गाँधी परिवार के स्वामित्व वाले राजीव गाँधी फाउंडेशन को किए गए ‘दान’ की लंबी लिस्ट देखकर यह लगता है कि अब कॉन्ग्रेस पार्टी और गाँधी परिवार द्वारा किए गए के बड़े घालमेल से पर्दा उठ सकता है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ गाँधी परिवार की गुपचुप मीटिंग और डोनेशन के किस्से सामने आने के बाद एक राजनीतिक तूफान पैदा हो गया है। कल ही यह खुलासा हुआ है कि चीनी सरकार ने भी राजीव गाँधी फाउंडेशन को दान दिया था। अब गाँधी परिवार के स्वामित्व वाले इस फाउंडेशन के मामले में एक और विवरण सामने आया है।
एक ट्वीट में, वकील और टीवी पैनलिस्ट शहजाद पूनावाला ने लिखा है कि वर्ष 1991-92 में भारत के तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने केंद्रीय बजट से सोनिया गाँधी के नेतृत्व वाले राजीव गाँधी फाउंडेशन को पाँच साल की अवधि में 100 करोड़ रुपए की राशि आवंटित करने की कोशिश की थी, और भारी हंगामे के बाद इसे रोक दिया गया था।
1991-92 में भारतीय संसद की केंद्रीय बजट की चर्चा के संग्रहीत अभिलेख के एक सेक्शन में देखा जा सकता है कि जब तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने राजीव गाँधी फाउंडेशन को 100 करोड़ रुपए की राशि आवंटित की थी, जिसपर विपक्षी दलों ने भारी हंगामा करते हुए सवाल किया कि आखिर कॉन्ग्रेस सरकार गाँधी परिवार द्वारा चलाए जाने वाले किसी फाउंडेशन के लिए धन कैसे आवंटित कर सकती है?
मनमोहन सिंह द्वारा बनाए गए 1991-92 के केंद्रीय बजट दस्तावेज में एक और प्रावधान भी था। इसमें कहा गया कि 5 साल की अवधि में राजीव गाँधी फाउंडेशन को 100 करोड़ रुपए की राशि दान की जाएगी। यह राशि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास, साक्षरता के प्रचार, पर्यावरण की सुरक्षा, सांप्रदायिक सौहार्द और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने, दलितों के उत्थान के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग से संबंधित अनुसंधान और कार्रवाई कार्यक्रमों की पहल करने, महिलाओं और विकलांग व्यक्तियों, प्रशासनिक सुधार और वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की भूमिका के लिए बताई गई थी।
सिर्फ 100 करोड़ ही नहीं, आवश्यकता पड़ने पर 250 करोड़ का अलग प्रबंध
यदि इसके लिए 100 करोड़ रूपए कम पड़ते, तो केंद्रीय बजट में 250 करोड़ रुपए अलग से भी रखे जाने थे। बजट दस्तावेज़ के खंड-58 में लिखा गया है, “इन कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के लिए आवश्यक निर्धारण के उद्देश्य से, वित्त मंत्रालय के योजना परिव्यय में लगभग 250 करोड़ रुपए की राशि का प्रावधान शामिल किया गया है।”
इसके बाद हुई चर्चा में, मनमोहन सिंह ने राजीव गाँधी फाउंडेशन का एक पत्र को पढ़ा था, जिसमें कहा गया था कि फाउंडेशन योगदान की सराहना करता है, लेकिन यह सोचता है कि सरकार को स्वयं उपयुक्त परियोजनाओं में धन का निवेश करना चाहिए।
‘मनमोहन सिंह संसद में कैबिनेट के प्रतिनिधि हैं या फिर शाही परिवार के’
इस निधि को लेकर हुए भारी हंगामे के बाद मनमोहन सिंह ने यह साबित करने का प्रयास किया था कि राजीव गाँधी फाउंडेशन ने खुद ही इतनी बड़ी राशि लेने के लिए उदारतापूर्वक मना कर दिया, (एक बड़े राजनीतिक विवाद के बाद)। इस होशियारी के लिए आजमगढ़ से जनता दल के सांसद चन्द्र जीत यादव ने मनमोहन सिंह को लताड़ा था।
चंद्रजीत यादव ने सवाल किया था कि क्या मनमोहन संसद में गाँधी परिवार के मंत्रिमंडल का प्रतिनिधित्व करते हैं। यादव ने कहा था कि वित्त मंत्री बहुत ही लापरवाही से बजट से निपट रहे हैं।
उन्होंने कहा –
