Thursday, July 17, 2025
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ब्रिटेन के एक शहर मे 4% मुस्लिम, लेकिन 64% रेप-यौन शोषण यही कर रहे…नई रिपोर्ट में फिर बेपर्दा हुआ ‘ग्रूमिंग गैंग’ : ‘पाकिस्तानी’ लिखने में होठ सिले, ‘एशियन’ बता सिर रेत में धँसाया

ब्रिटेन में पाकिस्तानी मूल के ग्रूमिंग गिरोहों द्वारा यौन शोषण के मामले में बड़ा खुलासा हुआ है। सिर्फ रॉदरहैम के 64% मामलों के लिए 4% पाकिस्तानी जिम्मेदार हैं। फिर भी इसमें ‘पाकिस्तानी मुसलमानों’का नाम नहीं है, बल्कि आरोपितों को ‘एशियाई’कहा जा रहा है।

ब्रिटेन में पाकिस्तानी मूल के गिरोहों द्वारा यौन शोषण के मामले में बड़ा खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार अकेले ब्रिटेन के रॉदरहैम बाल यौन शोषण के 64% मामलों के लिए 4% पाकिस्तानी जिम्मेदार हैं। फिर भी इसमें ‘पाकिस्तानी मुसलमानों’ का नाम नहीं है। बल्कि आरोपितों को ‘एशियाई’ कहा जा रहा है।

‘बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार’ पर राष्ट्रीय लेखा परीक्षक ने ब्रिटेन के ‘ग्रूमिंग गिरोह’ को लेकर कई खुलासे किए हैं। ब्रिटेन की गृह सचिव एयवेटे कूपर ने संसद को बैरोनेस लुईस की रिपोर्ट की जानकारी दी। 197 पेज की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘अज्ञानता और पूर्वाग्रह की संस्कृति’ की वजह से ग्रूमिंग गिरोहों द्वारा नाबालिगों के यौन शोषण के मामलों की जाँच ठीक से नहीं हो पाई। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन ग्रूमिंग गिरोहों में से अधिकांश पाकिस्तानी और ‘एशियाई’ पुरुष थे।

गौरतलब है कि ब्रिटिश पाकिस्तानी पुरुषों के नेतृत्व वाले ग्रूमिंग गिरोहों के हाथों बाल यौन शोषण का मुद्दा वर्षों से ब्रिटेन की एक ‘गंभीर समस्या’ रही है। 90 के दशक में करीब 11 साल की बच्चियों को ग्रूमिंग गिरोहों द्वारा उठाया गया। उसका चालीस सालों तक रेप किया गया। बच्चियों को पीटा गया, बेचा गया और यहाँ तक कि मार भी दिया गया। अकेले रॉदरहैम में ब्रिटिश पाकिस्तानी पुरुषों ने पिछले 16 वर्षों में 1,400 मासूमों को अपने हवस का शिकार बनाया।

रिपोर्ट की प्रस्तावना में ही लेडी केसी ने ‘समूह-आधारित बाल यौन शोषण’ शब्दों का इस्तेमाल कई बार कई पुरुषों द्वारा बच्चों के खिलाफ किए गए यौन शोषण से जुड़े अपराध के लिए किया है। इसमें बच्चियों के साथ किए गए बदसलूकी, जबरन गर्भपात, यौन संक्रमित बीमारियाँ और बच्चे के पैदा होने पर उन्हें माँ से अलग कर देने का जिक्र है।

अपराध और सोशल मीडिया का बाल यौन शोषण में इस्तेमाल

रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि हर साल 500,000 से ज़्यादा बच्चे यौन शोषण का शिकार हो रहे हैं। पुलिस ने 2024 में लगभग 100,000 अपराध दर्ज किए हैं। इनमें से करीब 17,100 बाल यौन शोषण से जुड़े थे। हालाँकि पाकिस्तानी ग्रूमिंग गैंग का द्वारा अपराध का आँकड़ा मात्र 700 बताया गया है। लेडी केसी ने कहा कि यह ‘बेहद असंभव’ है।

