Saturday, April 27, 2024
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लोकसभा चुनाव 2019: कॉन्ग्रेस को नहीं मिल रहा कोई साथी, ‘बुरे दिनों’ की शुरुआत

यह कहना गलत नहीं होगा कि जिस तरह से कॉन्ग्रेस पार्टी का दामन कोई थामने को तैयार नहीं है उससे उसके बुरे दिनों की शुरुआत हो चुकी है। अब देखना होगा कि चुनावी दौर में कॉन्ग्रेस को अभी और कितने झटके लगने बाकी हैं।

लोकसभा चुनाव के महासंग्राम में जोड़-तोड़ का का समीकरण हर ओर छाया है। आपसी गठबंधन पर बनते-बिगड़ते समीकरणों का ताना-बाना में लगभग हर पार्टी बुनने में व्यस्त है। ऐसे में कॉन्ग्रेस अपने बुरे दौर में साथियों की तलाश में है जिसके सहारे वो चुनावी मैदान में खुद को उतार सके। उत्तर प्रदेश में तो सपा-बसपा गठबंधन ने कॉन्ग्रेस को कोई तरजीह नहीं दी और शुरुआत से ही कॉन्ग्रेस को गठबंधन से बाहर का रास्ता दिखाया। वो बात अलग है कि कॉन्ग्रेस इस गठबंधन का हिस्सा बनने को पूरी तरह से लालायित थी।

बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने एक ट्वीट से यह स्पष्ट किया कि कॉन्ग्रेस पार्टी से उसका कोई तालमेल या गठबंधन नहीं है और लिखा कि लोग कॉन्ग्रेस पार्टी द्वारा फैलाए जा रहे तरह-तरह के भ्रमों में न आयें। मायावती के इस ट्वीट से कॉन्ग्रेस की स्थिति साफ हो जाती है कि यूपी में उसके साथ कोई नहीं है।

अपने एक अन्य ट्वीट में मायावती ने कॉन्ग्रेस को लगभग लताड़ लगाते हुए लिखा कि वो यूपी में पूरी तरह से स्वतंत्र हैं, चाहें तो सभी 80 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर दे लेकिन ज़बरदस्ती ये भ्रांति न फैलाए कि उसने यूपी में गठबंधन के लिए 7 सीटें छोड़ दी हैं।

ऐसा ही कुछ हुआ पश्चिम बंगाल में, जहाँ बीते रविवार को पश्चिम बंगाल कॉन्ग्रेस ने वाम मोर्चे के साथ गठबंधन की अपनी सभी संभावनाओं को समाप्त करने की घोषणा कर दी। बता दें कि पश्चिम बंगाल कॉन्ग्रेस की यह घोषणा तब की गई जब वाम मोर्चे ने 42 संसदीय सीटों में से 25 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा दो दिन पहले ही कर दी थी।

पश्चिम बंगाल के कॉन्ग्रेस अध्यक्ष सोमेन नाथ मित्रा ने कहा, “वाम मोर्चे ने 15 मार्च को पश्चिम बंगाल में 25 लोकसभा सीटों पर अपने कैंडिडेट की घोषणा की, जिसमें पश्चिम बंगाल की कॉन्ग्रेस के साथ कोई चर्चा नहीं की गई। वाम मोर्चे में CPI (M) और उसके सहयोगी दलों के एकजुट होने की वजह से, हम राज्य में प्रस्तावित सीट बँटवारे संबंधी संभावनाओं पर विराम लगा रहे हैं और बंगाल में स्वयं के बल पर बीजेपी और तृणमूल कॉन्गेस से लड़ने का फैसला किया है।”

यह कहना गलत नहीं होगा कि जिस तरह से कॉन्ग्रेस पार्टी का दामन कोई थामने को तैयार नहीं है उससे उसके बुरे दिनों की शुरुआत हो चुकी है। अब देखना होगा कि चुनावी दौर में कॉन्ग्रेस को अभी और कितने झटके लगने बाकी हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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