दरगाह की बड़ी डेग में बनने वाले ‘मीठे राइस’ और चर्च में दी जाने वाली ‘लाल वाइन’ तो सोशल मीडिया पर अक्सर लोगों का ध्यान खींचते हैं लेकिन क्या कभी आपको इन जगहों पर मंदिर में बँटने वाले भंडारों के बारे में सुनने को मिलता है? अगर हाँ, तो क्या आप इन भंडारों के महत्व को समझ पाते हैं या आपके लिए ‘भूखे का पेट’ भरने का मतलब केवल ‘फीड द हंग्री’ को समझने तक ही सीमित है? पूरी बात का मतलब क्या है, ये नीचे आपको पढ़ने पर समझ आता जाएगा।
हाल में मध्यप्रदेश के बागेश्वर धाम में 252 करोड़ रुपए की लागत से 2.37 लाख वर्ग फीट में बनने वाले कैंसर हॉस्पिटल का शिलान्यास हुआ। इसके कार्यक्रम में मुख्य रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल हुए और यहाँ उन्होंने हमारे धार्मिक स्थलों को लेकर जो कहा वो सुनने के साथ समझने योग्य है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था- “साथियों, आज कल नेताओं का एक दल ऐसा है, जो धर्म का मजाक उड़ाने में और लोगों को तोड़ने में लगा है। वे हिंदुओं की आस्था से नफरत करने वाले लोग हैं। ये हमारी मान्यताओं, संस्कृति और मंदिरों पर हमला करते हैं और हमारे पर्व और परंपराओं को गाली देते हैं…हमारे मंदिर पूजा के केंद्र होने के साथ ही सामाजिक चेतना के भी केंद्र रहे हैं। हमारे ऋषियों ने आयुर्वेद और योग का विज्ञान दिया… दूसरों की सेवा करना और दूसरों के दुख दूर करना ही धर्म है।”
🚨 PM Modi's BIG ATTACK on Anti-Nationals – praises Baba Bageshwar 🔥
— Megh Updates 🚨™ (@MeghUpdates) February 23, 2025
"Those who mock religion, ridicule it, & work to divide people are often supported by 'Foreign' forces."
"People who have fallen into the mentality of slavery keep attacking our faith, beliefs & temples, our… pic.twitter.com/nJVSEPTKpi
इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नें पंडित धीरेंद्र शास्त्री को ‘मेरा छोटा भाई’ बताते हुए कहा ता- “मेरे छोटे भाई धीरेंद्र शास्त्री लोगों को जागरूक करते रहते हैं। एकता का मंत्र भी देते हैं। अब उन्होंने एक और संकल्प लिया है- इस कैंसर हॉस्पिटल के निर्माण की जिम्मेदारी। यानी अब बागेश्वर धाम में भजन, भोजन और निरोगी जीवन तीनों का आर्शीवाद मिलेगा। इस कार्य के लिए मैं धीरेंद्र शास्त्री का अभिनंदन करता हूँ।”
हर ओर बागेश्वर धाम के अस्पताल की चर्चा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस शुभ अवसर पर पहुँचने से पूरे देश की नजर बागेश्वर धाम में खुले कैंसर अस्पताल पर गई। मीडिया में हर जगह इसकी चर्चा हुई। बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री जिन्हें सोशल मीडिया पर ‘कट्टर धार्मिक नेता’ के तौर पर पेश किया जाता है, उनकी इस पहल को हर समुदाय ने सराहा… लेकिन ऐसा नहीं है कि पंडित धीरेंद्र शास्त्री या किसी हिंदू संस्थान द्वारा समाज की भलाई के लिए सोचा गया कोई पहला कार्य है।
कई दशकों से हिंदू संस्थान लोगों के स्वास्थ, शिक्षा और उनकी बुनियादी जरूरतें पूरा करने की दिशा में काम करते आए हैं, मगर कभी उन्हें वो नाम और सम्मान नहीं मिला जितने के वो हकदार थे। खुद बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री लंबे समय से गरीब परिवार की बेटियों की शादी कराते रहे, लेकिन उनके इस कार्य की चर्चा आज जाकर हो रही है जब वहाँ राष्ट्रपति मुर्मू मौजूद हैं, जिनकी नजर में ये कार्य पुण्य का है, न कि कोई प्रोपगेंडा।