यू.के. में ग्रूमिंग गैंग के अपराधों की प्रकृति के बारे में रिपोर्ट कहती है, “ऐसे मामलों में अक्सर बदमाश एक कमजोर बच्ची को अपना निशाना बनाता है। गरीब, नौकर या शारीरिक रूप से अक्षम बच्चियाँ। इन बच्चों को ये बताया जाता है कि ये उनके ‘बॉयफ्रेंड’ हैं। उन्हें प्यार और उपहार दिए जाते हैं। घूमाने के लिए बाहर ले जाते हैं। इसके बाद उन्हें सेक्स के लिए दूसरे पुरुषों को देते हैं। बच्चे को नियंत्रित करने के लिए ड्रग्स और अल्कोहल दिया जाता है और उनके साथ हिंसा और जबरदस्ती भी किया जाता है।”

रिपोर्ट में कहा गया है, “समय के साथ इस मॉडल में कोई खास बदलाव नहीं आया है, हालाँकि अब ग्रूमिंग गैंग ऑनलाइन भी काम कर रहे हैं, और हॉटस्पॉट्स भी बदल रहे हैं।” ‘समूह-आधारित बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार’ पर राष्ट्रीय ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि ये ग्रूमिंग गिरोह अक्सर सामाजिक संबंधों के आधार पर आपस में जुड़े होते हैं और इसलिए अक्सर उम्र, जातीय पृष्ठभूमि और सामाजिक-आर्थिक स्थिति में मोटे तौर पर एक जैसे होते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है, “समूह में काम करने से अपराधियों पर इस खौफनाक करतूतों का कोई असर नहीं पड़ता है। महिलाओं के प्रति घृणा और असम्मान की स्थिति की वजह से ये पीड़िताओं की अनदेखी करते है।” रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ऑनलाइन यौन शोषण अपराध की वृद्धि से सामान्य रूप से बाल यौन शोषण की प्रकृति बदल गई है, जो अब सभी यौन शोषण अपराधों का 40% है।

खौफनाक आँकड़े

यू.के. के राष्ट्रीय पुलिस डेटा से पता चलता है कि 2023 में 78% बाल यौन शोषण की शिकार लड़कियाँ थी, जिनकी आयु 10 से 15 वर्ष के बीच थी। रिपोर्ट में लिखा गया है, “डेटा से पता चलता है कि अपराधियों की आयु अलग-अलग है, 2023 में 39% संदिग्ध 10 से 15 वर्ष की आयु के थे और 18% 18 से 29 वर्ष की आयु के थे। संदिग्धों की कम आयु बाल अपराध की रिपोर्टिंग में वृद्धि और ऑनलाइन गिरोह के काम करने की वजह से है। समूह-आधारित बाल यौन शोषण के पीड़ितों और अपराधियों के लिए एकत्र किया गया जातीय डेटा राष्ट्रीय स्तर पर कोई निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त नहीं है,”

रिपोर्ट में बताया गया है कि दुर्व्यवहार के पैटर्न में बहुत ज़्यादा बदलाव नहीं आया है, लेकिन सोशल मीडिया की वजह से बच्चियों से संपर्क करने के तरीकों में थोड़ा बदलाव आया है। जहाँ पहले पीड़िता के साथ शुरुआती संपर्क शॉपिंग सेंटर, पार्क में शुरू होता था, वहीं आज संपर्क सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए हो रहा है। रिपोर्ट कहती है कि ग्रूमिंग और शोषण के लिए स्थान भले ही बदल गए हों, लेकिन मॉडल समान है। बार-बार लापता होना, शोषण के लिए बच्चों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना, उन्हें ‘आज्ञाकारी’ बनाने के लिए ड्रग्स और शराब का इस्तेमाल, होटलों में गुमनाम चेक इन और चेक आउट करना और बच्चों को आकर्षित करने वाले हॉट स्पॉट जैसे कि वेप शॉप ले जाना शामिल है।

अपराधी यौन शोषण के लिए पीड़िताओं की अश्लील तस्वीरों का इस्तेमाल करते हैं। ग्रूमिंग गिरोह नाबालिग लड़कियों को अपनी तस्वीरें साझा करने के लिए लुभाते हैं और फिर उन तस्वीरों का इस्तेमाल करके उन्हें ब्लैकमेल करते हैं और उन तस्वीरों को सोशल मीडिया पर पोस्ट करने की धमकी देते हैं। इस तरीके से पीड़िताओं को और अधिक यौन शोषण सहने के लिए मजबूर किया जाता है और यह कई सालों तक चलता रहता है।

