Saturday, May 4, 2024
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धर्म परिवर्तन किया तो नहीं मिलेगा आरक्षण: हिमाचल प्रदेश विधेयक में कड़ा प्रावधान, निकाह के लिए धर्म छिपाने पर सजा

अनुसूचित जाति या जनजाति या ओबीसी वर्ग के लोग अगर धर्म परिवर्तन करते हैं तो इसके बाद उन्हें किसी तरह का आरक्षण नहीं मिलेगा। अगर वे धर्म परिवर्तन की बात छिपाकर आरक्षण लेते रहते हैं तो उन्हें 5 साल तक सजा और 50000 से एक लाख रुपए तक का जुर्माना देना होगा।

देश में आए दिन धर्मांतरण के मामले सामने आते रहते हैं। धर्मांतरण के इन मामलों में जबरन धर्मांतरण से लेकर धोखाधड़ी के साथ धर्मांतरण और धर्मांतरण के उद्देश्य से विवाह जैसे मामले आम हैं। पूरे देश में जिस तरह से धर्मांतरण का कुचक्र चलाया जा रहा है, इससे हर कोई चिंतित है। इस पर लगाम लगाने को लेकर विभिन्न राज्यों की सरकारों द्वारा अपने-अपने हिसाब से कड़े कानून बनाए जा रहे हैं। इसी कड़ी में, हिमाचल प्रदेश की जयराम ठाकुर सरकार ने राज्य में धर्मांतरण के मौजूदा कानून में बदलाव करने के उद्देश्य से ‘हिमाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक, 2022’ पेश किया है।

हिमाचल प्रदेश के मौजूदा धर्मांतरण कानून की बात करें तो, यहाँ हिमाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2019 को 21 दिसंबर 2020 को ही अधिसूचित किया गया था। इस विधेयक को 2006 के धर्मांतरण कानून में बदलाव लाने के उद्देश्य से पारित किया गया था।

दरअसल, साल 2006 के हिमाचल प्रदेश के धर्मांतरण विरोधी कानून पर 2012 में हिमाचल हाईकोर्ट ने यह कहते हुए रोक लगा दी कि यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है। इसके बाद, साल 2019 में राज्य सरकार ने 2006 के कानून में 10 संसोधन करते हुए पुनः विधेयक प्रस्तुत किया था, जिसे दिसंबर 2020 में कानून की शक्ल में पारित किया गया था।

हिमाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक, 2022

हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तुत किए गए ‘धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक, 2022’ में पिछले कानून की तुलना में कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है। जयराम ठाकुर सरकार द्वारा पेश नए संशोधन विधेयक में बलपूर्वक धर्मांतरण के लिए जेल की सजा को 7 साल से बढ़ाकर अधिकतम 10 साल तक करने का प्रस्ताव है।

इसके अलावा, विधेयक में प्रस्तावित प्रावधान के मुताबिक धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत की गई सभी शिकायतों की जाँच उप निरीक्षक (सब इंस्पेक्टर) से निचले दर्जे का कोई पुलिस अधिकारी नहीं कर सकेगा। यही नहीं, इस मामले की पूरी सुनवाई सेशन कोर्ट में होगी।

जयराम ठाकुर सरकार द्वारा पेश किए गए इस संशोधन विधेयक में यह भी प्रावधान किया गया है कि अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति से विवाह करने के लिए अपने धर्म को छिपाता है तो दोषी व्यक्ति को कम से कम 3 साल की सजा हो सकती है। साथ ही इस सजा को दस साल तक बढ़ाने का भी प्रावधान किया गया है। इसके अलावा, विधेयक में, न्यूनतम जुर्माना ₹50000 (पचास हजार रुपयए) किया गया है, जिसे ₹100000 (एक लाख रुपए) तक बढ़ाया जा सकता है।

