पटियाला.. इसका नाम लेते ही देश के लोगों के जेहन में ‘पटियाला पेग’ आता है, जिसे यहाँ के महाराजाओं ने लोकप्रिय बनाया था। कैप्टेन अमरिंदर सिंह के दादा भूपिंदर सिंह ने इसे प्रचलित किया था। खुद कैप्टेन ने अपनी आत्मकथा में इसका जिक्र किया है। भूपिंदर सिंह ने अंग्रेजों को एक खास माप का पेग पिलाया, जिससे मदमस्त होकर वो महाराज की टीम से मैच हार गए। आज पटियाला के राजपरिवार के इस ‘पटियाला पेग’ के राजनीतिक स्वाद पर खतरा उत्पन्न हो गया है।
पंजाब में एक बार फिर से मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह और कॉन्ग्रेस के एक और नेता नवजोत सिंह सिद्धू के बीच सिर-फुटव्वल चालू हो गया है। कभी अधिक बोलने के लिए जाने जाने वाले सिद्धू यूँ तो समय-समय पर राजनीतिक वनवास पर जाते रहते हैं, लेकिन जब भी लौटते हैं तो पंजाब कॉन्ग्रेस में घमासान मच जाता है। कभी कॉन्ग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के पाँव छू कर उन्हें प्रणाम करने वाले सिद्धू के बारे में कहा जाता है कि उन्हें पार्टी आलाकमान का वरदहस्त प्राप्त है।
पंजाब में कॉन्ग्रेस के दो दर्जन विधायक असंतुष्ट बताए जा रहे हैं और उन सभी को बातचीत के लिए दिल्ली बुलाया गया है। कॉन्ग्रेस ने 3 बड़े नेताओं को इस विवाद को सुलझाने के लिए लगाया है – राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री व पार्टी के पंजाब प्रभारी हरीश रावत और दिल्ली कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष जेपी अग्रवाल। सोमवार (मई 31, 2021) को सोनिया गाँधी ने जिन 25 विधायकों को दिल्ली समन किया है, उनमें कई मंत्री भी हैं।
ये सारा विवाद 2017 में ही शुरू हो गया था, जब मंत्री बनाए जाने के बाद भी सिद्धू खुश नहीं थे और कुछ ही महीनों बाद सिद्धू ने इस्तीफा दे दिया। मंत्री होने के बावजूद सिद्धू कपिल शर्मा के शो में हिस्सा ले रहे थे और मनोरंजन जगत से नाता नहीं तोड़ना चाहते थे। फिर कहा गया कि सिद्धू को वोकल कॉर्ड्स की समस्या के कारण डॉक्टरों ने कम बोलने की सलाह दी है, क्योंकि उनकी आवाज़ जा सकती है। वो काफी दिन वैष्णो देवी में थे। अब उनकी आवाज़ लौट आई है।
उधर प्रशांत किशोर पश्चिम बंगाल में अपना काम कर के पंजाब आए हैं, जहाँ अमरिंदर सिंह ने उन्हें कैबिनेट के रैंक का दर्जा दिया। उन्हें सरकार खजाने से वेतन देने का मामला सुप्रीम कोर्ट जा चुका है। पीके जहाँ भी जाते हैं, वहाँ बगावत का इतिहास रहा है। बंगाल में ही कई TMC नेताओं ने सिर्फ पीके को वजह बता कर इस्तीफा दिया। पंजाब में भी अब सरकारी योजनाओं से लेकर चुनावी रणनीति तक वही तैयार कर रहे हैं कैप्टेन अमरिंदर के लिए। ऐसे में और भी नाराज नेता उनके खिलाफ जा सकते हैं।
पंजाब में भाजपा और अकाली दल अलग हो चुके हैं, ऐसे में कॉन्ग्रेस अपने लिए फिर से मौका तलाश रही है। इसीलिए उसने ‘किसान आंदोलन’ का भरपूर समर्थन भी किया, जो अब पंजाब में उसकी ही सरकार की गले की फाँस बनता जा रहा है। जिस तरह से पार्टी पर दबाव डाल कर 2017 में बीच विधानसभा चुनाव में कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने खुद को मुख्यमंत्री प्रत्याशी घोषित करवाया था, अब वो आसार नज़र नहीं आ रहे।
अमरिंदर सिंह की उम्र अब 80 साल होने को आई है। पिछले कुछ हफ़्तों से उनके प्रतिद्वंद्वी सिद्धू ने उन पर हमले तेज़ कर दिए हैं। सुखजिंदर सिंह रंधावा और चरणजीत सिंह चन्नी कह रहे हैं कि 2017 के विधानसभा चुनाव में किए गए वादों को पार्टी ने पूरा नहीं किया। दोनों ही अमरिंदर सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। राज्य में सिखों के धर्म के अपमान की कई घटनाएँ सामने आई है, जिन्हें आधार बना कर हमले किए जा रहे हैं।