रिपोर्ट में बच्चियों की अश्लील तस्वीरें लेने के अपराधों (IIOC) में वृद्धि का भी जिक्र किया गया है। दिसंबर 2014 में ऐसे मामले 4,261 थे जो दिसंबर 2024 में 41,033 हो गए यानी पिछले 10 सालों में ऐसे अपराधों में 863% की वृद्धि हुई है। यह पाया गया कि इनमें से ज़्यादातर अपराध सोशल मीडिया पर होते हैं।

ग्रूमिंग गिरोहों की और जानकारी देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है, ” कई मामलों में उन्होंने जाँच की, जिसमें अपराधी और पीड़िता अलग-अलग समुदायों से आए थे। अपराधियों द्वारा ऐसी बच्चियों के प्रति क्रूरता ज्यादा दिखी।”

हालाँकि 2020 के गृह मंत्रालय के रिपोर्ट में समुदाय के नामों का उल्लेख नहीं किया गया है। लेकिन इससे साफ होता है कि मुस्लिम बलात्कार गिरोह यानी ग्रूमिंग गैंग, जिनमें से ज्यादातर पाकिस्तानी मूल के हैं, गैर-मुसलमानों के प्रति घृणा रखते हैं और गैर-मुस्लिम महिलाओं का यौन शोषण करके धार्मिक प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश करते हैं। यह विकृत मानसिकता इन अपराधों के पीछे अहम वजह है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि “ऑपरेशन स्टोववुड का मानना ​​है कि रॉदरहैम में लगभग दो-तिहाई अपराधी पाकिस्तानी पृष्ठभूमि से थे, और अधिकांश लड़कियाँ श्वेत थीं।” रॉदरहैम में बाल यौन शोषण के 64 प्रतिशत मामलों के लिए पाकिस्तानी पुरुष जिम्मेदार हैं।

इसके अलावा, ऑपरेशन स्टोववुड के तहत बाल यौन शोषण अपराधों के लिए दोषी ठहराए गए कुल 42 अपराधियों में से 62 प्रतिशत पाकिस्तानी पुरुष थे।

ब्रिटेन के अधिकारी जिहादियों का धर्म बताने से कतराते हैं। ऑडिट में पाया गया कि अधिकारियों ने जानबूझकर अपराधियों की धर्म- जाति दर्ज करने से परहेज किया। रिपोर्ट में कहा गया है, “हमने पाया कि अपराधियों की धर्म और जाति बताने से कतराया जाता है और दो तिहाई अपराधियों की जाति अभी भी दर्ज नहीं की गई है। इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर एकत्र किए गए डेटा से कोई सटीक आकलन देने में हम असमर्थ हैं।” रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि सीमित डेटा के बावजूद यह पाया गया कि अधिकांश अपराधी एशियाई जातीय पृष्ठभूमि के थे।

रिपोर्ट में पाया गया कि यू.के. के अधिकारी बाल यौन शोषण के मामलों में सटीक डेटा बेस तैयार करने और गंभीर केस की समीक्षा करने में विफल रहे हैं, अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करना तो दूर की बात है।

इसमें कहा गया है कि अभियोजन पर आपराधिक न्याय डेटा में वृद्धि देखी गई, लेकिन इसने बाल यौन शोषण के विभिन्न रूपों या समूहों में काम करने वाले अपराधियों के बीच अंतर नहीं किया गया। केसी रिपोर्ट ने इसे “सामूहिक विफलता” करार दिया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि एशियाई या पाकिस्तानी पुरुषों द्वारा श्वेत लड़कियों को तैयार करने और उनका यौन शोषण करने के बारे में कई रिपोर्ट, समीक्षा सामने आई है। फिर भी सिस्टम “लगातार इसे पूरी तरह से स्वीकार करने या सटीक डेटा एकत्र करने में विफल रहा है ताकि इसकी प्रभावी रूप से जाँच की जा सके।” रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘एशियाई ग्रूमिंग गिरोहों’ के बारे में दावों को खारिज करने के लिए बार-बार त्रुटिपूर्ण डेटा का इस्तेमाल किया जाता है। ये पीड़िताओं के लिए नुकसानदेह है, साथ ही यूके में कानून का पालन करने वाले एशियाई समुदायों के लिए भी नुकसानदेह है।

