Friday, April 26, 2024
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नारीवादियो तेरा कुछ नहीं जाता, पर सितारा परवीन जैसों के लिए बेड़ी बन जाती है जायरा वसीम और सना खान की ‘घर वापसी’

आखिर कैसे इन्हें इनके साथी मजहब की खाईं में जाते हुए प्रोग्रेसिव लग सकते हैं? और उनकी इच्छा 'माय लाइफ माय रूल्स' का हिस्सा लग सकती है? इनसे आखिर क्यों एक भी बार ये नहीं पूछा जाता कि जब जाना वापस वहीं था, तो यहाँ तक का रास्ता क्यों तय किया? और अगर मन में उड़ने की इच्छा थी तो अब उन इच्छाओं को मारने का कारण क्या है?

नारीवाद का चेहरा वर्तमान में कितना दोगला हो चुका है, इसका नमूना पिछले दिनों जायरा वसीम और सना खान जैसी लड़कियों के ऐलान के बाद हर जगह देखने को मिला। मजहब की दुहाई देकर करियर की क़ुर्बानी देने वाली इन लड़कियों के फैसले के ख़िलाफ़ किसी नारीवादी ने आवाज बुलंद नहीं की। 

कुछ दिन पहले एक और मुस्लिम महिला ने कामयाबी के शिखर पर पहुँचने के बाद खुद को उसी जगह धकेल दिया, जहाँ से वो ऊपर उठी थी। इस लड़की का नाम है हलीमा अदन। हलीमा, अमेरिका जैसे विकसित देश में रहते हुए खुद को इस्लाम से परे नहीं समझ पाईं। उसके शब्द अब भी मन में सवाल उठाते हैं कि आखिर अमेरिका में रहने वाली एक लड़की के लिए जींस पहनना किसी के धार्मिक भावना को आहत करना कैसे हो सकता है।  

अब खबर आई है कि पाकिस्तान की अदाकारा जैनब जमील ने भी इस्लाम के लिए खुशी-खुशी अपने करियर की कुर्बानी देकर ऐलान किया है कि अब वह कुरान, हदीस, दीन और इस्लाम को समझेंगी, इसके लिए अल्लाह ने ही उन्हें चुना है। 

जायरा वसीम, सना खान, हलीमा अदन और जैनब जमील। ये कोई अंतिम नाम नहीं हैं जिन्होंने मजहब के लिए खुद के पूरे जीवन के साथ खिलवाड़ किया। इस सूची में अभी और नाम शामिल होंगे और इनसे पहले भी बहुत से नाम इस लिस्ट से जुड़ चुके होंगे। 

सवाल यह है कि जब इस्लाम के प्रति मोह इतना अधिक है तो फिर समाज में अन्य लड़कियों के लिए आशा जगाने का मतलब क्या था! बॉलीवुड इंडस्ट्री से लेकर हर इंडस्ट्री में मुस्लिम लड़कियों को बढ़-चढ़कर इसलिए आगे बढ़ाया जा रहा है, ताकि समाज में सकारात्मक संदेश जाए और समुदाय की लड़कियों को भी खुल कर जीने का मौका मिले। लेकिन उक्त लड़कियों के उदाहरण जिन्हें वैश्विक स्तर पर दुनिया ने उन्हें उनकी पहचान के साथ कबूल किया। उन्हें नाम दिया। शोहरत दी। फिर एक दिन उसी पहचान का इस्तेमाल कर वह इस्लाम की दुहाई देने लगती हैं।  

मजहब के नाम पर इन लड़कियों की ‘घर वापसी’ समुदाय की अन्य लड़कियों के लिए किसी नासूर से कम साबित नहीं होगी। वह लड़कियाँ जो अपने परिवेश को हराकर ऊँचाइयों पर जाने के सपने देखती हैं, उन्हें शायद किसी सना या जायरा का उदाहरण देकर ये कहकर रोक दिया जाए कि वह लोग भी जीवन में आगे तक गईं, लेकिन लौटना इस्लाम के पास ही पड़ा।

विचार करिए, उस समय लड़की की मनोस्थिति क्या होगी? लड़की या तो ऐसे उदाहरणों को कोसते हुए जीवन गुजार देगी या हो सकता है कि इनको प्रेरणा मान कर पहले ही खुद को मजहब के नाम पर कुर्बान कर दे। 

