‘सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं’- राजस्थान में जब सियासी ड्रामा शुरू हुआ था, तब सचिन पायलट का यही ट्वीट सामने आया था। ये राजस्थान का ड्रामा कम और कॉन्ग्रेस का अंदरूनी कलह ज्यादा था। अब स्थिति ये है कि ‘सत्य’ परेशान भी रहा, पराजित भी हो गया और अब वापस जमीन पर धड़ाम से गिरा भी है। पायलट के प्लेन ने वहीं लैंडिंग कर दी, जहाँ से वो उड़ा था। एक ‘यू-टर्न’ के बाद सब शांत होता दिख रहा है।
मंगलवार (अगस्त 10, 2020) को सचिन पायलट इस पूरे विवाद के बीच पहली बार मीडिया से मुखातिब हुए और उन्होंने कहा कि पार्टी से उनके द्वारा किसी भी पद की माँग नहीं की गई है। बकौल पायलट, उन्होंने तो सिर्फ सरकार के कामकाज के तौर-तरीके और पार्टी कार्यकर्ताओं के सम्मान का मुद्दा उठाया था। 45 विधायकों में से एक पर राष्ट्रद्रोह तक का केस लगाए जाने और फिर इस 25 दिनों के सियासी चकल्लास के बाद आरोप वापस लिए जाने वाली प्रक्रिया पर भी उन्होंने नाराजगी जताई।
सचिन पायलट ने याद किया कि कैसे उनके ख़िलाफ़ कई मामले दर्ज किए गए। उनका कहना है कि ये सब नहीं होना चाहिए था। पायलट ने ये भी कहा कि उन्होंने तो बस कुछ मुद्दे उठाए थे। अब बदले की राजनीति नहीं होनी चाहिए। साथ ही कॉन्ग्रेस के प्रति श्रद्धा जताते हुए वो ये भी कहते नज़र आए कि वो पार्टी द्वारा दी गई जिम्मेदारियों का निर्वहन करेंगे। वो ये कहने से भी नहीं चूके कि उन्होंने कभी पार्टी, इसकी विचारधारा और नेतृत्व को लेकर कुछ भी गलत नहीं कहा।
यहाँ पर सवाल उठता है कि अगर सब कुछ इतना ही सीधा और सपाट था तो वो गए ही क्यों थे? एक तरफ तो वो कहते हैं कि सरकार के कामकाज की प्रक्रिया को लेकर वो नाराज़ थे और दूसरी तरफ वो ये भी कहते हैं कि सरकार के ख़िलाफ़ तो उन्होंने कुछ कहा ही नहीं। जब कहने की बात आती है तो गहलोत ने पायलट को निकम्मा, नकारा कर धोखेबाज से लेकर और न जाने क्या-क्या कहा। अब यही सचिन पायलट कह रहे हैं कि अशोक गहलोत तो सम्मानित और बुजुर्ग हैं।
I thank Smt Sonia Ji, @RahulGandhi Ji, @priyankagandhi Ji & @INCIndia leaders for noting & addressing our grievances.I stand firm in my belief & will continue working for a better India, to deliver on promises made to the people of Rajasthan & protect democratic values we cherish pic.twitter.com/kzS4Qi1rnm
— Sachin Pilot (@SachinPilot) August 10, 2020
कॉन्ग्रेस में ड्रामा चल रहा था और मीडिया के साथ-साथ पार्टी के कई नेता इसे अमित शाह और भाजपा की चाल बताते रहे। मीडिया ने इसे ऐसे पेश किया जैसे भाजपा ही अशोक गहलोत की सरकार गिराने की कोशिश कर रही हो। अगर ऐसा था तो फिर सचिन पायलट अब वापस मान गए हैं तो फिर वो या उनकी पार्टी खुलासा क्यों नहीं करती कि इसमें भाजपा का क्या रोल था? अब सब एक हैं तो बता दें।
कॉन्ग्रेस में सोनिया गाँधी की बैठक में घमासान हुआ। ‘बुजुर्ग बनाम युवा’ की लड़ाई छिड़ गई। कुछ नेताओं द्वारा मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार पर ठिकरा फोड़ने के बाद ये बहस सोशल मीडिया पर आ गई और शशि थरूर व आनंद शर्मा जैसे नेताओं ने आगे आकर यूपीए के 10 साल के कार्यकाल का समर्थन करते हुए ‘आलोचक नेताओं’ से नाराज़गी जताई। अगर कोई मुद्दा ही नहीं था तो कलह ट्विटर पर क्यों हुआ?
