1934 में भूकंप आया और कोसी नदी पर बना रेल पुल क्षतिग्रस्त हो गया। इसके कुछ साल बाद देश आजाद हो गया और तब से अब तक न जाने कितनी सरकारें आईं। लेकिन, कोसी रेल पुल नहीं बना। 18 सितंबर 2020 को इस रेल पुल की सौगात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार को देने जा रहे हैं।
हालाँकि इसकी नींव 2003 में 6 जून को उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ही रख दी थी। लेकिन, बाद के सालों में यह प्रोजेक्ट ‘कॉन्ग्रेसशाही’ में लटक गई। जिस योजना की लागत 323.41 करोड़ रुपए थी, वह बढ़कर 516.02 करोड़ रुपए हो गई। सत्ता में मोदी के आगमन के बाद इस प्रोजेक्ट ने तेजी पकड़ी और अब इस पर ट्रेनें दौड़ने को तैयार हैं।
आज, यानी 17 सितंबर को 70 साल के हो गए मोदी असल में पीढ़ियों के ऐसे ही सपने को पूरा करने का नाम है। चाहे वह घर-घर बिजली पहुँचाने की योजना हो या फिर शौचालय। जन-धन के जरिए बैकिंग सिस्टम से अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को जोड़ना हो या फिर रसोई गैस सिलेंडर से धुएँ में रोज़ झुलसने से महिलाओं को मुक्ति दिलाना।
इन्हीं वजहों से मोदी की वह छवि आपके मन में पैदा होती है, जिससे बीजेपी 2019 के आम चुनावों से पहले रूबरू हुई थी। वरिष्ठ पत्रकार संतोष कुमार ने अपनी पुस्तक ‘भारत कैसे हुआ मोदीमय’ में लिखा है, “इस प्रजेंटेशन में सवाल हुआ- अगर आप (दो बड़े उद्योपतियों का नाम लिया गया, जिसमें एक भगोड़ा है तो दूसरा लंबे समय तक जेल में रहा, जिनके नाम का खुलासा करना उचित नहीं होगा) इनका नाम लेते हैं तो आपके जेहन में क्या छवि आती है? जवाब था- फ्रॉड की। लेकिन जब नरेंद्र मोदी का नाम लेते हैं तो क्या जवाब होता है? एक ऐसा नेता जो कोई भी बड़ा निर्णय ले सकता है, चाहे विकास के एजेंडे पर हो या फिर राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा।”
आपके जेहन में उभरने वाली इसी छवि का चमत्कार था कि 2019 में अकेले दम पर बीजेपी 300 के पार चली गई। इस ऐतिहासिक जनादेश की कई तरहों से व्याख्या हो चुकी है, इसलिए हम इसके ग्राउंड जीरो पर हुए असर पर नजर डालते हैं।
‘मोदी मैंडेट 2019’ में प्रदीप भंडारी लिखते हैं कि उन्होंने कैराना में एक बुजुर्ग महिला से पूछा;
माताजी, आप क्या चाहती हैं प्रधानमंत्री कौन बनना चाहिए इस बार? वे जवाब देती हैं- भैया, हमको तो मोदी ठीक लगता है। भंडारी फिर पूछते हैं क्यों? ऐसा क्या किए हैं मोदी? महिला का जवाब होता है: क्या नहीं दिए। गैस चूल्हा दिए। घर दिए। पैखाना दिए। इतना कोई नहीं किया हम गरीब लोगों के लिए। उनको ऊपर वाला भेजा है हमलोगों के लिए!