हालाँकि यूनाइटेड किंगडम ने आखिरकार ग्रूमिंग गिरोह के सदस्यों के पाकिस्तानी मूल के होने की बात कबूल कर ली है। अपराधियों की जाति के बारे में जाँच कर रहा है, लेकिन देश अभी भी खतरे को भाँप नहीं पाया है। यह जाति की समस्या नहीं है, यह धार्मिक रूप से प्रेरित विकृति मानसिकता की समस्या है। इस विकृति को बढ़ावा देने में न केवल पुलिस ने मदद की है, बल्कि राजनेताओं ने भी हर संभव कोशिश की कि इन पाकिस्तानियों ‘बलात्कारी जिहादी’ न बोला जाए। उनकी धार्मिक कट्टरता की कभी निंदा न की जाए। ये लोग मुस्लिम ग्रूमिंग गिरोहों के खिलाफ़ कार्रवाई करके ‘नस्लवादी’ कहलाने से बचना चाहते हैं।

यह याद रखना चाहिए कि 2019 में यूके की सत्ताधारी लेबर पार्टी ने इस्लामोफोबिया की ऑल-पार्टी पार्लियामेंट्री ग्रुप ऑन ब्रिटिश मुस्लिम्स (APPG) परिभाषा को अपनाया था। इसके मुताबिक पाकिस्तानी मुस्लिम ग्रूमिंग गिरोहों/बलात्कार गिरोहों की आलोचना करना मुसलमानों के खिलाफ़ ‘नस्लवादी’ है।

ब्रिटिश समाज की नजर में पीड़िता ही दोषी- ठहराने की शर्मनाक प्रवृत्ति पर प्रकाश डालती है।

रिपोर्ट में कहा गया है, “नस्लीय मुद्दों से बचने के अलावा, हम समाज में टीनएज लड़कियों के प्रति एक अस्पष्ट रवैया भी बनाए रखते हैं। हम अक्सर उन्हें वयस्कों (तथाकथित ‘वयस्कीकरण’) के रूप में आँकते हैं। खासकर असहाय लड़कियों को, जिन्हें अक्सर समय से पहले ‘बड़ा होने’ के लिए मजबूर किया जाता है। वे अपने खुद के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के लिए दोषी करार दिए जाते हैं।”

इसमें आगे कहा गया है, ” अज्ञानता, पूर्वाग्रह और गलत इरादे अपराधियों को सजा दिलाने, उन पर मुकदमा चलाने और बच्चों को नुकसान से बचाने में मददगार साबित होते हैं।” रिपोर्ट में आगे पाया गया कि बाल यौन शोषण के कई मामलों को बलात्कार से हटा दिया गया और कम अपराध वाले श्रेणी में बदल दिया गया। यहाँ तक कि 13 से 15 साल की उम्र के बच्चे को अपराधी के साथ ‘प्रेम में’ या ‘सहमति’ के साथ सेक्स के रूप में लिया गया। केसी रिपोर्ट ने सहमति की उम्र और बाल यौन शोषण के मामलों से निपटने के लिए पुलिस के दृष्टिकोण के बारे में कई सिफारिशें कीं। केसी की रिपोर्ट ने ग्रूमिंग गिरोहों की राष्ट्रीय जाँच को प्रेरित किया है। हालाँकि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ब्रिटिश पीएम कीर स्टारमर ने इस साल की शुरुआत में बाल यौन शोषण को लेकर राष्ट्रीय जाँच की मांगों को खारिज कर दिया था।

केसी ने 1990 के दशक के पुलिस डेटा का हवाला देते हुए बताया कि 10 से 18 साल की उम्र के 4,000 से ज़्यादा बच्चों को वेश्यावृत्ति से जुड़े अपराध में शामिल थे। 2015 में गंभीर अपराध अधिनियम में संशोधन के बाद “बाल वेश्यावृत्ति” शब्द को हटाया गया और उसकी जगह “बाल यौन शोषण” शब्द को लाया गया।

