Saturday, November 23, 2024
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नेपाल पर चीन की वैक्सीन दादागिरी: दाम समेत कुछ भी न बताने की ‘शर्त’, पहले बॉर्डर पार कर हड़प चुका है कई गाँव

जिस बात ने नेपाली अधिकारियों को मुश्किल में डाला है वह है, चीनी फर्म की वह शर्त है जिसके तहत वैक्सीन की वाणिज्यिक खरीद के लिए नेपाल को एक नॉन-डिस्क्लोजर एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करना होगा।

चीन ने बुधावर (26 मई) को नेपाल को अनुदान सहायता के तहत 10 लाख खुराक उपलब्ध कराने की घोषणा की। लेकिन स्थानीय अधिकारियों का मानना है कि चीन से वैक्सीन खरीदना उतना आसान भी नहीं हैं।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन द्वारा सिनोफार्म नामक कंपनी के टीके नेपाल को दिए जाने की संभावना है। इससे पहले मार्च में भी चीन ने नेपाल को इसी कंपनी की वैक्सीन की 800,000 डोज मुहैया कराई थी।

अपनी वैक्सीन की खरीद के लिए चीन ने नेपाल के सामने रखी शर्त

लेकिन चीनी वैक्सीन को लेकर जिस बात ने नेपाली अधिकारियों को मुश्किल में डाला है वह है, चीनी फर्म की वह शर्त है जिसके तहत वैक्सीन की वाणिज्यिक खरीद के लिए नेपाल को एक नॉन-डिस्क्लोजर एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करना होगा।

नॉन-डिस्क्लोजर एग्रीमेंट एक कानूनी रूप से बाध्यकारी कॉन्ट्रैक्ट है जिसका अर्थ है, एक गोपनीय संबंध स्थापित करना, इसके तहत कीमत सहित कोई भी विवरण सार्वजनिक नहीं किए जा सकते हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने इस सप्ताह की शुरुआत में बताया कि प्रस्तावित नॉन-डिस्क्लोजर एग्रीमेंट में कीमत और विशिष्टताओं सहित एक दर्जन से अधिक मुद्दे शामिल हैं।

एक नॉन-डिस्क्लोजर एग्रीमेंट में विशिष्टताओं में ट्रेड सिक्रेट्स, बौद्धिक संपदा, प्रॉडक्ट फॉर्मूला, विकास के तहत प्रॉडक्ट्स के बारे में जानकारी, कंप्यूटर कोड, वित्तीय जानकारी, अन्य कंपनियों के साथ कॉन्ट्रैक्चुअल एग्रीमेंट और अन्य चीजों के साथ मालिकाना जानकारी शामिल हो सकती है। नेपाली अधिकारी ने कहा, ‘चीनी कंपनी एक नॉन-डिस्क्लोजर एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करने के बाद ही हमें मात्रा, कीमत और वितरण कार्यक्रम के बारे में सूचित करेगी।’

चीन ‘झूठ’ और ‘प्रोपेगेंडा’ के सहारे चलाता है वैक्सीन का धँधा!

अपनी वैक्सीनों को बेहतर बताकर उसे दूसरे देशों को बेचना और वैक्सीनों के बारे में सही जानकारी न देना ही चीन की रणनीति का हिस्सा रहा है। चीन नेपाल के साथ जिस नॉन डिस्क्लोजर एग्रीमेंट के जरिए वैक्सीन की कीमत समेत अन्य जानकारियाँ छिपा रहा है, वह भी उसके लिए नया नहीं है।

दरअसल, न तो चीनी कंपनी और न वहाँ की मीडिया, अपनी कोरोना वैक्सीन की विश्वसनीयता साबित करने का कोई प्रयास करती है और न ही उसके प्रभावकारी डेटा के बारे में कोई जानकारी देती है। बस दूसरों की बुराई करके तथ्यों से बरगलाने की कोशिश चलती रहती है।

इसी साल एक आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक शीर्ष चीनी अधिकारी ने माना था कि देश में विकसित वर्तमान टीके कोरोनावायरस के लिए पर्याप्त सुरक्षा दर प्रदान नहीं करते हैं और प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए चीन विभिन्न टीकों को मिलाने पर विचार कर रहा है।

चीनी कँपनियाँ सिनोवेक (Sinovac) और सिनोफार्म (Sinopharm) ज्यादातक कोरोना वैक्सीन का निर्माण कर रही हैं। सिनोवेट प्राइवेट जबकि सिनोफार्म सरकारी एक कंपनी है। चीन इन वैक्सीनों की सप्लाई दर्जनों देशों में कर रहा है, जिनमें मैक्सिको, तुर्की, इंडोनेशिया, हंगरी, ब्राजील, पाकिस्तान और तुर्की, नेपाल शामिल हैं।

लेकिन चीन द्वारा सप्लाई की गई ज्यादातर वैक्सीन की प्रभावशीलता में उसके दावे (78% प्रभावशीलता) के उलट अंतर पाया गया। ब्राजील ने सिनोवेक वैक्सीन के लास्ट स्टेज ट्रॉयल में पाया कि चीनी वैक्सीन का प्रभाव 50.38% है न कि 78%। यानी उनके हिसाब से वास्तविक प्रभावी क्षमता अब भी स्पष्ट नहीं है। इसी तरह तुर्की ने इसकी प्रभावी क्षमता को 91.25% रखा और इंडोनेशिया ने इसके प्रभावी दर को 65.3% रखा। इसके बाद ब्राजील ने अपने हालिया बयानों में कहा कि कुछ केसों में दूसरों की तुलना में इसकी प्रभावकारिता का स्तर अधिक है।

नेपाल के बड़े हिस्से पर कब्जा जमा चुका है चीन

एक हालिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नेपाल की जमीन पर चीन द्वारा 9 इमारतें खड़ी किए जाने की बात सामने आ रही है। चीनी कब्जे की शिकायतों के बाद शिकायत मिलने के बाद ‘चीफ डिस्ट्रिक्ट ऑफिसर (CDO)’ चिरंजीवी गिरी के नेतृत्व में नेपाली अधिकारियों की टीम ने घटनास्थल का दौरा किया।

इन अधिकारियों के मुताबिक, चीन ने नेपाल की सीमा में 2 किलोमीटर भीतर तक घुसपैठ की है, पिलर संख्या-12 से भी आगे बढ़ कर भूमि कब्जाई है। वहीं पिलर संख्या-11 का तो कोई अता-पता ही नहीं है कि वो कहाँ गायब हो गया। कहा जा रहा है कि वहाँ अवैध चीनी निर्माण 2010 में ही शुरू हो गया था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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