बागेश्वर धाम की तरह तमाम धार्मिक स्थल हैं और पंडित धीरेंद्र शास्त्री जैसे कई संत समाज के लोग, जो समय-समय पर संबल होने पर समाज के लिए ऐसे परोपकारी कदम उठाते आए हैं। उदाहरण तमाम हैं, लेकिन यहाँ चर्चा कुछ चंद की करते हैं…
परोपकार में जुटे हिंदू मंदिर
आपने पटना के महावीर मंदिर के बारे में सुना होगा। 1730 में बना महावीर मंदिर, न जाने कितने सालों से रोजाना 3000-4000 लोगों का पेट भरता है। मंदिर की ओर से राम-रसोई, सीता रसोई चलाई जाती है जो हर श्रद्धालु का पेट भरने के लिए 10-10 तरीके के व्यंजन बनाती है। इसके अलावा इस मंदिर से तीन अस्पतालों के मरीजों के लिए भी तीनों समय का भोजन निशुल्क जाता है।
इसी तरह गोरखनाथ मंदिर। यहाँ के महंत स्वयं यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ हैं। इस मंदिर द्वारा गोरखनाथ चिकित्सालय विभिन्न प्रकार की चिकित्सा सेवाएँ प्रदान करता है, जिसमें सामान्य OPD (आउट पेशेंट डिपार्टमेंट), पैथोलॉजी, ब्लड बैंक, डायलिसिस विभाग और विभिन्न विशेषज्ञताओं जैसे हृदय रोग, चर्म रोग, बाल रोग, मानसिक रोग आदि शामिल हैं। यहाँ पर मरीजों को मात्र 30 रुपए की फीस पर इलाज किया जाता है, जो इसे आर्थिक रूप से सुलभ बनाता है।
इसके बाद मुंबई का सिद्धि विनायक मंदिर। इस मंदिर का ट्रस्ट केवल धार्मिक गतिविधियों को नहीं देखता बल्कि सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय है। सिद्धि विनायक मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित फ्री कैंसर चिकित्सालय का उद्देश्य उन मरीजों को चिकित्सा सेवाएँ प्रदान करना है जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं। यहाँ केवल मरीजों को उच्च गुणवत्ता की चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध नहीं होतीं बल्कि यहाँ पर विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम काम करती है जो नवीनतम तकनीकों और उपचार विधियों का उपयोग करती है। इनका एक डायलिसिस केंद्र भी है उन रोगियों के लिए आवश्यक सेवाएँ प्रदान करता है जिन्हें किडनी संबंधी समस्याओं के कारण नियमित डायलिसिस की आवश्यकता होती है।
धार्मिक संगठन होते हुए सामाजिक कार्यों के लिए बढ़-चढ़कर योगदान देने वाली संस्थाओं में एक नाम इस्कॉन का भी है। इस्कॉन में न केवल जरूरतमंदों के लिए भोजन वितरण कार्यक्रम चलाया जाता है, बल्कि इस्कॉन द्वारा समय-समय मेडिकल कैंप, आयुर्वेदिक उपचार, स्वास्थ्य जाँच आदि भी कराई जाती है। शिक्षा के क्षेत्र में भी ये संगठन बढ़-चढ़कर भागीदारी दिखाता है। युवाओं को नैतिकता और जीवन के उद्देश्यों के बारे में बताता है।
कोविड काल में सहायक हुए थे हिंदू मंदिर
कोविड काल में भी हिंदू मंदिरों ने आगे आ आकर जरूरतमंदों की सहायता की थी और सरकार का काम आसान करने का पूरा प्रयास किया था। महावीर मंदिर से मुफ्त में कोविड संक्रमितों के लिए ऑक्सीजन देने का काम शुरू हुआ था। मुंबई के जैन मंदिर ने अपने मंदिर को ही कोविड सेंटर में परिवर्तित करवा दिया था। महाराष्ट्र के संत गजानन मंदिर में 500-500 बेड के आइसोलेशन सेंटर बनाए गए थे। वाराणसी के काशी मंदिर ने मुफ्त में लोगों को दवाएँ वितरित की थीं। इस्कॉन मंदिर ने गर्भवती, बुजु्र्ग और बच्चों के लिए फ्री में खाने घर तक पहुँचाने की व्यवस्था की थी। इंदौर के राधास्वामी सत्संग व्यास को कोविड के समय में दूसरा सबसे बड़ा कोविड सेंटर बनाकर ऱखा गया था।
