अयोध्या में राम मंदिर को लेकर सैकड़ों साल से चल रहे विवाद का न्यायपूर्ण तरीके से पटाक्षेप हुआ था। 5 अगस्त को अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर का भूमिपूजन हुआ। लेकिन, अपने आराध्य रामलला की छत मिलने का जश्न मना रहे हिन्दुओं को देख कर वामपंथी और इस्लामी कट्टरपंथियों के गठजोड़ ने जहर उगलना शुरू कर दिया है।
ये वही लोग थे जो कभी कहते थे कि सुप्रीम कोर्ट सर्वोपरि है और वो उसका फैसला तहेदिल से मानेंगे। अब वही कट्टरपंथी क़ानून, सरकार और जनभावनाओं- तीनों के विपरीत जाकर अपना असली चेहरा दिखा रहे हैं।
सबसे पहले चर्चा करते हैं ऑल इंडिया इमाम एसोसिएशन के अध्यक्ष मौलाना मोहम्मद साजिद रशीदी के बयान की, जिन्होंने धमकाया है कि मस्जिद बनाने के लिए मंदिर को तोड़ा जा सकता है। उन्होंने इस्लाम के हवाले से कहा कि एक मस्जिद हमेशा मस्जिद ही रहेगी और उसे तोड़ा नहीं जा सकता है। उन्होंने कहा कि मस्जिद को ध्वस्त कर मंदिर बनाया गया, अब मंदिर ध्वस्त कर मस्जिद फिर से बनेगा।
इसी तरह ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के बयान को देखिए। उसने कहा कि बाबरी मस्जिद हमेशा थी और रहेगी। बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का ही विरोध कर दिया और इसे बहुसंख्यक तुष्टिकरण का नाम देकर दमनकारी, अन्यायपूर्ण और शर्मनाक बताया। उसने इसके लिए तुर्की के हागिया सोफिया का उदाहरण दिया, जो पहले एक चर्च हुआ करता था, लेकिन उसे हाल ही में मस्जिद में तब्दील कर दिया गया।
इसी तरह उत्तर प्रदेश की संभल लोकसभा सीट से सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने कहा है कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद थी, है और हमेशा रहेगी। उन्होंने तो यहाँ तक कहा कि पीएम मोदी ने ताकत के बलबूते संग-ए-बुनियाद (आधारशिला) रखी और सुप्रीम कोर्ट से अपने पक्ष में फैसला करा लिया। उन्होंने इसे जम्हूरियत का क़त्ल करार दिया और ये भी नहीं देखा कि वे जो कर रहे हैं, उसकी बुनियाद क्या है।
#BabriMasjid thi, hai aur rahegi inshallah #BabriZindaHai pic.twitter.com/RIhWyUjcYT
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) August 5, 2020
इन तीनों के बयानों से साफ़ झलकता है कि इनके लिए क़ानून वही है, जो इनका इस्लाम कहता है। इनके लिए आदर्श वही है, जैसा कट्टर इस्लामी मुल्कों में होता है। आज़ादी के बाद से ही अल्पसंख्यकों के लिए दसियों योजनाओं से लेकर हज यात्रा तक की व्यवस्था की गई, लेकिन इतिहास में हुई एक गलती को क्या सुधारा गया, इनका देश की न्यायपालिका और विधायिका तो दूर, देश से ही भरोसा उठ गया।
हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी के बयानों को ही देख लीजिए। हर मंच पर भारत और इसके संविधान के प्रति आस्था जताने वाला ये व्यक्ति अब कहता है कि बाबरी था, है और रहेगा। बाबरी मस्जिद की तस्वीरें शेयर कर ‘इंशाअल्लाह’ लिखने वाले ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की धज्जियाँ उड़ा दी। अगर सैकड़ों साल चले न्यायपूर्ण प्रक्रिया पर इन्हें भरोसा नहीं है तो फिर फैसला मक्का और मदीना में बैठे लोग करेंगे?
