Saturday, April 27, 2024
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साल भर सेक्युलरिज्म, दीवाली पर प्रदूषण: सरकारी आदेश जो ‘छठ’ पर निकलता है, ‘ईद’ पर फाइलों में बंद रहता है

सार्वजनिक पूजा मंडलों में प्रतिमा चार फुट तक की रहीं तभी मुंबई में कानून का राज वापस आ पाएगा और अनिल देशमुख, परमबीर सिंह और सचिन वाजे के कारण सरकार की जो किरकिरी हुई है उसका असर तभी कम होगा।

हिन्दू त्योहारों के दिन आने वाले हैं। हिन्दुओं के दिन नहीं आते इसलिए वे त्योहारों के दिनों से ही संतुष्ट हो लेते हैं। बस लफड़ा तब होता है जब इस संतुष्टि में भी सरकारी तंत्र, यंत्र घुसाकर प्रदूषण का लेवल नापना शुरू कर देता हैं। फिर नाप तौल कर कहते हैं- हमारे शहर का एयर क्वालिटी इंडेक्स बहुत गिर गया है। शहर चाहे जितना घटिया रहे पर उसका एयर क्वालिटी इंडेक्स चकाचक होना चाहिए। इधर इंडेक्स देखकर पढ़े-लिखे हिंदू को ‘गिल्टी’ निकल आती है और वो गिल्ट के मारे मरने की तैयारी करने में भी नहीं हिचकता।

फिर क्या, सोशल मीडिया की शरण में पहुँच रोना शुरू कर देता है; देखिए, ग्लोबल वार्मिंग आज सबसे विकट समस्या है। मेरी बात पर विश्वास न हो तो ग्रेटा थन्बर्ग पर विश्वास कर लो। उधर फेलो हिंदू पोस्ट को लाइक कर ग्रेटा के यूट्यूब वीडियो में डूब जाता है और उसके ‘हाउ डेयर यू’ पर मन ही मन पसेरी भर ताली पीट देता है।

सरकारी विभाग का हाथ बँटाने दिल्ली के मुख्यमंत्री खुद उतर पड़े हैं। बाकी कामों में वे गिर लेते हैं पर ऐसे कामों में उतर पड़ते हैं। वे दो दिनों से ट्वीट कर बता रहे हैं कि प्रदूषण के विभिन्न मानकों की वैल्यू कैसे बढ़ गई है। सरकार की वैल्यू चाहे जो हो, हिंदू त्योहारों में प्रदूषण की वैल्यू बढ़ जाए तो उन्हें चैन मिलता है और वे मन ही मन गाते हैं- अब जा के आया मेरे बेचैन दिल को करार।


हिंदू त्योहारों पर पर्यावरण विभाग के साथ नेता भी चौकन्ने हो जाते हैं और साल भर सेकुलरिज्म को लेकर चिंतित नेताजी इन दिनों प्रदूषण को लेकर चिंतित रहते हैं। राजनीतिक दल और उनके नेताओं की चिंता यात्रा कुवार महीने में शुरू होकर कार्तिक में ख़त्म हो लेती है, क्योंकि आगे क्रिसमस खड़ा रहता है।

आदेश निकलने लगे हैं। सरकारी आदेशों ने भी निकलने के लिए यही मौसम चुन रखा है। सर्दी अधिक नहीं रहती कि ठिठुरना पड़े और खाँसी-जुकाम की नौबत आए। लिहाजा वे नंग-धड़ंग निकल लेते हैं। निकल पड़े हैं खुली सड़क पर अपना सीना ताने टाइप। क्या कल्लोगे?

एक आदेश दिल्ली सरकार की फाइल से निकल कर विचरण कर रहा है। बता रहा है कि इस बार छठ पूजा सामान्य तरीके से नहीं मनाने देगा। अब पूजा है तो मनाने देने का सवाल ही पैदा नहीं होता। ईद वगैरह की बात और है। तब ये आदेश न तो फाइल से निकलता और न ही कुछ कहता। पर यहाँ छठ पूजा की बात है लिहाजा किसी ‘छठे’ हुए अफसर ने आदेश को बोल दिया है; जाओ और पूजा पर रोक लगाकर आ जाओ। निश्चिन्त होकर जाओ, कोई तुम्हारा कुछ नहीं कर सकता।

