भारत सरकार के साथ ट्विटर इंडिया के मतभेद ख़त्म नहीं हो रहे। मतभेद अलग-अलग रूप में लगातार सामने आ रहे हैं। उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू के अकाउंट से ब्लू टिक हटाने से शुरू हुआ खेल केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का अकाउंट लॉक करने तक पहुँच गया है।
बीच में और बहुत सी घटनाएँ हुईं जिन्हें सबने देखा है। ट्विटर द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के पदाधिकारियों के अकाउंट से भी ब्लू टिक हटाया गया। हालाँकि शिकायत के बाद ट्विटर द्वारा उसे बहाल कर दिया गया। पर इस घटना ने हमें ट्विटर की मानसिकता में झाँकने का एक मौका दिया। इसके अलावा हमने देखा कि कैसे भारतीय जनता पार्टी (BJP) के प्रवक्ता संबित पात्रा के ट्ववीट को ट्विटर ने किस तरह से चिन्हित किया और उसे लेकर क्या विवाद हुए। दिल्ली पुलिस द्वारा ट्विटर इंडिया को दिए गए नोटिस का उत्तर भी संतोषजनक नहीं दिखाई दिया।
सरकार द्वारा लाया गया सूचना प्रौद्योगिकी का नया कानून और नियमों के पालन और उससे सम्बंधित विवाद न्यायालय तक पहुँच चुका है। न्यायालय के आदेश पर ट्विटर इंडिया की प्रतिक्रिया हम सबने देखी। नए कानून के तहत ट्विटर इंटरमीडियरी का अपना दर्जा पहले ही खो चुका है। हाल ही में ग़ाजियाबाद केस में कुछ लोगों द्वारा फैलाए गए फेक न्यूज़ और फेक वीडियो को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ट्विटर इंडिया पर किए गए एफआईआर पर भी ट्विटर का जवाब संतोषप्रद नहीं रहा है। केंद्र सरकार के हर संवाद पर उसका अभी तक का रवैया ढुलमुल रहा है।
एक तरफ कंपनी दिल्ली हाई कोर्ट को बताती है कि वह भारत के नए कानून और नियमों का पालन करने के लिए तैयार और दूसरी तरफ यह भी कहती है कि वह सरकार से बातचीत कर रही है। ट्विटर की ये बातें विरोधाभासी हैं। प्रश्न यह उठता है कि किसी देश के कानून पर कोई व्यक्ति या संस्था सरकार से क्या बात करेगी? यहाँ प्रश्न कानून मानने या न मानने का है न कि कानून और उससे सम्बंधित नियमों को लेकर बातचीत करने का। यदि सरकार केवल ट्विटर के लिए भी कोई कानून बनाती तब भी बातचीत के लिए कोई जगह नहीं रहती।
ट्विटर इंडिया और उसके पदाधिकारियों का रवैया न केवल भारत सरकार बल्कि ट्विटर पर उपस्थित आम भारतीय को भी भ्रमित करने वाला दिखाई देता है। यह समझ में नहीं आता कि कंपनी बार-बार अपने बयान क्यों बदल रही है? ‘हम भारतीय कानूनों का पालन करेंगे’ से शुरू होकर ‘हम अमेरिका में बनी कंपनी की नीति के अनुसार ही चलेंगे’ तक पहुँचने में ट्विटर को किसी तरह का विरोधाभास नजर क्यों नहीं आ रहा?