इसी तरह प्रयागराज में एक नाविक भंडारी से कहता है, “पाकिस्तान को घर में घुसकर मारे हैं मोदी जी। ये होता है मर्द का जिगरा। ऐसी हवा टाइट की है इनकी कि अब भारत की ओर आँख उठाकर भी नहीं देखेंगे।” जनता ऐसे जवाब तभी देती है, जब किसी का नाम उम्मीद जगाता हो और साथ ही उनके पूरे होने का भरोसा भी।
ऐसा भी नहीं है कि यह प्रभाव किसी खास राज्य या इलाके तक ही सीमित है। पश्चिम बंगाल के डायमंड हार्बर में एक पूर्व सैनिक ने भंडारी से कहा था, “जीते कोई भी, मेरा वोट मोदी को जाएगा। राष्ट्रीय सुरक्षा और ओआरओपी के लिए।” ओआरओपी यानी वन रैंक-वन पेंशन। अब आप याद करिए कि सैनिकों की यह माँग कितने समय से लंबित थी और मोदी के सत्ता में आते ही किस तेजी से इसे पूरा किया गया था।
याद करिए कि आम चुनाव के वक्त लिबरल गैंग बेगूसराय में कन्हैया कुमार नामक गुब्बारे में कितनी हवा भर रहे थे। वहीं एक युवा ने भंडारी को बताया था, “वोट मोदी को ही देंगे। वो देश को जोड़ने और आगे बढ़ाने का काम किए हैं। कन्हैया देश के टुकड़े-टुकड़े करने की बात करता है। अगर वो संसद में चला गया तो कश्मीर को भी अलग करने की माँग करने लगेगा।” यही भरोसा सीतामढ़ी में दिखा, जब कोई कहता है, “भैया अब बिजली आने लगी है तो लालटेन का क्या काम।”
भंडारी ने यह किताब आम चुनावों के दौरान देश के अलग-अलग हिस्सों में किए गए भ्रमण के अपने अनुभवों पर लिखी है। जब आप इसे पढ़ेंगे तो पाएँगे कि मोदी की विकासवादी और मजबूत नेता की यह छवि देशव्यापी है।
सत्ता में लौटने के बाद उन्होंने जिस तरह जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने, सीएए और हाल में चीन के साथ सीमा पर तनाव को लेकर रूख दिखाया है, उससे उनकी मजबूत नेता की वह छवि और पुख्ता हुई है, जो सर्जिकल और एयर स्ट्राइक जैसे साहसिक निर्णयों से बनी थी।
दूसरी तरफ कोरोना संकट के दौरान जिस तरह आत्मनिर्भर भारत का अभियान और आर्थिक पैकेज लाया गया, उसने वंचित तबकों के बीच मोदी की विकासवादी छवि और प्रगाढ़ की है। चाहे वह 10 करोड़ गरीबों के खाते में सीधे रकम ट्रांसफर करना हो या उज्ज्वला स्कीम के तहत 8 करोड़ से ज्यादा बीपीएल महिलाओं को तीन महीने तक एलपीजी सिलेंडर मुफ्त देने का फैसला या फिर गरीबों को 5 किलो प्रति व्यक्ति मुफ्त गेहूँ या चावल तीन महीने तक देने का ऐलान वगैरह, वगैरह…।
घनघोर संकट के वक्त भी निचले पायदान के लोगों को लेकर यही चिंता जमीन पर मोदी मैजिक पैदा करती है और यह हर बीतते दिन के साथ पहले से ज्यादा प्रभावी दिखती है।
जैसा कि संतोष कुमार ने भारत कैसे हुआ मोदीमय में लिखा भी है, “जैसे कोई माँ अपने सुंदर बेटे को देखकर ईष्र्या नहीं कर सकती, वैसे ही मोदी भाजपा के लिए हैं और जब तक ऐसा चेहरा मौजूद हो, पार्टी उसे भुनाएगी ही। निश्चित तौर से भाजपा की वर्ष 2024 की पटकथा तैयार है और शायद 2026 की भी, जब मोदी 75 साल के हो जाएँगे।”
यह केवल भाजपा की ही पटकथा नहीं है। यह सपने देखने छोड़ देने वाली आँखों में उम्मीदें जगाने की पटकथा है। विकास के सपनों को पूरा करने की पटकथा है। और सबसे बढ़कर मजबूत एवं आत्मनिर्भर भारत की पटकथा है। इन पटकथाओं का ईंधन केवल एक है। उसका नाम है: मोदी।