Saturday, April 27, 2024
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असम में जनसंख्या के इस विस्फोट को समझिए: 40 मुस्लिम बहुल सीट, 10 साल में 30 से 55% बढ़ गए वोटर

यदि कुछ दूसरे विधानसभा क्षेत्रों की बात करें जहाँ स्थानीय समुदाय (असम के हिन्दू और जनजातीय समुदाय) की आबादी है और मुस्लिमों की जनसंख्या अपेक्षाकृत कम है, वहाँ मतदाताओं की संख्या में लगभग 10% से 20% की वृद्धि ही दर्ज की गई है।

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने मुस्लिमों से अपील की थी कि वे सरकार के जनसंख्या नियंत्रण के प्रयास में सहभागी बनें और परिवार नियोजन को अपनाएँ। हालाँकि, राजनैतिक तौर पर सीएम सरमा की इस अपील का विरोध प्रारंभ हो गया। लेकिन मुस्लिम बहुल विधानसभा क्षेत्रों के विश्लेषण के आधार पर यह निष्कर्ष सामने आता है कि सीएम सरमा का अनुमान ठीक ही है। यदि मुसलमानों की जनसंख्या (घुसपैठ और जन्म के द्वारा) में ऐसे ही वृद्धि होती रही तो असम की जनसांख्यिकी एक दिन पूरी तरह बदल जाएगी।

40 मुस्लिम बहुल विधानसभा क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या का विश्लेषण करने पर यह पता चलता है कि पिछले 10 वर्षों में बरपेटा, धुबरी, गोलपारा और होजई जैसे इलाकों में मतदाताओं की संख्या में भारी इजाफा हुआ है। इन क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या में 30% से लेकर 55% तक की वृद्धि देखने को मिली है। बरपेटा जिले के दो विधानसभा क्षेत्रों- जनिया और बागबर में तो 2011 से 2021 के दौरान 50% से अधिक वृद्धि दर्ज की गई। इन क्षेत्रों में अधिकतर लोग पूर्वी बंगाल या बांग्लादेश के हैं।

10 विधानसभा क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि 40% से 50% दर्ज की गई और इनमें से अधिकतर मुस्लिम बहुल क्षेत्र हैं। असम में हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में इन 40 सीटों में से 33 पर कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन की जीत हुई। इनमें से 20 पर कॉन्ग्रेस, 11 पर बदरुद्दीन अजमल की AIUDF, 1-1 सीट पर सीपीआईएम और बीपीएफ की जीत हुई। इस गठबंधन के उलट भाजपा मात्र 7 सीटें ही जीत सकी, जबकि विधानसभा चुनावों में उसे कुल 60 सीटें मिली हैं।

अब दूसरे कुछ विधानसभा क्षेत्रों की बात करें तो जहाँ स्थानीय समुदाय (असम के हिन्दू और जनजातीय समुदाय) की आबादी है और मुस्लिमों की जनसंख्या अपेक्षाकृत कम है, वहाँ मतदाताओं की संख्या में लगभग 10% से 20% की वृद्धि ही दर्ज की गई। इनमें पूर्वी गुवाहाटी, हफलॉन्ग, बोकाजन, धर्मापुर और सिबसागर जैसे इलाके शामिल हैं। यहाँ 2011 से 2021 के दौरान मतदाताओं की संख्या में क्रमशः 6%, 13%, 14%, 11% और 12% वृद्धि दर्ज की गई।

कई विधानसभा क्षेत्रों में यह स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है कि मुस्लिम बहुल इलाकों के मतदाताओं में सामान्य इलाकों के मतदाताओं की तुलना में लगभग 3 गुणा वृद्धि हुई। इससे भविष्य में यह निश्चित है कि ऐसी सीटों की संख्या बहुतायत में होगी, जो मुस्लिमों के नियंत्रण में होंगी। इस तरह की वृद्धि दर से निश्चित तौर पर असम एक बड़ा जनसांख्यिकी परिवर्तन को देखने वाला है।

इस विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि जनसंख्या नियंत्रण को लेकर मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की चिंता पूरी तरह से जायज है और इसके लिए वह बेहद सख्त नजर आ रहे हैं। हालाँकि, उनके द्वारा इसके लिए लगातार समाज के प्रत्येक वर्ग से चर्चा की जा रही है और उनका यह मानना है कि इस नीतिगत निर्णय में सब की सहमति शामिल रहे।

सीएम सरमा ने कहा कि वह मुस्लिम समुदाय के सशक्तिकरण के लिए प्रयास करते रहेंगे और उनसे लगातार बातचीत होती रहेगी, लेकिन जनसंख्या नियंत्रण नीति और परिवार नियोजन को लेकर उनकी प्रतिबद्धता स्पष्ट है। 

हाल ही में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने असम में राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ उठाने के लिए 2 बच्चों की नीति (Two-Child Policy) को लागू करने का फैसला किया है। घोषणा के अनुसार, कर्जमाफी या अन्य सरकारी योजनाओं के लाभ लेने के लिए इस नीति का अनुपालन करना अनिवार्य होगा। हालाँकि, यह भी निर्णय लिया गया कि चाय बागानों में काम करने वाले मजदूर और अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों पर फिलहाल यह नीति लागू नहीं होगी। असम सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि भविष्य में सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए 2 बच्चों की नीति (Two-Child Policy) सबके लिए अनिवार्य होगी और सभी समुदायों पर इसे चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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