ग्रूमिंग गिरोहों को हमेशा बचाने की कोशिश की गई

जाहिर है, इस्लामोफोबिक और नस्लीय रूप से असंवेदनशील दिखने के डर ने ब्रिटेन के अधिकारियों को वर्षों तक पाकिस्तानी मुस्लिम ग्रूमर्स/बलात्कारियों के खिलाफ प्रभावी ढंग से कार्रवाई करने से रोका है। यूनाइटेड किंगडम के मुस्लिम-तुष्टीकरण करने वाले राजनीतिक दलों ने यह भी सुनिश्चित किया कि मुस्लिम समुदाय की आलोचना न की जाए। हालाँकि इस समुदाय के सदस्य विशेष रूप से पाकिस्तानी मूल के लोग, श्वेत और अन्य गैर-मुस्लिम लड़कियों का यौन शोषण करते रहे।

हमें याद रखना चाहिए कि लेबर पार्टी की सांसद सारा चैंपियन को 2017 में द सन में प्रकाशित एक लेख के लिए माफी माँगनी पड़ी थी जिसमें उन्होंने लिखा था कि “ब्रिटेन को ब्रिटिश पाकिस्तानी पुरुषों द्वारा श्वेत लड़कियों का बलात्कार और शोषण करने की समस्या है”। उन्होंने बताया कि ब्रिटेन में रिपोर्ट किए जा रहे बाल यौन शोषण में “मुख्य रूप से पाकिस्तानी पुरुष” शामिल हैं, उन्होंने कहा कि ‘नस्लवादी’ लेबल से बचने की प्रवृति अधिकारियों को जाँच करने से रोकती है।

2012 में, लेबर पार्टी के नेता और गृह मामलों की चयन समिति के अध्यक्ष कीथ वाज़ ने ग्रूमिंग जिहाद अपराधों को कम करके आँका और कहा कि वे नस्लीय रूप से प्रेरित नहीं हैं। उन्होने इस बात पर जोर दिया कि पूरे समुदाय को ‘कलंकित’ नहीं किया जाना चाहिए। ग्रूमिंग गिरोह के सदस्यों की पहचान उजागर न करने पर लेबर पार्टी का शुरू से जोर रहा है। ये मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति को दर्शाता है। 2011 में, पूर्व गृह सचिव जैक स्ट्रॉ ने पाकिस्तानी पुरुषों की सांस्कृतिक प्रथाओं को श्वेत लड़कियों के खिलाफ़ उनके अपराधों के लिए जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी पुरुष श्वेत लड़कियों को “आसान शिकार” के रूप में देखते हैं। नॉटिंघम क्राउन कोर्ट के न्यायाधीश ने दो पाकिस्तानी व्यक्तियों को कई नाबालिग श्वेत लड़कियों को बहला-फुसलाकर उनके साथ बलात्कार करने का दोषी ठहराया। हालाँकि अपराधियों की पहचान को कम आंका गया।

गलत सहानुभूति, नस्लीय भेदभाव, सांस्कृतिक संवेदनशीलता और नैतिकता के नाम पर यूनाइटेड किंगडम के नेता और पुलिस पाकिस्तानी पुरुषों को देश में लगभग चार दशकों तक कमज़ोर लड़कियों का बलात्कार करने और उनका शोषण करने से नहीं रोका और जवाबदेही से बचते रहे।

उपहार, ध्यान, प्यार का भ्रम, ड्रग्स, यौन शोषण और हिंसा: बलात्कार जिहादियों ने अपने गैर-मुस्लिम लक्ष्यों को कैसे ‘तैयार’ किया

बलात्कार जिहादी यानी ग्रूमिंग गैंग पहले लड़कियों पर पूरा नियंत्रण करते हैं। “इसकी शुरुआत किसी लड़की को बहुत से गिफ्ट देने, बॉयफ्रेंड बनने का झाँसा देकर उनके साथ अच्छा व्यवहार करना, उन पर ध्यान देना, उनके साथ रहस्य साझा करना हो सकता है। इस तरह वे बच्चों को दोस्तों और परिवार से अलग कर देते हैं। इससे बच्चियों को अपने दुर्व्यवहार करने वाले पर अधिक निर्भर हो जाते हैं, जिसे वे अपना ‘बॉयफ्रेंड’ मान सकते हैं। निर्भरता बढ़ाने और एक या अधिक पुरुषों के साथ सेक्स के बदले में ड्रग्स और शराब की पेशकश की जा सकती है। पीड़ितों के विरोध करने पर हिंसा और जबरदस्ती किया जाता है।