आर्थिक सहायता की बात करें तो इसमें भी हिंदू मंदिर कभी पीछे नहीं रहे। सोमनाथ मंदिर और गुजरात के अंबाजी मंदिर ने कोविड काल से निपटने के लिए 1-1 करोड़ रुपए सीएम राहत कोष में दिए थे। सिद्धिविनायक मंदिर ने कोरोना काल के वक्त महाराष्ट्र सरकार को 10 करोड़ की मदद की थी। शिरडी साई बाबा मंदिर ने भी मुख्य राहत कोष में 51 करोड़ रुपए देने का निर्णय लिया था। इसी तरह गोरखनाथ पीठ और उससे संबंधित कुछ संस्थाओं और महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् ने ‘पीएम केयर फंड’ एवं ‘मुख्यमंत्री राहत कोष’ में अब तक 51,00000 रुपए का योगदान भी दिया।
इसके अलावा बाहरी देशों में स्थित हिंदू मंदिरों ने भी संकट के काल में न केवल अपने देश के लोगों की सहायता की बल्कि भारत की मदद करने के लिए भी आगे आए। थाईलैंड के बैंकॉक में हिंदू समाज मंदिर ने भारत को कोरोनावायरस की दूसरी लहर से लड़ने में मदद करने के लिए समर्थन जुटाया। जॉर्जिया के ब्लूमिंगडेल में श्री राधेश्याम मंदिर सहित अमेरिका में कई हिंदू मंदिरों ने अहमदाबाद, भारत में एसजीवीपी होलिस्टिक अस्पताल को चिकित्सा सहायता के लिए सीधे धन जुटाया। लंदन में BAPS स्वामीनारायण मंदिर ने भी भारत के लिए 8 लाख 30 हजार डॉलर की की धनराशि जुटाई।
निस्वार्थ भाव से करते हिंदू संत सेवा
दिलचस्प बात ये हैं कि हिंदू मंदिरों, संगठनों, संस्थाओं ने ये सारे काम बिना किसी गुप्त उद्देश्य के किए। उन्होंने कभी कोई प्रलोभन देकर या अपना प्रचार करके ये नहीं दिखाया कि वो जगत में कल्याण के लिए क्या-क्या कर रहे हैं। बागेश्वर धाम में बना कैंसर अस्पताल बस एक और बड़ा उदाहरण है जो हिंदू संतों के उन प्रयासों को उजागर करता है जिन्हें वामपंथी हमेशा से दबाने की कोशिश करते रहे।
उन्हें हमेशा अगर परोपकार दिखा तो ईसाई मिशनरियों के कार्य में। उन्होंने मदर टेरेसा को ‘मसीह’ बता बताकर प्रमोट किया बिना ये देखे कि जिन्होंने भोपाल त्रासदी का समर्थन किया हो, इमरजेंसी में सुख खोजा हो, जिनकी शुरू की गई संस्था में लड़कियों के शोषण के मामले दर्ज होते रहे, वो- मसीह कैसे हो सकता है।
बड़ी चालाकी से वामपंथियों ने टेरेसा को ‘मदर’ की उपाधि दे दी, लेकिन साध्वी ऋतम्भरा की छवि कट्टर हिंदू से ऊपर नहीं उठने दी। वामपंथियों ने कभी साध्वी ऋतम्भरा जैसी सनातनी महिलाओं के बारे में दुनिया को ये बताना जरूरी नहीं समझा कि वह कैसे- वात्सल्य ग्राम के जरिए अनाथ बच्चों एवं परित्यक्त महिलाओं को आवास, भोजन, स्वास्थ्य एवं शिक्षा का प्रबन्ध करवाती हैं।
वामपंथियों ने आगे बढ़ाया पादरी बिजेंद्र जैसे लोगों का नाम जो खुलेआम लोगों को लालच देकर धर्मांतरित होने के लिए आकर्षित करते हैं और छवि बिगाड़ने की कोशिश की अनिरुद्ध आचार्य महाराज जैसे लोगों की, जो गौरी गोपाल आश्रम में वृद्धों के लिए आश्रम चलाते हैं, रोजाना न जाने कितनों को भोजन कराते हैं।
आज खोजेंगे तो ऐसे तमाम उदाहरण मिल जाएँगे, लेकिन पहले ऐसा संभव नहीं था। पहले हिंदू धर्म की बात करने वाला और प्रचार-प्रसार करने वाला कट्टर धर्मनेता की गिनती में आता था और जाकिर नाइक जैसे लोग समाज में शांति का संदेश देने वाले माने जाते थे।
आज स्थिति बदली है तो मालूम होना चाहिए कि हिंदुओं के सारे धार्मिक संगठन बिना लोगों की जाति-धर्म-पंथ-वर्ग देखे ये परोपकार करते हैं। वह गरीब का पेट भरने के लिए उसके दरवाजे पर आने का इंतजार नहीं करते, या अपनी रसोइयाँ दिखाकर प्रचार नहीं करते। वह इलाज का लालच देकर लोगों का धर्मांतरण नहीं कराते, बेघरों को आश्रय देने के लिए उनका धर्म नहीं जाँचते, शिक्षा के नाम केवल शिक्षा देते हैं, अपना कोई मिशन पूरा नहीं करते।