ट्विटर इंडिया के पदाधिकारियों के लिए यह समझना क्या सचमुच मुश्किल है कि वे समय-समय पर क्या कह रहे हैं? ऐसा प्रतीत होता है जैसे कंपनी और उसके पदाधिकारियों के अभी तक के आचरण का मूल इस बात में है कि इधर-उधर की बातें करके सरकार से समय लेना चाहिए। प्रश्न यह उठता है कि एक इतनी बड़ी वैश्विक कंपनी और उसके पदाधिकारी क्या सचमुच इसे समाधान मानते हैं? आखिर ऐसा क्यों है कि सब कुछ समझते हुए भी वे ऐसा कर रहे हैं? उनके मैनेजिंग डायरेक्टर को क्या सचमुच लगता है कि उनके अपने ट्विटर बॉयो से मैनेजिंग डायरेक्टर हटा देना इन विवादों का समाधान हो सकता है? या उन्हें यह लगता है कि पद से हट जाना उन्हें उनकी जिम्मेदारियों से मुक्त कर देगा? मैनेजिंग डायरेक्टर द्वारा यह सब करने के बाद अब खबर यह है कि ट्विटर इंडिया के ग्रीवांस रेड्रेसल ऑफिसर ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है।
ऐसा क्यों है कि इतने बड़े-बड़े कॉर्पोरेट लीडर को ये हरकतें बचकानी नहीं लगती? नए कानूनों के पालन की बात पर ट्विटर पहले ही फ्रीडम ऑफ स्पीच वाला हथकंडा अपनाने का प्रयास कर चुका है जो कानून के पालन को लेकर न्यायालय द्वारा की टिप्पणी की वजह से चल नहीं पाया। यह समझना भी मुश्किल नहीं कि ट्विटर इंडिया और उसके पदाधिकारी सरकार से ‘डील’ करने के ये टेम्पलेट दरअसल हमारी मेनस्ट्रीम मीडिया से उधार ले रहे हैं। उनके फ्रीडम ऑफ स्पीच की रक्षा करने के दावे पर मुझे याद आया कि कैसे एक न्यूज़ चैनल ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) और आयकर विभाग द्वारा चैनल के फिनान्सेस की जाँच के बाद फ्रीडम ऑफ स्पीच को तथाकथित तौर पर कुचले जाने का मुद्दा उठाया था। ऐसे में आश्चर्य नहीं कि ट्विटर इंडिया भी पहले से आजमाया गया एक घिसा-पिटा तरीका अपना रहा है।
ट्विटर का अभी तक का व्यवहार इस प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करने वाले एक आम भारतीय को यह सोचने पर विवश करता है कि आखिर ट्विटर की मंशा क्या है? अमेरिकी चुनाव में ट्विटर की भूमिका किसी से छिपी नहीं है। अमेरिका की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने के आरोप ट्विटर पर लगते रहे हैं। भारत में ट्विटर इंडिया के पदाधिकारियों पर भी पारदर्शिता की कमी का आरोप लगता रहा है। भारत में अभी तक ट्विटर को हेड करने वाले जितने लोग रहे हैं उनपर हमेशा किसी न किसी तरह का आरोप लगता रहा है।
विचारधारा को लेकर इन पदाधिकारियों का आचरण भी किसी से छिपा नहीं है। अपने पहले भारत दौरे पर जैक डॉर्सी ने क्या विवाद किया था वह लोग अभी तक भूले नहीं हैं। ऐसे में ट्विटर इस्तेमाल करने वाला एक आम भारतीय उसे संशय की निगाह से देखता है तो उसकी क्या गलती है? यदि सरकार को यह शंका रहती है कि यह प्लेटफॉर्म अमेरिका की ही तरह भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में किसी तरह का हस्तक्षेप कर सकती है तो इसमें सरकार की क्या गलती है?
अब प्रश्न यह उठता है कि इस गतिरोध का समाधान क्या है? भारत में ट्विटर इस्तेमाल करने वालों की बड़ी संख्या है। सरकारी और निजी सूचना के आदान-प्रदान में एक माध्यम के तौर पर ट्विटर की बड़ी भूमिका रही है, इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता। पर क्या केवल इस बात को आगे रखकर ट्विटर भारतीय कानूनों का पालन न करने का खतरा उठा सकता है? शायद नहीं। ट्विटर को एक जिम्मेदार माध्यम और कंपनी की तरह आचरण करना ही होगा। भारतीय सरकार से हम किसी अन्य छोटे देश की सरकार जैसा आचरण की आशा नहीं रख सकते। अभी तक भारत सरकार का ट्विटर के प्रति रवैया एक जिम्मेदार सरकार का रहा है। ऐसे में ट्विटर को अपने आचरण पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
केंद्र सरकार और उसके मंत्रियों को आए दिन ताने सुनने पड़ते हैं। समर्थकों को इस बात की शिकायत है कि सरकार ट्विटर के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। पर उन्हें यह समझने की आवश्यकता है कि किसी सरकारी कार्रवाई की बात तक आएगी जब ट्विटर भारतीय कानून या नियमों का पालन करने से मना कर देगा। न्यायालय को दिया गया ट्विटर का आधिकारिक बयान यही रहा है कि वह भारतीय कानूनों का पालन करने के लिए तैयार है। ऐसे में वह अपने किसी नियम का हवाला देकर एक मंत्री के ट्विटर अकाउंट के साथ क्या करता है, वह उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना न्यायालय को दिया गया उसका बयान। वैसे भी जब मामला न्यायालय में है तब एक जिम्मेदार सरकार का न्यायिक प्रक्रिया के तहत न्यायालय की कार्रवाई का इंतज़ार ही तर्कसंगत है।