वामपंथियों के पास एक मशीन होती है जिसमें एक तरफ मूर्ख को डालिए, दूसरी तरफ से वो बकैत बन कर निकलेंगे। और हाँ, वामपंथियों के पास मूर्खों को छोड़ कर और कोई होता भी नहीं। या और गहरे उतरें तो यह कहना भी शास्त्रोचित है कि वामपंथी मूर्ख ही होते हैं। ये बात और है कि उन्हें अंत काल तक अपने मूढ़मति होने का पता नहीं चल पाता।
मूर्ख कई बार ऐसे कार्य भी कर जाते हैं, जो उन्हें लगता है कि ‘गर्दा उड़ा दिया मैंने, मुझे तो नोबेल मिलना चाहिए था’, लेकिन वो बस अपनी मिट्टी पलीद करवाते हैं, एक्सपोज होते हैं, और आम जनता के सामने अपने मूल रूप में प्रस्तुत हो जाते हैं।
स्वरा भास्कर के साथ वही हुआ। नाम में ही ‘स्वर’ है, तो बोलना तो जन्मसिद्ध अधिकार है, आधा नाम भास्कर है, तो भीतर आग भी भरी हुई होगी। ऐसे में वामपंथ का पेट्रोल खुद पर छींट कर भभकने की प्रवृत्ति, और फिर बाप-बाप चिल्ला कर कहना कि ‘आग लगा दिया रे, अरे जला दिया रे’, विक्टिम कार्ड स्वाइप करने में ये अगली पंक्ति में खड़ी होती हैं।
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