हिंदू और मोदी घृणा से लथपथ मरहूम शायर आहत सॉरी राहत इंदौरी ने लिखा है;
सरहदों पर बहुत तनाव है क्या
कुछ पता तो करो चुनाव है क्या
सरहदों का तो पता नहीं। पर राजनीति के कालनेमि पिछले कुछ समय में जिस तरीके से अपने-अपने दड़बों से निकलकर हिंदुओं की धार्मिक स्थलों की यात्रा कर रहे हैं, जिस तरह से हर मामले में हिंदुओं के देवी-देवताओं को स्मरण कर रहे हैं, उससे ऐसा प्रतीत होता है कि राजनीतिक तौर पर देश के सबसे प्रभावशाली प्रदेश, उत्तर प्रदेश में चुनाव का मौसम आ गया है।
राजनीतिक कालनेमि के करतूतों पर गौर करने से पहले असली वाले कालनेमि को याद कर लीजिए। रावण के एक मायावी राक्षस का नाम था कालनेमि। प्रसंग है कि राम-रावण युद्ध के दौरान मेघनाद के शक्तिबाण से लक्ष्मण मूर्च्छित हो जाते हैं। सुषेन वैद्य उपचार के लिए संजीवनी बूटी की जरूरत बताते हैं। इसे लाने की जिम्मेदारी हनुमान जी को दी जाती है। जब रावण को यह खबर मिलती है तो वह हनुमान जी को झाँसा देने के लिए कालनेमि को भेजता है। कालनेमि साधु के वेश में राम नाम के जाप और अपनी माया से हनुमान जी को रोकने की कोशिश भी करता है।
रावण के कालनेमि से अब राजनीति की ओर लौटते हैं। कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी बुधवार (15 सितंबर 2019) को ऑल इंडिया महिला कॉन्ग्रेस की स्थापना दिवस पर बोल रहे थे। इस दौरान बीजेपी को हिंदू विरोधी पार्टी बताते हुए उस पर देवी ‘लक्ष्मी’ और ‘दुर्गा’ की शक्ति को 10-15 लोगों की गिरवी बनाने का आरोप लगाया। हाल के दिनों में यह दूसरा मौका था जब राहुल की जुबान पर हिंदुओं की अराध्य देवियों का नाम था। इससे पहले जम्मू के त्रिकूटा नगर में कॉन्ग्रेसियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि बीजेपी के कारण दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती माँ की शक्तियाँ घटी हैं। अपने इस संबोधन की शुरुआत भी उन्होंने ‘जय माता दी’ से की थी। इस संबोधन से पहले वे माता वैष्णो देवी का दर्शन भी कर आए थे।
कुल मिलाकर राहुल गाँधी एक बार फिर अपनी उस राजनीति को आगे बढ़ाते दिख रहे हैं जो 2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले देखने को मिली थी। तब वे न केवल मंदिर-मंदिर प्रदक्षिणा कर रहे थे, बल्कि उनके जनेऊधारी होने की बात भी सामने आई थी। बकायदा उनके गोत्र और ब्राह्मण होने का ऐलान हुआ था। उल्लेखनीय यह भी है कि गुजरात की तरह ही योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश बीजेपी के एक ऐसे गढ़ के तौर पर तब्दील होता दिख रहा है जो फिलहाल विपक्ष के लिए अभेद्य नजर आ रहा है।
लिहाजा विपक्षी दलों में खुद को हिंदू हितैषी साबित कर मतदाताओं को झाँसा देने की होड़ सी लगी है। कुछ-कुछ वैसे ही जैसे हनुमान जी को झाँसा देने में कालनेमि लगा था। यहाँ यह याद करना जरूरी है कि राहुल गाँधी जिस नेहरू के नाम पर राजनीति करते हैं वे अयोध्या से रामलला को बेदखल करवाना चाहते थे। वे जिस कॉन्ग्रेस पार्टी के नेता हैं उसके पाले-पोसे इतिहासकारों ने राम के अस्तित्व को नकारा। यहाँ तक कि कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार सुप्रीम कोर्ट में राम के काल्पनिक होने का हवाला तक देकर आई। उसकी सरकार के प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह ने इस देश के संसाधनों पर बहुसंख्यक हिंदुओं के अधिकार को खारिज करते हुए अल्पसंख्यकों का हक बताया था। कुछ महीने पहले जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए देश भर में निधि जुटाने का काम चल रहा था तब भी कॉन्ग्रेस नेता विष वमन से परहेज नहीं कर रहे थे। ऐसे में यह सवाल तो उठता है कि अचानक से कॉन्ग्रेस को हिंदू और उनकी आस्था इतनी प्रिय क्यों हो गई? क्या उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से इसका कोई रिश्ता है?
ऐसा नहीं है कि चोला केवल राहुल ने बदला है। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया जो कभी रामजन्मभूमि स्थल पर यूनिवर्सिटी बनाने के पैरोकार थे, वे भी इस मौसम में अयोध्या हो आए हैं। उनके साथी राज्यसभा सांसद संजय सिंह कुछ समय पहले तक रामजन्मभूमि ट्रस्ट पर जमीन घोटाले का आरोप लगा रहे थे और अब गले में रामनामी तथा माथे पर चंदन लेप खुद को रामभक्त साबित करने में लगे हैं। अचानक से सुर तो उस सपा के भी बदले हैं जिसकी सरकार रहते अयोध्या को कार सेवकों के खून से रंग दिया गया था। जिसके नेता मुलायम सिंह यादव अपने इस कारनामे के लिए खुद को ‘मुल्ला मुलायम’ कहे जाने पर फूले नहीं समाते थे। जिस बसपा के कांशीराम अयोध्या में शौचालय बनवाने की बात करते थे, आज उस पार्टी की राजनीति के केंद्र में भी अयोध्या है। राम हैं।
पर राजनीति के कालनेमि शायद यह भूल गए हैं कि रावण का वह मायावी राक्षस भी तमाम छल-प्रपंच के बावजूद अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाया था। चोले बदलने वाले तब राम के हनुमान को उनके ध्येय से भटका न सके थे। लोकतंत्र के हनुमान (वोटर) भी इन मौसमी चोलों को अब खूब पहचानते हैं।