“हम देश के बजट पर चर्चा कर रहे हैं और बहस अभी भी जारी है। सरकार इतने अव्यवहारिक रवैए से राजीव गाँधी फाउंडेशन के पैसे आवंटित करने और फिर इसे वापस लेने के लिए इस तरह का तरीका नहीं अपना सकती है। इससे यह प्रतीत होता है, जैसे कि राजीव गाँधी फाउंडेशन इस देश के बजट का मास्टर है। जिस क्षण फाउंडेशन से एक पत्र आता है, वित्त मंत्री सदन के सामने आते हैं और एक बयान देते हैं। मुझे नहीं पता कि वह मंत्रिमंडल की ओर से बोल रहे हैं या नहीं। इसके अलावा, मुझे नहीं पता कि सरकार को इस पर चर्चा करने का अवसर मिला या नहीं। यह इस देश की संसद से पेश आने कोई तरीका नहीं है, जो कि इस देश के वित्तीय मामलों का केंद्र है।”
यादव ने यहाँ तक सवाल उठाया कि क्या मनमोहन सिंह कैबिनेट की ओर से देश के वित्त मंत्री के रूप में बोल रहे थे या वे कॉन्ग्रेस के शाही परिवार का प्रतिनिधित्व कर रहे थे? उन्होंने कहा था कि वित्त मंत्री इस संसद को हल्के में ले रहे हैं और मैं सरकार के अव्यवहारिक तरीके का कड़ा विरोध करता हूँ।
राजीव गाँधी फाउंडेशन को लेकर हुए हैं बड़े खुलासे
राजीव गाँधी फाउंडेशन ने न केवल चीन के दूतावास से बल्कि चीन सरकार से भी एक बार नहीं बल्कि कम से कम तीन बार वर्ष 2005 और 2009 के बीच ‘वित्तीय सहायता’ प्राप्त की थी। भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने शुक्रवार (जून 26, 2020) को आरोप लगाया कि यूपीए के वर्षों के दौरान प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (पीएमएनआरएफ) राजीव गाँधी फाउंडेशन को पैसे दान कर रहा था और सार्वजनिक धन परिवार के खातों में डाइवर्ट कर दिया गया था।
भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि सार्वजनिक धन को परिवार द्वारा चलाए जाने वाले संगठन के लिए इस्तेमाल किया गया और यह न केवल एक ‘धोखाधड़ी’ है, बल्कि भारत की जनता के साथ एक ‘बड़ा विश्वासघात’ भी है। यूपीए सरकार में लोग राजीव गाँधी फाउंडेशन में दान करते थे, जिसकी अध्यक्ष सोनिया गाँधी थीं।
UPA के दौरान राजीव गाँधी फाउंडेशन में चीन की सरकार द्वारा किए गए डोनेशन ऐसे समय में सामने आए हैं, जब कॉन्ग्रेस द्वारा केंद्र सरकार पर भारत की जमीन चीन को सौंपने का दुष्प्रचार किया जा रहा था।
राजीव गाँधी फाउंडेशन ने पीएमएनआरएफ से एक बार नहीं बल्कि तीन बार ‘डोनेशन’ हासिल किया था
ऑपइंडिया ने बताया था कि किस प्रकार राजीव गाँधी फाउंडेशन ने न केवल चीन के दूतावास से बल्कि चीन सरकार से भी एक बार नहीं बल्कि कम से कम तीन बार वर्ष 2005 और 2009 के बीच ‘वित्तीय सहायता’ प्राप्त की थी।
चीन की कम्युनिस्ट सरकार द्वारा किए गए इस पहली ‘सहायता’ में 10 लाख रुपए और दूसरी में 90 लाख रुपए दीए गए थे। रिपोर्ट के बाद कॉन्ग्रेस से सवाल उठाए गए थे और इसकी शुरुआत करते हुए, बीजेपी ने पूछा था कि कॉन्ग्रेस का चीन को लेकर हमेशा से ही लचीला रुख था और साथ ही गलवान घाटी में जारी गतिरोध के बीच चीन और कॉन्ग्रेस के बीच हुए ‘व्यापारिक समझौते’ के कारण ही इस प्रकार के बयान दे रही थी।
यह पता चला है, राजीव गाँधी फाउंडेशन की वार्षिक रिपोर्ट में चीन की सरकार से वित्तीय सहायता मिली थी, जिसकी अध्यक्षता सोनिया गाँधी ने की है और इसमें राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी वाड्रा, मनमोहन सिंह और चिदंबरम ट्रस्टी के रूप में सूचीबद्ध हैं। जैसा कि वार्षिक रिपोर्ट में बताया गया है, यूपीए के दौरान राजीव गाँधी फाउंडेशन को एक बार नहीं बल्कि कई बार प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (PMNRF) से दान मिला था।
वर्ष 2005-2006 में, वार्षिक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है कि राजीव गाँधी फाउंडेशन को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष से दान मिला। 2006-2007 की रिपोर्ट में भी यही खुलासा किया गया है। और इसके बाद 2007-2008 में भी पीएमएनआरएफ से फाउंडेशन को ‘दान’ मिला था।