दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए बुधवार (5 फरवरी 2025) को मतदान होना है। दिल्ली इस दिन अपने अगले पाँच वर्ष का भविष्य तय कर देगी। सत्ताधारी आम आदमी पार्टी इस बार जहाँ हैट्रिक के प्रयास में है, तो वहीं भाजपा बीते ढाई दशक का सूखा खत्म करना चाहती है। कॉन्ग्रेस भी पुनर्जीवित होने का प्रयास कर रही है। मुख्य लड़ाई में AAP और भाजपा ही है। कौन अगले पाँच साल दिल्ली पर राज करेगा, इस बात का फैसला 8 फरवरी को हो जाएगा।
2025 का चुनाव पिछले 2 चुनाव से काफी अलग है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो, AAP को पहली बार करारी हार का डर सता रहा है। उसे 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में एकतरफा वोट और जीत मिली थी। भाजपा के लाख प्रयासों के बावजूद जनता ने केजरीवाल को ऐतिहासिक बहुमत दोनों बार दिया। हालाँकि, 2025 आते-आते उसकी छवि मटियामेट हो गई है। AAP इस बार 10 वर्षों की एंटी इनकम्बेंसी से जूझ रही है।
नए तरह की राजनीति का वादा करके आई AAP से अब लोगों को जवाब देते हुए नहीं बन रहा है। दिल्ली के विकास के संबंध में किए गए पुराने वादों का जिन्न भी अब उसे सता रहा है। AAP के साथ समस्या केवल 10 साल की एंटी इनकम्बेंसी की ही नहीं है। पहली बार ऐसा है कि वह चेहरे की समस्या से भी जूझ रही है। शराब घोटाले के चलते पूर्व मुख्यमंत्री केजरीवाल की लोकप्रियता धड़ाम हो चुकी है। उनके जेल जाने से जनता के मन में उनके प्रति विश्वास नहीं रहा है।
वहीं दूसरी तरफ आतिशी को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बावजूद वह जनता में लोकप्रियता नहीं हासिल कर सकी हैं। कम समय मिला और पार्टी द्वारा उनको अस्थायी मुख्यमंत्री बताया जाना और नुकसान पहुँचा चुका है। ऐसे में वह इस मोर्चे पर भी काफी कमजोर है। इन सबके अलावा पार्टी संगठन भी कमजोर हुआ है। चुनाव से ठीक पहले 8 विधायकों ने पार्टी छोड़ी है। इसके पहले भी कई विधायक और बड़े मंत्री पार्टी को अलविदा कह चुके हैं। ऐसे में उसके पास संगठन चलाने वाले लोगों की भी कमी है।
दूसरी तरफ भाजपा ने इस बार AAP को घेर रखा है। शीशमहल से लेकर यमुना की सफाई और शराब घोटाला तक, AAP बैकफुट पर है। दिल्ली में भाजपा ने इस बार अपने उम्मीदवार भी काफी खोजबीन के बाद उतारे हैं। उसका मेन फोकस इस बार जमीन पर काम करना रहा है। चुनाव के बढ़ने के साथ ही वह एक-एक करके पत्ते खोलती गई है। चाहे वह ₹2500/महीने महिलाओं के लिए ऐलान हो या फिर झुग्गी बस्ती वालों को फ़्लैट का वादा, इन सब से उसे जमीन पर फायदा होने की उम्मीद है।
RSS और बाकी संगठनों का जमीनी ढाँचा उसे डोर टू डोर कैम्पेन में सहायता कर रहा है। केंद्र सरकार के बजट से भी दिल्ली में बड़ा वोट भाजपा की तरफ मुड़ सकता है। भाजपा ने ₹12 लाख तक इनकम टैक्स में छूट को बढ़ा कर मिडल क्लास को राहत दी है। दिल्ली में यह वोट लगभग 40% है, यदि यह भाजपा की तरफ आया तो उसे उन विधानसभा पर बढ़त मिलेगी जहाँ मिडल क्लास वोटर अधिक हैं। इन सबके अलावा AAP के कई नेताओं के भाजपा में आने से भी फर्क पड़ा है।
AAP की परेशानी केवल भाजपा ही नहीं है। उसको इस बार लोकसभा चुनाव में सहयोगी रही कॉन्ग्रेस से भी टक्कर मिल रही है। 2015 और 2020 में उसे खुला रास्ता देने वाली कॉन्ग्रेस इस बार उस पर हमलावर है। डी फैक्टो कॉन्ग्रेस मुखिया राहुल गाँधी तक सीधे हमले केजरीवाल पर कर रहे हैं। कॉन्ग्रेस चाहती है कि दिल्ली में उससे छिटका मुस्लिम और दलित वोट उसके पास वापस आए। इसके लिए सिर्फ दिल्ली ही नहीं बल्कि पंजाब के भी कॉन्ग्रेस नेताओं ने जोर लगाया है।
यह सब फैक्टर मिल कर AAP को चुनाव में पीछे कर सकते हैं। अगर जमीनी गुस्से को भाजपा भुना ले जाती है, तो उसे इन चुनाव में सफलता देखने को मिल सकती है। दिल्ली में AAP हारती है, तो यह केजरीवाल और पार्टी के लिए सबसे बड़ा झटका होगा। तब पार्टी के पास केवल पंजाब ही बचेगा, जहाँ दूसरे संकट मंडरा रहे हैं। कॉन्ग्रेस से रिश्ते खराब करना उसकी मुश्किलें और भी बढ़ा देगा।