बीएमसी ने दुर्गा पूजा के लिए प्रतिमा की लंबाई-चौड़ाई निर्धारित कर दी है। घर में पूजा करनी है तो दो फुट और सार्वजनिक पूजा में चार फुट से अधिक नहीं। मानों घरों में स्थापित प्रतिमा दो फुट तक की रही तो वायरस हाथ जोड़कर खड़ा हो जाएगा और कहेगा; हे जगत जननी दुर्गे, महिषासुर की छाती से त्रिशूल निकाल हमारी छाती में भोंक दें तो हमें मोक्ष मिले। तभी हम पृथ्वी छोड़ सीधा स्वर्ग जाएँगे और यहाँ वापस नहीं आएँगे। ये हिंदू लोग बड़ी-बड़ी प्रतिमाएँ बनाते हैं। तभी तो हमें गुस्से में चीन से निकलना पड़ा। छोटी प्रतिमाएँ बनाते तो हमें ये तांडव करने की जरूरत क्यों पड़ती?

सार्वजनिक पूजा मंडलों में प्रतिमा चार फुट तक की रही तभी मुंबई में कानून का राज वापस आ पाएगा और अनिल देशमुख, परमबीर सिंह और सचिन वाजे के कारण सरकार की जो किरकिरी हुई है उसका असर तभी कम होगा।

पश्चिम बंगाल सरकार ने फरमान सुना दिया है कि दुर्गा पूजा पंडालों में पिछले वर्ष के सारे प्रतिबंध इस वर्ष भी यथावत लागू होंगे। क्यों न हो? हिंदुओं पर प्रतिबंध न हो तो संविधान के प्री-एम्बल में जिस सेकुलरिज्म की रक्षा की शपथ ली गई है, वो बेचारा छटपटाता रहेगा। उसकी रक्षा का हर प्रयास हिंदुओं पर प्रतिबंध से शुरू होकर उसी में ख़त्म होता है।

वैसे उसकी रक्षा भले हिंदुओं पर प्रतिबंध से होती है पर उसे मजबूती चुनावी हिंसा से ही मिलती है। दरअसल चुनावी हिंसा से लोकतंत्र को जीवन मिलता है। कोरोना का भी मन बहलना चाहिए। ईद के दौरान इसलिए बाहर नहीं आ पाया था, क्योंकि उन दिनों सरकारी दल के कैडर हिंसा और बलात्कार करने सड़कों पर उतर आए थे और कोरोना को उनसे डर लग रहा था। इसलिए जिद करके बैठ गया था कि मनाएगा तो केवल दुर्गा पूजा, इसके लिए चाहे जो हो जाए।

पर्यावरण विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने घोषणा कर दी है कि लोगों को रावण का पुतला जलाने नहीं दिया जाएगा। ये भी सही है। पुतले की रक्षा होनी ही चाहिए। एक दो ही तो बचे हैं। एक रावण और दूसरा… मेरा मतलब पुतलों की रक्षा आवश्यक है। वैसे भी कई बार पुतलों में पटाखे भर दिए जाते हैं और यह जरूरी है कि इस मौसम में दिल्ली में बहने वाली हवा की गुणवत्ता की टेस्टिंग होनी चाहिए। प्रदूषण का नहीं पता पर हिंदू कंट्रोल में रहता है।

दीपावली के पटाखों से कुत्तों को तकलीफ होती है, ऐसा सोशल मीडिया पर जोर-शोर के साथ बताया जाता है। कुत्ते सेंसिटिव होते हैं और तकलीफ के लिए हमेशा तैयार भी।

अब इन फरमानों का कितना हिस्सा कोरोना महामारी के चलते हैं और कितना अन्य कारणों से, यह पिछले वर्ष की भाँति ही इस वर्ष के लिए भी शोध का विषय होगा।

एक अफसर बता रहे थे कि; पर्यावरण और प्रदूषण की बात हिंदू त्योहारों के मौके पर इसलिए की जाती हैं क्योंकि हिंदू त्योहारों की परम्पराएँ पंद्रह सौ सालों से अधिक पुरानी हैं और पर्यावरण विभाग वाले इन त्योहारों और पंद्रह वर्ष से अधिक पुरानी गाड़ियों को एक जैसा समझते हैं। उन्हें किसी प्रखर बाबू ने बता दिया है कि भारतवर्ष में सारा प्रदूषण इन्हीं दोनों की वजह से फैलता है। अफसर बेचारा मंत्र पढ़े जा रहा है; पंद्रह सालों से अधिक पुरानी गाड़ी नहीं रहने देंगे और पंद्रह सौ सालों से अधिक पुराने त्यौहार!

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