Sunday, September 1, 2024
Homeविचारसामाजिक मुद्दे'रेप के मजे लो, आवारगी करेंगी': माननीयो भले आपकी सोच कमर के नीचे हो,...

‘रेप के मजे लो, आवारगी करेंगी’: माननीयो भले आपकी सोच कमर के नीचे हो, लड़कियों की जिंदगी केवल कमर के नीचे नहीं

किसी के लिए यदि रेप सिर्फ अगर सेक्स है तो ये मानसिकता उसको नीच दर्जे का इंसान बनाती हैं। सेक्स का सरोकार आपसी सहमति से होता है। जबकि, रेप का मतलब है महिला की इच्छा के विरुद्ध उसके साथ संबंध बनाना और पीड़ा देना।

देखिए एक कहावत है- जब रेप होना ही है तो लेट जाइए और मजे लीजिए। आपकी इस वक्त वही स्थिति है।

कॉन्ग्रेस के छह बार के विधायक रमेश कुमार ने जो कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं, जब सदन में यह बात गुरुवार को (16 दिसंबर 2021) कही तो उनके साथियों के चेहरे पर एक शर्मनाक हँसी थी। विवाद बढ़ा तो रमेश कुमार ने माफी भी माँग ली। पर गौर करने की बात यह है कि रेप पीड़िताओं का कॉन्ग्रेस विधायक ने ऐसा मजाक पहली बार नहीं उड़ाया है। इसी कर्नाटक विधानसभा में जब रमेश कुमार स्पीकर की कुर्सी पर बैठते थे तो एक बार खुद की तुलना भी रेप पीड़िता से कर डाली थी।

जैसे रेप, रेप न हुआ। कोई मजे की चीज हो गई। सहमित से सेक्स का आनंद लेना हो गया।

रमेश कुमार पहले माननीय नहीं है जिनके लिए यह मजाक का विषय रहा हो। अतीत में माननीयों की करतूतों पर नजर डालने से पहले जरा ताजा-ताजा आए बयानों पर गौर करिए । समाजवादी पार्टी के सांसद हैं शफीकुर्रहमान बर्क। उनका मानना है कि लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र बढ़ाकर 18 साल से 21 करने का मतलब है कि लड़कियों को आवारगी का ज्यादा मौका देना। उनकी ही पार्टी के नेता हैं अबू आजमी। उनके अनुसार इससे लड़कियॉं गलत रास्ते पर जाएँगी। एसपी के ही सांसद टी हसन का मानना है कि शादी की न्यूनतम उम्र बढ़ गई तो लड़कियॉं बच्चे पैदा करने की मशीन नहीं रह पाएँगी। रमेश कुमार हो या बर्क, आजमी हो हसन इनके बिगड़े बोल ताजातरीन उदाहरण हैं।

जरा पीछे जाएँ तो मुलायम सिंह यादव याद आते हैं और याद आता है उनका सार्वजनिक तौर पर बलात्कार के आरोपितों का यह कहकर बचाव करना कि लड़के हैं गलती हो जाती है। मुलायम सिंह उसी पार्टी के मुखिया रहे हैं जिस पार्टी की सांसद जया बच्चन हैं जो आज रमेश कुमार के बयान पर विलाप कर रहीं थी। लेकिन मुलायम सिंह के इस बयान के बावजूद उन्होंने साइकिल की सवारी नहीं छोड़ी थी। इसी सपा के तोता राम यादव ने तो कह दिया था कि बलात्कार जैसी कोई चीज ही नहीं होती।

ऐसा भी नहीं है कि यह बीमारी केवल सपा तक सीमित है। शरद यादव ने तो यहॉं तक कह दिया था, ‘वोट की इज्जत आपकी बेटी की इज्जत से ज्यादा बड़ी होती है। अगर बेटी की इज्जत गई तो सिर्फ गाँव और मोहल्ले की इज्जत जाएगी लेकिन अगर वोट एक बार बिक गया तो देश और सूबे की इज्जत चली जाएगी।’ ममता बनर्जी की टीएमसी के चिरंजीत चक्रवर्ती ने एक बार कहा था, ‘रेप के लिए कुछ हद तक लड़कियाँ भी जिम्मेदार हैं। उनकी स्कर्ट दिन पर दिन छोटी होती जा रही है।