अब मीडिया का एक बड़ा वर्ग ये प्रचारित करने में सक्रिय हो गया है कि कैसे राहुल गाँधी ने चुटकियों में इस मसले को सुलझा लिया। कैसे उन्होंने अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय देते हुए सचिन पायलट को मनाम लिया और राजस्थान की सरकार गिराने से बचा कर भाजपा की साजिश को नाकाम कर दिया। राहुल गाँधी को हर महीने नए तरीके से लॉन्च किया जाता है। सचिन पायलट के बहाने भी उन्हें एक बार और लॉन्च किया जा रहा है।
कॉन्ग्रेस के अंदरूनी रायते भाजपा के लिए झटका कैसे?
अब आते हैं उन लोगों पर, जो इसे भाजपा के लिए झटका बता रहे हैं। भाजपा को झटका, ‘ऑपेरशन लोटस’ नाकाम, अमित शाह से बड़े चाणक्य निकले अशोक गहलोत, राहुल ने भाजपा की चाल पर फेरा पानी और विधायकों को नहीं खरीद पाई भाजपा- मीडिया में ऐसी बातें चल रही हैं। उन लोगों से एक ही सवाल है कि इस पूरे मामले में भाजपा थी कहाँ? सिर्फ कॉन्ग्रेस नेताओं ने बयानों के अलावा? फिर भाजपा को झटका कैसे?
ये स्वाभाविक है कि अगर विरोधी पार्टी कमजोर होगी तो किसी भी दल को फायदा होगा। लेकिन, वहाँ चल रहे ड्रामे से भाजपा को झटका कैसे लग गया? कॉन्ग्रेस का संकट टला नहीं है। विधायकों को मनाने का दौर जारी है। गहलोत कैम्प के ही विधायकों की नाराजगी की खबर आ रही है, जो ये कह रहे हैं कि उनकी सरकार रहते हुए भी उन्हें बन्दी की तरह रहना पड़ रहा है। रेगिस्तानों में विधायकों को भटकाया जा रहा है।
जैसलमेर के सूर्यागढ़ में ठहरे विधायक मायूस हैं। उन्होंने रणदीप सुरजेवाला के सामने ही पूछा है कि जिन लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए सरकार को संकट में डाला, सरकार के काम-काज को प्रभावित किया और जिनके कारण ये पूरा ड्रामा चला, अब पार्टी उनके लिए ही बाहें फैलाए खड़ी हैं। परिवार से दूर रहे विधायक नाराज़ हैं कि वो वैसे के वैसे ही रह गए और जिनके कारण ये सब हुआ उनका स्वागत किया जा रहा है।
5 साल तक सरकार चलेगी। सरकार बहुमत में पहले थी, आज भी है, कल भी रहेगी।
— Ashok Gehlot (@ashokgehlot51) August 11, 2020
:Talked to media in Jaipur today pic.twitter.com/UOLSNXVtRL
विधायकों के मान-मनव्वल का एक दौर फिर से चलेगा। एक बगावत टलने के बाद कई छोटे-छोटे बगावतों से पार्टी को नुकसान होने की पूरी संभावना है। कॉन्ग्रेस के जिन विधायकों को उम्मीद थी, झटका उन्हें लगा है, भाजपा को नहीं! अब सचिन पायलट अपने गुट के विधायकों को मंत्री बनवाएँगे, तो इन विधायकों के अरमान धरे के धरे रह जाएँगे। इन सबसे कॉन्ग्रेस को ही निपटना है, भाजपा को नहीं!
ये झटका किसे है? सचिन पायलट अब राजस्थान में कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष नहीं रहे। न ही वो अब राज्य के उप-मुख्यमंत्री हैं। महीने भर उनका अपमान हुआ। कॉन्ग्रेस नेताओं ने उन्हें भला-बुरा कहा। अगर उन्हें प्रदेश अध्यक्ष और डिप्टी सीएम का पद वापस मिल भी जाता है तो फिर उन्हें क्या फायदा हुआ? साथ में उनका जो अपमान किया गया, वो भी तो रह गया। कल अगर उनकी कोई नाराज़गी होती है तो क्या उन्हें वैसा ही समर्थन मिलेगा, जैसा अभी मिला था?
हो सकता है कि इसी बीच गैंगस्टर विकास दुबे, भारत-चीन गतिरोध और सुशांत सिंह राजपूत के मुद्दे मीडिया में ऐसे छाए हुए थे कि एक समय के बाद सचिन पायलट को फुटेज मिलनी बन्द हो गई थी और उन्होंने सोच-विचार में इतना समय ले लिया कि अब उनके पास विकल्प ही नहीं बचे थे। भाजपा ने उनके मन-मुताबिक पद देने से मना कर दिया हो, ये भी हो सकता है। इस स्थिति में भी तो झटका सचिन पायलट को ही है।