इस्लामी कट्टरपंथियों और तुष्टिकरण का खेल रच रहे नेताओं की ये कोशिश रहती है कि वो हिन्दुओं को ज्यादा से ज्यादा विभाजित कर सकें ताकि राम और रामायण के प्रति श्रद्धा रखने वालों की संख्या कम हो। यही कारण है कि गुलाम नबी आज़ाद संसद में ‘हिन्दुओं और दलितों’ को अलग-अलग बोल कर दोनों को अलग दिखाते हैं। फिर मॉब लिंचिंग के नैरेटिव में दोनों को पीड़ित दिखाया जाता है।
लेकिन, दलित हितों के लिए ज़मीन पर लड़ने संगठनों को ये सच्चाई पता है। तभी तो दलित पॉजिटिव मूवमेंट नामक संगठन ने गृह मंत्रालय और समाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय के समक्ष AIMPLB के खिलाफ शिकायत दर्ज कराते हुए कहा है कि संस्था ने हिन्दू दलितों के आराध्य भगवान श्रीराम के बारे में गलतबयानी कर के भावनाओं को ठेस पहुँचाई है। एससी-एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज कराया गया है।
देश के कोने-कोने से लोकतान्त्रिक तरीके से साफ़ किए जा रहे हिंसक वामपंथियों के नेता भी आजकल सुप्रीम कोर्ट के जजों और केंद्र में बैठी सरकार से ज्यादा संविधान विशेषज्ञ बन कर बैठे हुए हैं। सीताराम येचुरी ने तो राम मंदिर भूमिपूजन को ही संविधान के विरुद्ध बता दिया। साथ ही उन्होंने दूरदर्शन द्वारा इसके लाइव टेलीकास्ट पर भी विरोध जताया। उन्होंने इसे राजनीतिक और शर्मनाक बता दिया।
सीताराम येचुरी सहित सभी वामपंथियों को जानना चाहिए कि दूरदर्शन को इस कार्यक्रम के प्रसारण से काफी फायदा हुआ है, क्योंकि भारत ही नहीं बल्कि पश्चिमी देशों से लेकर पाकिस्तान तक में इसे लाइव देखा गया। 200 से भी अधिक टीवी चैनलों में भारत में इसे दिखाया। क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सिर्फ इसीलिए पलट दिया जाए, क्योंकि किसी ने किसी मजहब की किताब में कुछ और लिखा है?
असल में ये सब एक चाल के तहत किया जाता है। सीएए से भले ही कोई नुकसान न हो लेकिन इसके विरुद्ध लोगों को भड़का कर सरकार को इतना डरा दो कि वो एनआरसी लेकर आए ही नहीं। इसी तरह राम मंदिर को लेकर इतना हंगामा मचा दो कि अब हिन्दू मथुरा और काशी में इस्लामी आक्रांताओं द्वारा हुए अतिक्रमण पर कुछ बोले ही नहीं। शायद इन्हें पता नहीं कि इनके गीदड़-भभकी के दिन अब लद गए हैं।
वहीं सुप्रीम कोर्ट में बाबरी मस्जिद पक्ष के वकील रहे जफरयाब जिलानी का कहना है कि खास समुदाय वाले नहीं मानते कि अयोध्या में राम मंदिर था और सुप्रीम कोर्ट ने भी माना था कि वहाँ मस्जिद थी जिसे गिराना आपराधिक कृत्य था। उनका कहना है कि इसके बावजूद फैसला हिन्दुओं के पक्ष में सुना दिया गया। यही टीवी चैनल पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करने की बातें करते थे। अब क्या हुआ?
Islam says a mosque will always be a mosque. It can’t be broken to build something else. We believe it was, and always will be a mosque. Mosque wasn’t built after demolishing temple but now maybe temple will be demolished to build mosque: Sajid Rashidi, Pres, All India Imam Assn pic.twitter.com/DzlbYQ3qdm
— ANI (@ANI) August 6, 2020
असल में इन लोगों का इतिहास ही 16वीं शताब्दी से शुरू होता है। उससे पहले क्या था, इससे किसी को मतलब नहीं है। लेकिन दिसंबर 1992 से पहले वहाँ क्या था, इसका रट्टा उन्हें रोज मारना है। इनके इतिहास में गुरु नानक की अयोध्या यात्रा, वहाँ से मिले हिन्दू प्रतीक चिह्न, रामायण में दिया गया भूगोल, रामचरितमानस में सरयू की महिमा और भारत के सांस्कृतिक इतिहास का कथन- इन सबसे कुछ मतलब है ही नहीं।
इस मामले में कॉन्ग्रेस पार्टी अबकी कुछ अलग रुख अपना रही है। मध्य प्रदेश में जहाँ पूर्ण सीएम दिग्विजय सिंह अशुभ मुहूर्त का हवाला देकर हर एक बुरी घटना को राम मंदिर से ही जोड़ रहे हैं, वहीं एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ भूमिपूजन का स्वागत करते हुए हनुमान चालीसा का पाठ आयोजित करवाया।
प्रियंका गाँधी अपने बयान में राम और रामायण का गुणगान करते नहीं थक रही हैं तो राहुल गाँधी भी अब राम-राम जप रहे हैं। अब पार्टी के भीतर इसका विरोध शुरू हो गया है। शायद कॉन्ग्रेस को ये पता नहीं है कि दिखावे की आस्था और सचमुच की श्रद्धा में बहुत फ़र्क़ होता है और जनता इसे बखूबी समझती है।
अंत में ये याद रखने की ज़रूरत है कि जो सचमुच राम मंदिर के लिए लड़े थे, उन्होंने अपना कार्य पूर्ण किया। जिन्होंने हमेशा राम के अस्तित्व को नकारते हुए हिन्दुओं की भावनाओं का मजाक उड़ाया, आज उन्हें भी राम-राम करने को मजबूर होना पड़ रहा है।