पिछले दिनों इंडियन आइडल में नजर आई बिहार की सितारा परवीन ने अपने संघर्ष को जब दुनिया के सामने बताया तो सबकी आँखें भीग गईं। उस हिजाब पहनने वाली प्रतिभावान लड़की ने साफ कहा कि उनके समुदाय में गायकी की इजाजत नहीं मिलती। वह छुप-छुप कर इस मंच तक पहुँची है।

सितारा को बतौर उदाहरण देने का मकसद आज यही है कि हम ये समझ सकें कि टैलेंट किसी धर्म, जाति, वर्ग को देख कर शरीर में प्रवेश नहीं करता। लेकिन हमारा समाज उसे आगे बढ़ाने में मजहब को बीच में जरूर ले आता है। 

एक ऐसा समुदाय जिसकी महिलाएँ आज भी खुली हवा में बाल लहराने के कारण अपने घरों से दुत्कार दी जाती हैं, वहाँ सोचिए कि बिना कोई टैलेंट विकसित किए लड़कियाँ कैसे आगे बढ़ पाएँगीं।

अमेरिका में रहने वाली एक ईरानी लड़की का नाम मसीह अलीनेज़ाद है। मसीह पिछले कई सालों से अपने घर नहीं जा पाई हैं। उनके पिता ने उनसे बात करना भी बंद कर दिया है। मसीह की गलती बस ये थी कि वह अपने समुदाय की लड़कियों की एक बुलंद आवाज बनना चाहती थीं और इसके लिए उन्होंने एक अभियान शुरू कर दिया था। उन्होंने गाड़ी का स्टेयरिंग पकड़कर बिना हिजाब के फोटो सोशल मीडिया पर डाली थी जिसे देख कई महिलाएँ प्रेरित हुईं और उनसे जुड़ती गईं। अपनी किताब ‘द विंड इन माय हेयर’ में अलीनेजाद ने लिखा है कि वो मूक लोगों की आवाज़ बनना चाहतीं थी, लेकिन इरान में रहते हुए वो हमेशा ही मूक रहीं।

इस्लामी देशों में मजहबी कट्टरता किस चरम पर है इसे माप पाना असंभव है। लेकिन मसीह जैसी महिलाओं की स्थिति देखकर इसका अंदाजा जरूर लगाया जा सकता है। 

हम नारीवाद के नाम पुरुषों से नफरत करना आज सीख चुके हैं। उन पर इल्जाम लगाना, उनकी सोच को दुत्कारना हमारे नारीवाद का मेन ऑब्जेक्टिव है। लेकिन हम चुप हैं जायरा वसीम और सना खान जैसी लड़कियों पर, जो मुस्लिम महिलाओं के उत्थान की जगह उनके दमन का कारण बनेंगी। इनकी ख्याति न जाने की कितनी लड़कियों के संघर्षों पर विराम लगा देगी।

ये एक बड़ा सवाल है कि जायरा वसीम और सना खान का इस्लाम के प्रति मोह बॉलीवुड की स्वरा भास्कर और सोनम कपूर जैसों के लिए नारीवाद पर आघात क्यों नहीं है? ये तो वहीं लड़कियाँ हैं जिन्होंने थोड़ी सी पहचान पाते ही सबसे पहले खुद की धार्मिक पहचान को दाव पर लगाकर लिबरल छवि कायम की और लगातार अपने धर्म के ख़िलाफ़ बोलती रहीं।

फिर आखिर कैसे इन्हें इनके साथी मजहब की खाईं में जाते हुए प्रोग्रेसिव लग सकते हैं? और उनकी इच्छा ‘माय लाइफ माय रूल्स’ का हिस्सा लग सकती है? इनसे आखिर क्यों एक भी बार ये नहीं पूछा जाता कि जब जाना वापस वहीं था, तो यहाँ तक का रास्ता क्यों तय किया? और अगर मन में उड़ने की इच्छा थी तो अब उन इच्छाओं को मारने का कारण क्या है?