यानी, आप राजनीति के जिस खाने में नजर दौड़ाएँगे ऐसे लोग आपको बेशर्म ठहाके लगाते मिल जाएँगे जिनके लिए महिला होना भोग की वस्तु जैसा होना है।। बच्चे पैदा करने की मशीन होना। जैसे उनके अपने कोई सपने न हो। सेक्स से इतर उनका कोई अस्तित्व न हो। वे सामथ्र्यहीन हों। उनकी पहचान मानव योनि से न होकर केवल योनि मात्र से हो।

जब बड़े राजनेता कहते हैं कि लड़कियों की इज्जत देश की इज्जत से बड़ी नहीं होती और रेप का कारण उनकी छोटी स्कर्ट होती है। तो इस बात में कोई हैरानी नहीं है कि आखिर हमारे यहाँ हर 15-16 मिनट पर एक लड़की का रेप होने वाले आँकड़े क्यों मौजूद हैं। क्यों दिन पर दिन रेप की घटनाएँ बढ़ती जा रही है और क्यों इन अपराधी मानसिकता से निपटने की जगह लड़कियों को घर में बैठने को कहा जा रहा है।

देश के नेताजी द्वारा जो हाल में जो सुझाव दिया गया है…. क्या इसके अर्थ जानते हैं आप? शायद नहीं… इसलिए इन बातों को बर्दाश्त करने की क्षमता आपमें हो सकती है। मगर एक लड़की में नहीं। लड़की को सहमति से किया गया सेक्स और रेप में फर्क जाहिर होता है। इसलिए उसमें इतनी हिम्मत नहीं होती कि कोई भी पुरुष उसे चंद सेकेंड की हवस मिटाने के लिए उठाए और वो भी किसी बुरे परिणाम से खुद को सुरक्षित रखने के लिए एक सपाट जगह पर जाकर लेट जाए और हरी झंडी देकर बलात्कारी को न्योता दे।

ऐसी किसी भी घटना के समय में लड़की की मनोस्थिति उस पर हावी होती है जो उससे विरोध करवाती है। जो ये नहीं मान पाती कि आखिर उसके शरीर को कोई पुरूष कैसे जबरदस्ती हाथ लगा सकता है। उसे डर भी होता है कि कहीं उसे उठाने के बाद उसके साथ निर्भया जैसी बर्बरता न हो, गुनाह छिपाने के लिए उसे प्रिया जैसे जलाया न जाए।

किसी के लिए यदि रेप सिर्फ अगर सेक्स है तो ये मानसिकता उसको नीच दर्जे का इंसान बनाती हैं। सेक्स का सरोकार आपसी सहमति से होता है। जबकि, रेप का मतलब है महिला की इच्छा के विरुद्ध उसके साथ संबंध बनाना और पीड़ा देना। छोटी बच्ची के साथ या 2 साल की मासूम और 6 माह की नवजात के सथा ‘सेक्स’ किसी परिस्थिति में नहीं होता , जो घटनाएँ आप पढ़ते हैं वो रेप की श्रेणी में आती हैं।

अगर आज आप रेप आरोपितों को सजा देने से ज्यादा लड़कियों को ये सिखा रहे हैं कि उन्हें ऐसी विकट स्थिति को कैसे इंजॉय करना है तो गलती फिर अपराधियों की कम मानी जाएगी और उस जनमानस की ज्यादा मानी जाएगी जिन्होंने ऐसी सोच वाले व्यक्तियों को जनप्रतिनिधि बनने का मौका दिया और इस लायक बनाया कि वो एक बड़े तबके बीच अपने घृणित विचारों की उलटी कर सकें और अपराधियों के पनपने को जायज बता सकें।

