केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हिंदी भाषा को लेकर उत्पन्न हुए विवाद पर बुधवार को अपने एक बयान में कहा, “मैंने क्षेत्रीय भाषाओं पर हिंदी भाषा को थोपने की बात कभी नहीं कही। मैंने सिर्फ इतनी अपील की थी कि मातृभाषा के बाद दूसरी भाषा के रूप में हिंदी को सीखना चाहिए। मैं खुद गैर हिंदी भाषी राज्य गुजरात से आता हूँ। अगर कुछ लोग इस पर राजनीति करना चाहते हैं, तो यह उनकी च्वॉइस है।”
खासतौर से दक्षिण भारत में हो रहे बवाल के बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि उन्होंने कभी भी हिंदी को क्षेत्रीय भाषाओं पर थोपने की बात नहीं कही है। हिंदी को केवल दूसरी भाषा के तौर पर सीखने की बात की थी। इसपर अगर किसी को राजनीति करनी है तो वह करता रहे।
Union Home Minister Amit Shah: I never asked for imposing Hindi over other regional languages&had only requested for learning Hindi as the 2nd language after one’s mother tongue. I myself come from a non-Hindi state of Gujarat. If some people want to do politics, its their choice pic.twitter.com/JXS3VFTKUl
— ANI (@ANI) September 18, 2019
बता दें कि कॉन्ग्रेस नेता कार्ति चिदंबरम ने हिंदी विवाद पर कहा कि हम तमिलनाडु में कभी भी हिंदी को जबरदस्ती थोपना स्वीकार नहीं करेंगे। हिंदी इस देश की एकजुट ताकत नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हम 20 सितंबर को डीएमके द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शन में हिंदी के मुखर रूप से लागू होने का विरोध करेंगे।
उधर अब नए समीकरण के तहत डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन ने हिंदी थोपने को लेकर चलाए जा रहे आंदोलन को खत्म कर दिया है। स्टालिन ने आंदोलन ख़त्म करने की घोषणा करते हुए कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मामले पर सफाई दे दी है। जिससे बात यहीं ख़त्म होती है लेकिन साथ ही स्टालिन ने कहा कि हिंदी थोपने के खिलाफ डीएमके की लड़ाई जारी रहेगी।
DMK President MK Stalin: Our statewide protest against imposition of Hindi has been postponed after Union Minister Amit Shah has given his clarification on the matter. DMK we will continue to oppose Hindi imposition. pic.twitter.com/vDdJToQAqQ
— ANI (@ANI) September 18, 2019
आपको बता दें कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हिंदी दिवस के अवसर पर हिंदी भाषा को बढ़ावा देने की अपील करते हुए कहा था कि देश को एकजुट करने का काम अगर कोई भाषा कर सकती है, तो वह हिंदी ही है। वैसे भारत कई भाषाओं का देश है और हर भाषा का अपना अलग महत्व है। हालाँकि, पूरे देश में एक भाषा का होना बेहद जरूरी है, जो दुनिया में उसकी पहचान बन सके। उनके इस वक्तव्य के बाद से ही हिंदी भाषा की लेकर राजनीति शुरू हो गई थी।