आज नैतिकता के आधार पर देखें तो सना खान और जायरा वसीम से अधिक प्रेरणादायक सनी लियोन का जीवन लगता है। कम से कम सनी लियोन ने लड़कियों को सकारात्मक संदेश तो दिया। उन्होंने एक ऐसे दलदल से निकालकर खुद को उस सोसायटी में ढाला जहाँ हर किसी के लिए वो पॉर्न स्टार थीं, लेकिन अब वह एक सामान्य हिरोइनों की भाँति जीवन जी रही हैं। साथ ही अपने परिवार के साथ खुश भी है। जीवन में सही व सकारात्मक बदलाव इसे ही कहा जाता है। सना खान जैसी मशहूर हिरोइन के जीवन में आया बदलाव बस इस बात का प्रमाण है कि मुस्लिम महिलाओं की कामयाबी के समांतर एक ऐसा समाज भी चल रहा है जो उन्हें खींचकर पीछे ढकेलने में आतुर है, ताकि उनकी जमीन बची रहे।

सना खान के करियर को यदि देखें तो मालूम होगा कि वह इस इंडस्ट्री की सबसे बोल्ड हिरोइनों में से एक थीं। लेकिन आज मुफ्ती अनस से उनके निकाह के बाद उनकी हर तस्वीर हिजाब में होती है। और यूट्यूब के कमेंट देखने पर मालूम होता है कि उनके समुदाय के लोग उन्हें इस अवतार में देखकर कितने खुश हैं। कई कट्टरपंथी सना को अन्य लड़कियों के लिए प्रेरणा बताते हैं और समझाते हैं कि शुक्र है उनको समय रहते समझ आ गई। कुछ लोग मुफ्ती अनस को बड़े दिल वाला कहते हैं जो उसने एक ऐसी लड़की को स्वीकारा जिसने बीते समय में कई काम इस्लाम के ख़िलाफ़ किए।

प्रश्न है कि नारीवाद का झंडा बुलंद करने वालों को सना, जायरा वसीम, हलीमा के फैसलों में पितृसत्ता क्यों नहीं दिखती। समय के साथ यदि सना को उनकी बोल्डनेस, जायरा को उनकी एक्टिंग खुदा की नफरमानी लग भी रही थी तो वह सामान्य जिंदगी की ओर रुख कर सकती थीं। लेकिन नहीं। अन्य लड़कियों को इस्लाम के प्रति प्रभावित करने के लिए उन्होंने उस हिजाब से खुद को ढक लिया, जिससे कई लड़कियाँ निकलने के लिए लगातार कोशिशें कर रही हैं।

जायरा वसीम को साल 2018 में इमरजिंग ब्यूटी ऑफ द ईयर का अवॉर्ड मिला था। शाहरुख खान ने उन्हें लेकर भविष्यवाणी की थी कि वह भारतीय सिनेमा के इतिहास में सबसे बड़ी हिरोइन बनेंगी। लेकिन उन्हीं जायरा वसीम ने साल 2019 आते-आते ये कह दिया कि अब उन्हें बॉलीवुड में करियर नहीं बनाना, क्योंकि एक्टिंग उन्हें उनके मजहब से दूर कर रहा है।

जायरा जैसी लड़कियों के ये वाक्य कितनी पीड़ा देते हैं, इसका अंदाजा उस कश्मीरी महिला कलाकार से समझने की जरूरत है जिसे कट्टरपंथ के कारण अपनी कला जलानी पड़ी थी, जिसने जायरा के एक्टिंग छोड़ने के ऐलान के बाद एक साक्षात्कार में अपनी वेदना बताई और ये समझाया कि एक मॉडल बनने के बाद उन्हें क्या फर्क नजर आया।

बकौल सैयद रुहानी

जब मैंने मॉडलिंग शुरू की, तो मैंने देखा कैसे लोग मुझे ट्रीट कर रहे हैं कि मुझे अच्छा लग रहा है, जबकि दूसरी ओर मदरसे में मुझे मारा जाता था, मुझे गाली दी जाती थी, मेरे साथ गलत बर्ताव होता था, और मुझे बंधक बनाकर रखा जाता था, सिर्फ़ इसलिए ताकि मैं अल्लाह के बारे में पढ़-सीख सकूँ।

हम अपने घरों में बैठकर सोचते हैं कि ऐसी बॉलीवुड में आने वाली महिलाएँ खुले विचारों की होती होंगी। वह अपने आस-पास की लड़कियों को सपने देखने के लिए प्रेरित करती होंगी। लेकिन हकीकत क्या है? यह जायरा वसीम और सना खान जैसी लड़कियों को देखकर मालूम चलता है, जिन पर उनके समुदाय का प्रभाव किसी भी उम्र में किसी भी पड़ाव में हावी हो जाता है।

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