अटकलें तो बीते साल के अंत में मध्य प्रदेश में कॉन्ग्रेस की सरकार बनने के बाद ही लगने शुरू हो गए थे। एक तो खुद के पास बहुमत का जादुई आँकड़ा न होना और उस पर से धड़ों में बॅंटी कॉन्ग्रेस। एक तरफ मौजूदा मुख्यमंत्री कमलनाथ, दूसरी ओर पर्दे के पीछे से कथित तौर पर सरकार चला रहे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और तीसरे पार्टी महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया के अपने-अपने हित।
प्रदेश अध्यक्ष पद पर सिंधिया के समर्थकों की दावेदारी के बाद जिस तरह कमलनाथ के वन मंत्री उमंग सिंघार ने दिग्विजय पर आरोप लगाते हुए पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गॉंधी को पत्र लिखा है उसने इस खेल को सार्वजनिक कर दिया है। इससे कई सवाल उठने लगे हैं। पहला, कमलनाथ सरकार कब तक बची रहेगी? दूसरा, सिंधिया प्रदेश अध्यक्ष बन पाएँगे? तीसरा, जो सबसे महत्वपूर्ण भी है कि क्या दिग्विजय फिर से प्रदेश में पार्टी की कब्र खोद कर ही मानेंगे?
दिग्विजय सिंह लगातार 10 साल (1993-2003) तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे। लेकिन, अपनी नीतियों से उन्होंने पार्टी को ऐसा नुकसान पहुॅंचाया कि कभी गढ़ रहे एमपी की सत्ता में लौटते-लौटते कॉन्ग्रेस को 15 साल लग गए और जब पहुॅंची तो भी बैसाखियों के सहारे। 2003 के विधानसभा चुनावों में उमा भारती ने दिग्विजय को ‘मिस्टर बॅंटाधार’ का नाम दिया था, जो जनता की जुबान पर चढ़ गया। चुनाव हारने के बाद दिग्विजय केंद्र की राजनीति में आ गए और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गॉंधी के शुरुआती राजनीतिक गुरुओं में माने जाते हैं। राहुल के नेतृत्व में कॉन्ग्रेस ने जो उपलब्धियॉं हासिल की है उस पर गौर करें तो साफ हो जाता है कि विवादित बयानों के मसीहा दिग्विजय सिंह अपनी ही पार्टी का बॅंटाधार करने में किस कदर उस्ताद हैं। लिहाजा, सिंघार के खत से पार्टी में हलचल तो मचनी ही थी।
सिंघार का दावा है कि दिग्विजय सिंह कमलनाथ सरकार को पटरी से उतारने की कोशिश कर रहे हैं। सोनिया गाँधी को लिखे खत में उन्होंने कहा है कि दिग्विजय खुद को प्रदेश में ‘पावर सेंटर’ के रूप में स्थापित कर कमलनाथ सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर रहे हैं। वे मुख्यमंत्री कमलनाथ और उनके मंत्रिमंडल सहयोगियों को पत्र लिख उसे सोशल मीडिया में वायरल कर रहे हैं।
आगे उन्होंने दिग्विजय सिंह पर हमला करते हुए लिखा है कि व्यापमं घोटाला, ई-टेंडरिंग घोटाला, वृक्षारोपण घोटाला को लेकर उन्होंने मुख्यमंत्री कमलनाथ को पत्र लिखा। लेकिन सिंहस्थ घोटाले को लेकर वे कुछ नहीं कहते, क्योंकि इससे संबंधित विभाग उनके पुत्र जयवर्धन सिंह के पास है।
प्रदेश के एक और मंत्री सज्जन सिंह वर्मा भी सिंघार के समर्थन में आगे आए हैं। दबी जुबान राज्य के कई मंत्री दिग्विजय पर लगे आरोपों को सही बता रहे। पर कॉन्ग्रेस की परेशानी यह है कि राज्य के 5 मंत्री दिग्विजय सिंह के भी साथ हैं।
यह सब ऐसे वक्त में हो रहा है जब ज्योतिरादित्य पहले से ही प्रदेश अध्यक्ष बनने को लेकर पार्टी को अल्टीमेटम दे चुके हैं। फिलहाल इस पर फैसला पार्टी ने हरियाणा और झारखंड के विधानसभा चुनावों का हवाला देकर टाल दिया है।
संकट को लेकर फौरन हरकत में नहीं आने की यह आदत कहीं एमपी में कॉन्ग्रेस सरकार को ही न डूबो दे। वैसे भी, मध्य प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता गोपाल भार्गव जुलाई में ही कह चुके हैं कि यदि उनके नंबर 1 या नंबर 2 का आदेश आया तो कमलनाथ सरकार 24 घंटे भी नहीं चलेगी।