Friday, April 19, 2024
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‘रेप पीड़िताओं की हत्या के पीछे मोदी सरकार’ : ‘फर्जी’ कानून गढ़ कर CM गहलोत ने केंद्र पर लगाया इल्जाम, जानें रेप दोषी को कब मिलती है मौत की सजा?

केंद्र ने ऐसा कोई भी भी कानून नहीं बनाया है जिसकी वजह से रेप दोषी को अपने आप मौत की सजा निर्धारित होती है। सीएम गहलोत ने ऐसा दावा करते केवल लोगों को भ्रमित किया है।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने रेप के बाद होती हत्याओं के पीछे का सारा दोष कुछ दिन पहले केंद्र पर मढ़ा था। उन्होंने कहा था कि ये जो केंद्र ने निर्भया कांड के बाद रेप दोषियों को फाँसी की सजा देने का कानून बना दिया है उसकी वजह से हालात बद्तर हो गए हैं।

उन्होंने अपनी 4 मिनट 36 सेकेंड की प्रेस कॉन्फ्रेंस में देश में बच्चियों के साथ हो रहे दुष्कर्म पर चिंता जाहिर तो की थी। मगर साथ ही ये भी कहा था,

“ऐसा कानून बनने के बाद, रेप पीड़िताओं को मारने के मामले बढ़ गए हैं। जब दोषी देखते हैं कि वो पीड़िता तो उन्हें सजा दिला सकती है, उनके खिलाफ गवाह बन सकती है, तो वह उन्हें मार देते हैं। मैं ये सब हमारे देश में बहुत ज्यादा होता देख रहा हूँ। ये लोकतंत्र पर खतरा है। हमने ऐसी स्थिति पहले बिलकुल नहीं देखी थी”

अशोक गहलतो के दावों में कितनी सच्चाई? क्या है कानून?

रेप दोषियों को सजा-ए-मौत दिए जाने वाले सीएम गहलोत के बयान में कितनी सच्चाई है, इसके बारे में बता दें कि अब तक केंद्र ने रेप के सभी दोषियों के लिए मौत की सजा को अनिवार्य नहीं बनाया हुआ है। ऐसे में उनके बनाए कानून के कारण रेप दोषी हत्याओं को अंजाम दे रहे हैं, ये कथन सत्य नहीं है।

केंद्र सरकार ने कठुआ और उन्नाव जैसे रेप केसों के बाद क्रिमिनल लॉ (अमेंडमेंट) एक्ट 2018 को पास किया था। उन्होंने आईपीसी की भारतीय दंड संहिता 1860 और बाल यौन अपराध निवारण अधिनियम 2012 में संशोधन किया था ताकि बलात्कार के दोषियों के लिए कठोर सजा का प्रावधान किया जा सके। कानून में मुख्य बदलाव जो हुए थे वो ये थे कि एक बलात्कार के लिए न्यूनतम सजा को 7 साल से बढ़ाकर 10 साल कर दिया गया था। वहीं 16 साल से कम उम्र की नाबालिग का बलात्कार करने वाले के लिए कानून में और सख्ती करते हुए दोषी की सजा कम से कम 20 वर्ष कर दी गई थी।

इसी तरह 12 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ रेप या गैंगरेप करने पर इस कानून में दोषी को आजीवन कारावास से लेकर सजा-ए-मौत देने का प्रावधान आईपीसी की धारा 376 में किया गया था।

केंद्र के संशोधन के बाद 376 एबी धारा को कानून में जोड़ा गया था। इस धारा में कहा गया है कि 12 वर्ष से कम उम्र की लड़की का रेप करने वाले को कम से कम 20 साल की सजा होगी। ये सजा आगे आजीवन कारावास में बढ़ सकती है। उसे जुर्माने और मौत की सजा देकर भी दंडित किया जा सकता है।

एक और धारा, जिसे कानून में जोड़ा गया वो 376 डीबी है। इस धारा के तहत अगर 12 आयु से कम उम्र वाली लड़की का रेप एक व्यक्ति या एक से ज्यादा व्यक्ति समूह बनाकर करते हैं, या इस इरादे से आगे बढ़ते हैं तो हर किसी को रेप का दोषी माना जाएगा और उन्हें आजीवन कारावास की सजा होगी। इसमें उसके लिए जुर्माने के साथ मौत की सजा का प्रावधान भी है।

बता दें कि नाबालिगों के लिए बनाए गए इन कानूनों के अतिरिक्त अगर रेप दोषियों के लिए सजा-ए-मौत का प्रावधान है तो वो उन दोषियों के लिए हैं जो दोबारा-दोबारा अपराध को दोहराते हों। आईपीसी की धारा 376ई कहती है कि अगर एक रेप आरोपित दोबारा रेप करे तो उसे मौत की सजा दी जा सकती हैं।

इस धारा के अनुसार, “जो कोई भारतीय दंड संहिता की धारा 376, 376A या 376D के अधीन दण्डनीय किसी अपराधों के लिए पहले कभी दण्डित किया गया हो और बलातकार के अपराध 376, 376A 376B , 376C 376D में बताए गए किसी भी अपराध को दोहराता है तो उस उस दोषी व्यक्ति को आजीवन कारावास या मृत्यु दण्ड से दण्डित किया जाएगा।”

निश्चित केसों में ही दी जाती है सजा-ए-मौत

अब शायद ये बातें स्पष्ट हों कि सजा-ए-मौत का जो प्रावधान कानून में किया गया वो निश्चित मामलों के लिए है। पीड़िता अगर 12 साल से कम उम्र की है, तभी इस सजा के बारे में सोचा जा सकता है। और इसका भी ये अर्थ नहीं कि दोषी को यही सजा होती होगी। ये न्यायपालिका पर निर्भर करता है कि सजा की मात्रा क्या तय की जाएगी। वहीं बाकी धाराओं में तो सजा-ए-मौत का उल्लेख भी नहीं है। अगर दोषी ने 12 साल से ज्यादा उम्र वाली लड़की का बलात्कार किया है तो न्यायपालिका चाहकर भी उसे सजा-ए-मौत नहीं दे सकती क्योंकि ऐसा प्रावधान नहीं है।

आप देखेंगे कि भारतीय अदालतों में आजतक रेप दोषियों को सजा-ए-मौत दिए जाने के बहुत कम ही मामले देखने को मिले हैं। न्यायपालिका अपराध की गंभीरता देखने के बाद ये सजा दोषियों को देती है। इनमें ज्यादातर रेप के बाद हत्या वाले केस होते हैं। इन केसों में भी कई बार मौत की सजा, आजीवन कारावास में बदल दी जाती है। 21 वीं सदी में भारत में ऐसा केवल दो बार हुआ है जब दोषियों को मौत की सजा अदालत ने दी हो। एक हेतल पारेख का मामला और दूसरा निर्भया कांड। ये दोनों रेप और हत्या के मामले हैं।

इस तरह ये साबित होता है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री जो दावा कर रहे हैं कि केंद्र सरकार ने रेप दोषियों के लिए मौत की सजा अनिवार्य कर दी और इसी की वजह से रेप पीड़िताएँ मारी जा रही हैं… ये बिलकुल गलत है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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