 वर्षों से करते आ रहे हैं। लकवाग्रस्त होने के बाद उन्होंने दिव्यांग लोगों के दर्द को महसूस किया और जाना कि ऐसे लोगों को समाज के मुख्यधारा में बनाए रखने के लिए उनके पुनर्वास की सख्त आवश्यकता है। इसके लिए उन्होंने दिव्यांग लोगों की मदद करने का बीड़ा उठाया

कुल मिला कर देखें तो 2014 से पहले तक ऐसा ऐसा लगता है, जैसे पद्म पुरस्कार अमीरों के लिए बने हैं और राष्ट्रपति भवन में केवल प्रभावशाली लोग ही जा सकते हैं। मोदी सरकार ने इस क्रम को तोड़ दिया है। अब सुदूर गाँवों में काम करने वाले आम लोगों के सामाजिक योगदान को भी पहचान दी जा रही है। समाज के कार्य के लिए जीवन खपाने वालों को राष्ट्रपति पुरस्कार देते हैं और प्रधानमंत्री प्रणाम करते हैं। इससे आम लोगों को भी समाजसेवा की प्रेरणा मिलेगी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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