इस विधेयक में सामूहिक धर्म परिवर्तन पर भी सजा को बढ़ाने का प्रावधान किया गया है। वर्तमान कानून के अनुसार, सामूहिक धर्म परिवर्तन के लिए 7 साल की सजा और अधिकतम पचास हजार रुपए के जुर्माने का प्रावधान है। जबकि नवीन विधेयक में कहा गया है कि दो या दो से अधिक व्यक्तियों के धर्म परिवर्तन को सामूहिक धर्मांतरण माना जाएगा और ऐसा करने पर आरोपी को कम से कम 5 साल की सजा हो सकती है। इस सजा को 10 साल तक बढ़ाया भी जा सकता है। इसके अलावा, सामूहिक धर्मांतरण कराने पर, कम से कम डेढ़ लाख रुपए जुर्माने का प्रावधान किया गया है, जिसे दो लाख रुपए तक बढ़ाया जा सकता है।

धर्मांतरण के बाद आरक्षण नहीं

यदि कोई व्यक्ति धर्म परिवर्तन के बाद भी अपने मूल धर्म के अंतर्गत मिलने वाली सुविधाएँ प्राप्त करता है, तो यह अपराध की श्रेणी में आएगा और ऐसा करने वाले व्यक्ति के लिए 2 साल की सजा का प्रावधान किया गया है, जिसे 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है। साथ ही, जुर्माने को 50 हजार से एक लाख रुपए तक किया जा सकता है।

इसे ऐसे समझ सकते हैं कि अनुसूचित जाति या जनजाति या ओबीसी वर्ग के लोग अगर धर्म परिवर्तन करते हैं तो इसके बाद उन्हें किसी तरह का आरक्षण नहीं मिलेगा। साथ ही अगर वे धर्म परिवर्तन की बात छिपाकर आरक्षण लेते रहते हैं तो उन्हें 5 साल तक सजा और 50000 से एक लाख रुपए तक का जुर्माना देना होगा।

यही नहीं, इस विधेयक में धर्म पविर्तन करने से एक माह पूर्व जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष शपथ पत्र प्रस्तुत करने का भी प्रावधान किया गया है। इस शपथ पत्र में यह बताना होगा कि स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन कर रहे हैं। हालाँकि, यदि कोई अपने मूल धर्म में वापस आना चाहता है तो उसे किसी प्रकार का शपथ पत्र देने की आवश्यकता नहीं होगी।

मुख्यमंत्री ने विधेयक पेश करते हुए कहा, “अधिनियम को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए सजा की धाराओं में कुछ मामूली बदलाव किए जा रहे हैं। अधिनियम गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन, शादी या किसी भी कपटपूर्ण तरीके से धर्मांतरण को प्रतिबंधित करता है। धर्म परिवर्तन के एकमात्र उद्देश्य के लिए किसी भी विवाह को अधिनियम की धारा 5 के तहत “शून्य और शून्य (मतलब अवैध)” घोषित किया जाता है।”

अन्य राज्यों में धर्मांतरण पर कानून

हिमाचल प्रदेश के अलावा हाल ही में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश समेत कुछ अन्य राज्यों में भी धर्मांतरण पर कड़े कानून बनाए गए हैं।

मध्य प्रदेश के धर्मांतरण विरोधी कानून की बात करें तो यहाँ धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2020 के अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे को प्रलोभन, धमकी या जबरन शादी के नाम पर या अन्य किसी प्रकार की धोखाधड़ी से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसका धर्म परिवर्तन नहीं करवा सकता है। इस कानून का उल्लंघन करने पर 1 से 10 साल तक की कैद और एक लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। यही नहीं, धर्म छिपाकर शादी के अपराध में 3 वर्ष से 10 वर्ष तक की सजा और 50 हजार रुपए के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। साथ ही दूसरे धर्म में विवाह के लिए सूचना 2 महीने पहले देनी होगी, यदि बिना सूचना के विवाह होता है तो उसे शून्य माना जाएगा।

उत्तर प्रदेश के धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020 की बात करें तो यहाँ, जबरन धर्म परिवर्तन कराने पर न्यूनतम 15000 रुपए के जुर्माने के साथ 1 से 5 साल की कैद का प्रावधान है। इसके अलावा, एससी/एसटी समुदाय के नाबालिगों और महिलाओं के धर्मांतरण पर तीन से 10 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है। जबरन सामूहिक धर्मांतरण के लिए 3 से 10 साल तक की सजा और 50000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। यदि यह पाया जाता है कि विवाह का एकमात्र उद्देश्य धर्म परिवर्तन कराना था तो ऐसी शादियों को अवैध करार दिया जाएगा।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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