बैठकों का दौर लगातार 3 दिन चलेगा। हरीश रावत का कहना है कि पैनल पंजाब कॉन्ग्रेस के सभी 80 विधायकों से एक-एक कर अलग-अलग मुलाकात करेगा। इनमें मुख्यमंत्री भी शामिल हैं। पंजाब के 8 लोकसभा और 3 राज्यसभा सांसदों की राय भी ली जाएगी। पंजाब में कॉन्ग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ पहले ही दिल्ली पहुँच चुके हैं। वरिष्ठता के आधार पर विधायकों से मुलाकात का क्रम तय किया गया है।
उरमार के विधायक और पार्टी के पछड़ा नेता संगत सिंह गिल्ज़ियान को पहले दिन बैठक के लिए बुलाया गया। उन्होंने 2017 में मंत्री न बनाए जाने के बाद पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था। जालंधर कैंट के विधायक प्रगट सिंह तो सिद्धू के मित्र ही हैं और वो आरोप भी लगा चुके हैं कि CM अमरिंदर के राजनीतिक सचिव कैप्टेन संदीप संधू ने उन्हें आवाज़ उठाने पर झूठे मामलों में फँसाने की धमकी दी है।
राज्यसभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा पहले से ही सीएम अमरिंदर पर हमलावर रहे हैं। उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से इशारा करते हुए लिखा है कि साहसी बन कर अपना अंतर्मन को जवाब दीजिए, पंजाब की जनता और ईश्वर देख रहा है। उनका इशारा किधर था, समझ जाइए। सिद्धू भी ‘किसान आंदोलन’ का साथ पाने के लिए खूब किसानों की बातें कर रहे हैं और पंजाब सरकार को नसीहतें दे रहे हैं। पटियाला में किसानों से आंदोलन से कैप्टेन पहले ही दबाव में हैं।
पंजाब में सत्ताधारी पार्टी के लिए स्थिति इतनी बुरी है कि प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ अभी तक संगठन के पदाधिकारियों की नियुक्ति तक नहीं कर पाए हैं। कॉन्ग्रेस अब भी विवाद को छिपा कर यही कह रही है कि मुख्यमंत्री विचार-विमर्श का विषय नहीं हैं। पहली कोशिश तो यही होगी कि 2022 चुनाव से पहले संगठन का निर्माण हो जाए। ऊपर से कॉन्ग्रेस हिन्दुओं को सिखों, दोनों को ही खुश रखना चाहती है।
I have repeatedly emphasised that Punjab Govt & Farmer Unions can come together to give production, storage & trade of all agricultural produce in the hands of the farmers … Farmers unity can be transformed from being a Social Movement to an unparalleled Economic Force !! pic.twitter.com/k9pPoYoTIJ
— Navjot Singh Sidhu (@sherryontopp) May 30, 2021
दरअसल, सुनील जाखड़ को हटा कर अगर नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश में पार्टी की कमान दी जाती है तो इससे गलत सन्देश जाएगा कि पार्टी ने जट्ट नेताओं को ही संगठन और सरकार का मुखिया बना रखा है। इसीलिए, उन्हें हटाने की स्थिति में उसी कद का कोई हिन्दू नेता खोजना होगा। स्थानीय भाजपा यूनिट ने दलित सीएम बनाने की बात कह के दबाव डाला है। अकाली दल भी दलित उप-मुख्यमंत्री बनाने की बात कह रहा है।
अब कॉन्ग्रेस इस सोशल इंजीनियरिंग का जवाब दे भी तो कैसे। अगर किसी हिन्दू नेता को अध्यक्ष बनाया जाता है तो विजय इंद्र सिंगला और मनीष तिवारी के लिए दरवाजे खुल सकते हैं। दो कार्यकारी अध्यक्ष बना कर सोशल इंजीनियरिंग की जा सकती है। कृषि क्षेत्र में बड़ी पैठ रखने वाले लाल सिंह प्रदेश में पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेताओ में से हैं, लेकिन उनकी उम्र को देखते हुए उन्हें शायद ही जिम्मेदारी दी जाए।
कॉन्ग्रेस को ये डर भी है कि चुनाव परिणाम सामने आने के बाद भाजपा और अकाली दल साथ मिल सकते हैं। जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर ‘मन की बात’ से लेकर अन्य कार्यक्रमों में सिख गुरुओं के बलिदान और सीखों की बातें करते हैं और कई अवसरों पर गुरूद्वारे जाकर मत्था टेकते हैं, उससे भी कॉन्ग्रेस परेशान हैं। अब देखना ये है कि पटियाला के ‘महाराजा’ के हक़ में फैसला होता है या बड़बोले सिद्धू के।