आप जानते हैं हाल में सामने आई NCRB की रिपोर्ट क्या बताती है। इस रिपोर्ट का कहना है कि सिर्फ 2020 में औसतन 77 रेप के मामले प्रतिदिन आए थे और साल भर में महिलाओं के विरुद्ध किए गए अपराध के मामले 3 लाख से ज्यादा थे। केवल पति और रिश्तेदारों की क्रूरता सहने वाली महिलाओं की लिस्ट 1 लाख 11 हजार पार थी और 62 हजार किडनैपिंग के मामले आए थे। 105 केस एसिड अटैक के हुए थे और 6,966 मौतें दहेज के कारण हुई थी।

है न कितनी हैरानी वाली बात? एक देश जहाँ की राजनीति में लगातार महिलाओं की सुरक्षा की बातें हैं, उन्हें आगे बढ़ाने प्रोत्साहित करने का जिक्र है, वहाँ ऐसे आँकड़े!! हैरान मत होइए…क्योंकि ये सिर्फ 2020 की बात नहीं है। 2020 से पूर्व भी ऐसी घटनाओं ने देश को शर्मिंदा किया था और 2021 में भी ये सिलसिला जारी रहा। हाँ! आँकड़े किसी साल ऊपर नीचे होते रहते हैं। मगर, ये कहना कि महिलाओं की स्थिति सुधरी या फिर वो सुरक्षित हुई केवल बेवकूफी है। वो भी उस समय जब आपने ऐसे लोगों को सहने की क्षमता अपने अंदर बना ली हो जो बताएँ कि रेप को एंजॉय किया जाता है और उसका विरोध करना कितना गलत है।

इस मानसिकता के दुष्परिणाम कितने गहरे होते हैं इसका अंदाजा आप एक कॉन्ग्रेस सांसद हिबी ईडन की बीवी के बयान से लगा सकते हैं जिन्होंने एक महिला होने के बाद किस्मत को रेप से जोड़ दिया था और कहा था कि किस्मत रेप जैसी होती है आप इसे रोक नहीं सकते, तो इसे इंजॉय करने की कोशिश कीजिए… आज तमाम माननीयों की सोच भले ही ये साबित करे कि लड़कियों की जिंदगी केवल कमर के नीेचे और घुटनों से ऊपर तक होती है। लेकिन लड़कियों के सपने, उनकी उड़ान, उनका विरोध, इस बात को कभी सिद्ध नहीं होने देगा कि इस घटिया सोच में रत्ती भर सच्चाई है!

निर्भया केस इसका सबसे बड़ा सबूत है। जिसके अपराधियों ने खुद बताया था कि कैसे उन्होंने पीड़िता के साथ अमानवीयता की क्योंकि वह आत्मसमर्पण नहीं कर रही थी। अगर वह ऐसा करती तो शायद वो लोग इतनी क्रूरता नहीं करते। आप सोचिए, क्या ये विचार निर्भया के जहन में नहीं आया होगा जब उसने रॉड उठाते उस हैवान को देखा होगा। क्या उसे नहीं पता चला होगा कि उसका आत्मसमर्पण उसे बर्बरता से बचा सकता है। उसने ऐसा नहीं किया या वो नहीं कर पाई क्योंकि उसकी मनोस्थिति उसे या किसी पीड़िता को इतना तार्किक होने की इजाजत नहीं देती कि वो ऐसी परिस्थिति में राजनेताओं की तरह सोच पाए।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

जनता की समस्याएँ सुन रहे थे गिरिराज सिंह, AAP पार्षद शहज़ादुम्मा सैफी ने कर दिया हमला: दाढ़ी-टोपी का नाम ले बोले केंद्रीय मंत्री –...

शहजादुम्मा मूल रूप से बेगूसराय के लखमिनिया का रहने वाला है। वह आम आदमी पार्टी का कार्यकर्ता है जो वर्तमान में लखमिनिया से वार्ड पार्षद भी है।

चुनाव आयोग ने मानी बिश्नोई समाज की माँग, आगे बढ़ाई मतदान और काउंटिंग की तारीखें: जानिए क्यों राजस्थान में हर वर्ष जमा होते हैं...

बिश्नोई समाज के लोग हर वर्ष गुरु जम्भेश्वर को याद करते हुए आसोज अमावस्या मनाते है। राजस्थान के बीकानेर में वार्षिक उत्सव में भाग लेते हैं।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -