Saturday, July 27, 2024
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अजमल कसाब ने आत्महत्या की थी… Google यही दिखा रहा है: भारत-विरोधी प्रोपेगेंडा के पीछे किन-किन का हाथ

ओसामा बिन लादेन की मौत का कारण गूगल ने सही बताया है कि वो 'Gunshot Wounds' से मरा। फिर भारत के साथ भेदभाव क्यों? हिन्दू-विरोधी वेबसाइट विकिपीडिया इसके पीछे का बड़ा कारण है।

आतंकी अजमल कसाब कैसे मरा था? देश में किसी निरक्षर व्यक्ति से भी पूछा जाए तो वो बता देगा कि उसे फाँसी की सज़ा दी गई थी। जिन्हें अधिकतर चीजों के जवाब नहीं पता, उन्हें भी पता है कि उसे पुणे के यरवदा जेल में फाँसी पर लटकाया गया था लेकिन जिसे सारे जवाब पता होते हैं, उस गूगल को लगता है कि अजमल कसाब ने आत्महत्या की थी। आखिर गूगल द्वारा ऐसा दिखाए जाने का कारण क्या है?

अजमल कसाब ने आत्महत्या की थी: गूगल निष्कर्ष

जब आप गूगल पर ‘Ajmal Kasab Death’ लिख कर सर्च करेंगे तो आप ‘मृत्यु का कारण’ वाले सेक्शन में पाएँगे कि ‘आत्महत्या’ लिखा हुआ है। लेकिन अजमल कसाब ने आत्महत्या तो नहीं ही की थी। उसके साथ मुंबई हमलों के अन्य आतंकी तो मारे गए लेकिन वो पकड़ा गया। क़रीब 4 साल तक वो जेल में रहा और सुनवाई चलती रही। उसके बाद उसने मर्सी पेटिशन भी डाला, जिसे राष्ट्रपति द्वारा नकार दिया गया था।

इसके बाद उसे फाँसी दी गई। गूगल सामान्यतः विकिपीडिया के निष्कर्षों को अपने मुख्य पृष्ठ पर दिखाता है लेकिन विकिपीडिया एक हिन्दू-विरोधी वेबसाइट है, जिस पर कट्टर इस्लामी प्रोपेगंडा फैलाया जाता रहा है, इस बारे में हमने कई लेख प्रकाशित किए हैं। तो क्या गूगल आँख बंद कर के विकिपीडिया पर भरोसा करता है? तो फिर ‘आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस’ की बड़ी-बड़ी बातों का क्या?

गूगल के हिसाब से अजमल कसाब की मौत का कारण आत्महत्या है

विकिपीडिया एक पक्षपाती वेबसाइट है क्योंकि दिल्ली में हुए दंगों को उसने हिन्दू-विरोधी मानने से इनकार कर दिया। अब जब दंगे का मुख्य आरोपित ताहिर हुसैन खुद पुलिस के समक्ष स्वीकार कर रहा है कि वो ‘हिन्दुओं को सबक सिखाना चाहता था’ और अंकित शर्मा, दिलबर नेगी सहित तमाम हिन्दुओं को जिस तरह बेरहमी से मजहबी नारेबाजी करते हुए मारा गया, सब कुछ प्रत्यक्ष था। फिर भी विकिपीडिया ने इस्लामी प्रोपेगंडा क्यों फैलाया?

अगर गूगल इसी राह पर चल रहा है और विकिपीडिया के निष्कर्षों को सीधा पहले पन्ने पर जगह देकर दिखा रहा है तो उसे कम से कम इसकी छानबीन तो कर ही लेनी चाहिए न कि वो सही है भी या नहीं? कल को कोई शातिर अजमल कसाब को फ़क़ीर या इमाम बता देगा तो क्या गूगल उसे मोईनुद्दीन चिश्ती और हाजी अली के साथ एक श्रेणी में रख देगा? ऐसा नहीं होना चाहिए। तो फिर उसकी मौत को ‘आत्महत्या’ कैसे दिखाया गया?

फिर 4 सालों तक चली क़ानूनी प्रक्रिया का क्या?

अजमल कसाब 4 साल तक जेल में बिरयानी खाता रहा था और अपनी मनपसंद किताबें मँगा कर पढ़ता रहा था। उस दौरान पूरी कानूनी प्रक्रिया के तहत सुनवाई हुई। उसके सारे सीसीटीवी फुटेज अदालत के समक्ष रखे गए। फ़रवरी 25, 2009 को पुलिस ने उसके खिलाफ 11,000 पेज की चार्जशीट दायर की। कसाब ने समय काटने के लिए तो चार्जशीट की उर्दू कॉपी तक की माँग कर दी थी, जो मराठी व अंग्रेजी में था।

गवाहों ने अजमल कसाब की पहचान की। डिफेंस के लिए उसे वकील भी दिया गया। अब्बास काज़मी ने अदालत में उसका पक्ष रखा। ट्रायल कोर्ट ने उसे फाँसी की सज़ा सुनाई। वो हाईकोर्ट गया। बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस फैसले को बरकरार रखा। वो सुप्रीम कोर्ट गया। अगस्त 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने भी सज़ा बरकरार रखा। फिर राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इसे खारिज किया, तब जाकर उसे सज़ा मिली।

क़ानून के हिसाब से सब कुछ हुआ। 166 लोगों के हत्यारे आतंकी को इतनी छूट किस देश में मिलती है कि गूगल क़ानून-सम्मत सज़ा को ‘आत्महत्या’ कह रहा है? जनभावनाएँ तो ये थीं कि उसे पकड़े जाने के अगले ही दिन फाँसी की सज़ा दे दी जाए लेकिन सजा मिली कानून के हिसाब से।

फिर भी गूगल को लगता है कि उसने जेल में आत्महत्या कर ली। ऐसे में कल को किसी बेहूदा वेबसाइट ने लिख दिया कि ओसामा बिन लादेन PUBG खेलते हुए मारा गया था तो क्या गूगल उसे मान लेगा? या फिर बगदादी भी ज़रूर दिवाली के पटाखों के कारण मर गया होगा? कम से कम मानवाधिकार वाले तो खुश हो जाएँगे कि उन्हें हिन्दू त्यौहार के खिलाफ एक मुद्दा मिल गया। गूगल इसे भी पहले पन्ने पर दिखा दे।

तकनीकी बहाने बना कर बच नहीं सकता गूगल

अब थोड़ा समझ लेते हैं कि आखिर गूगल के पहले पृष्ठ पर सर्च निष्कर्ष आते कैसे हैं। गूगल के पास जिन वेबसाइटों के साइटमैप होते हैं, उनके रिजल्ट्स वो आसानी से शो कर सकता है। जिस वेबसाइट का नेविगेशन लिंक जितना अच्छा होगा, वो गूगल सर्च में उतना ऊपर आता है। उन साइटों के रिजल्ट्स दिखाने में ज़्यादा दिक्कत आती है जो यूआरएल पाथ या यूआरएल नाम की जगह यूआरएल पैरामीटर का इस्तेमाल करते हैं।

सवाल यह उठता है कि कसाब जैसे आतंकी की कानूनी सजा को आत्महत्या दिखाना किस नैरेटिव को समर्पित है? क्या विकिपीडिया के एक या दो लेख को, भारतीय मीडिया पोर्टलों पर दी गई तमाम रिपोर्ट्स से बेहतर मानना गूगल की गलती नहीं? अगर ये मशीनी तरीकों और अल्गोरिदम के हवाले से भी रिजल्ट आती है तो भी क्या मीडिया पोर्टल/साइट्स को नीचे दिखाना (जो सच्ची व सही जानकारी दे रहे हैं) और विकीपीडिया या किसी अन्य पोर्टल के झूठ को सबसे ऊपर दिखाना अनुचित नहीं?

पत्रकारिता की दुनिया में अक्सर उसकी सूचना को पुष्ट माना जाता है जो ग्राउंड पर हो। घटनास्थल के जो जितना नजदीक है, उसकी सूचना को उतना भरोसेमंद माना जाता है। कहीं की खबर के सही विवरण के लिए स्थानीय मीडिया और उसके पत्रकारों की बातो का भरोसा किया जाता है। क्या भारत की किसी घटना के लिए विदेशी विकिपीडिया गूगल के लिए ज्यादा भरोसेमंद है, भले ही वो गलत ही क्यों न दिखाए?

एक कारण और संभव है कि इस्लामी कट्टरपंथी या आतंकी सरगना ऐसे आतंकियों को ‘फिदायीन’ की संज्ञा देते हैं, इसीलिए गूगल कीवर्ड्स के हेरफेर के कारण इसे आत्महत्या बता रहा हो क्योंकि फिदायीन का अर्थ वो लोग होते हैं, जो खुद की जान को किसी मिशन के लिए समर्पित करने के लिए लगे होते हैं। आतंकियों का मिशन क्या है, ये छिपा नहीं है। आजकल ‘जिहाद’ और ‘फिदायीन’ शब्दों का इस्तेमाल क्यों होता है, ये छिपा नहीं है।

अजमल कसाब ने आत्महत्या की तो 11000 पन्नों की चार्जशीट में क्या है?

तो क्या गूगल ने फिदायीन का मतलब ये समझ लिया कि उसने सच में किसी ‘कॉज’ के लिए खुद की जान ‘समर्पित’ कर दी? वो ‘कॉज’ क्या था? 166 लोगों का खून कर के किसी देश को एक तरह से 3 दिन तक बंधक बनाए रखना? फिर तो कोई सनकी वेबसाइट आतंकी अफजल गुरु को सप्तऋषियों में से एक घोषित कर देगा और गूगल उसके निष्कर्षों को पहले पेज पर दिखाने लगेगा क्योंकि वो अफजल ‘गुरु’ है।

गूगल को 11,000 पेज की चार्जशीट पढ़ कर देखना चाहिए कि अजमल कसाब ने किया क्या था, वो क्या था और उसे क्यों फाँसी दी गई। अगर आतंकी खुद को ‘फिदायीन’ बोलें और सुरक्षाबलों के हाथों मारे जाएँ तो इसका मतलब ये नहीं कि उन्होंने आत्महत्या की है, इसका मतलब है कि वो ‘कुत्ते की मौत’ मारे गए। फिर कसाब को तो 4 साल खिला-पिला कर सज़ा सुनाई गई। एक-एक प्रक्रिया और उससे जुडी खबरें इंटरनेट पर हैं।

वहीं ओसामा बिन लादेन की मौत का कारण गूगल ने सही बताया है कि वो ‘Gunshot Wounds’ से मरा। फिर भारत के साथ भेदभाव क्यों? कसाब की मौत पर कोई सस्पेंस रहता और अलग-अलग वर्जन्स होते तो शायद कन्फ्यूजन की बात होती लेकिन जहाँ एक-एक छोटी-छोटी बातें भी लगातार खबरें बन रही थी, गूगल झूठ क्यों दिखा रहा है? अब देखना ये है कि वो कब तक इसे बदलता है।

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अनुपम कुमार सिंह
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भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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