रिपोर्ट में 2010 में डर्बीशायर में 10 ब्रिटिश पाकिस्तानी और 1 श्वेत ब्रिटिश व्यक्ति को 26 लड़कियों को ‘इसी तरह तैयार करने’ और उनका यौन शोषण करने पर दोषी ठहराया गया। रॉदरहैम में 5 ‘एशियाई’ पुरुषों को दोषी ठहराया गया जो ग्रूमिंग गिरोह से जुड़े थे और पाकिस्तानी मूल के मुस्लिम थे। इसी तरह रोशडेल में 2012 में नौ ‘एशियाई’ पुरुषों को सजा दी गई।

केसी रिपोर्ट ने अपराधियों की पाकिस्तानी मूल के होने का उल्लेख बहुत कम है, ऑपइंडिया ने विस्तार से बताया है कि कैसे ये ग्रूमिंग गिरोह मूल रूप से पाकिस्तानी मुसलमानों के समूह थे जो विशेष रूप से श्वेत और अन्य गैर-मुस्लिम लड़कियों को निशाना बनाते थे।

रिपोर्ट में ऑक्सफोर्डशायर और नॉर्थम्ब्रिया के 2013 के मामलों का भी उल्लेख है। इनमें अपराधी ज्यादातर पाकिस्तानी, अल्बानियाई, कुर्द, बांग्लादेशी, तुर्की, ईरानी, ​​इराकी, पूर्वी यूरोपीय थे। इनकी आयु 27 से 44 वर्ष के बीच थी, जबकि पीड़ितों की आयु 13 से 25 वर्ष के बीच थी।

2015 में बर्मिंघम मेल में एक खबर वेस्ट मिडलैंड्स पुलिस के हवाले से की गई। इसमें रॉदरहैम में उन लोगों के साथ सड़क पर और ऑनलाइन ग्रूमिंग गिरोहों की कार्यप्रणाली में समानताओं का विवरण दिया गया था।

2015 की रिपोर्ट में पाया गया कि पहचाने गए 75 ग्रूमिंग संदिग्धों में से एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तानी जातीय पृष्ठभूमि (62%) से है, 12% श्वेत हैं और 5% अफ्रीकी कैरिबियन हैं।

केसी रिपोर्ट ने ये बात भी कही गई है कि स्थानीय पुलिस को कई वर्षों से ठीक-ठीक पता था कि क्या हो रहा है? लेकिन पुलिस को पाकिस्तानी पुरुषों से संबंधों के कारण समुदाय में तनाव की चिंता थी। केसी रिपोर्ट में ऑपरेशन टेंडरसी, ऑपरेशन लेंटेन, ऑपरेशन सैंक्चुअरी, ऑपरेशन शेल्टर, ब्रैडफोर्ड और कीघली के मामलों का उल्लेख है, जिसमें अधिकांश अपराधी पाकिस्तानी, बांग्लादेशी, तुर्की और अल्बानियाई मूल के पाए गए, जो मूल रूप से मुस्लिम थे। हालाँकि कुछ मामलों में अपराधी श्वेत पृष्ठभूमि के भी थे।

पुलिस की मिलीभगत और पीड़ित परिवारों पर ही कार्रवाई

1980 के दशक में टेलफ़ोर्ड शहर में 11 साल की कम उम्र की कमज़ोर लड़कियों को ग्रूमिंग गिरोहों या बलात्कार गिरोहों द्वारा पूरे चालीस साल तक उठाया गया, बलात्कार किया गया, पीटा गया, बेचा गया और यहाँ तक कि मार भी दिया गया। इनमें ज्यादातर श्वेत लड़कियाँ थी। इन्हें एक बलात्कारी से दूसरे बलात्कारी के पास भेजा जाता था। ये लोग ज़्यादातर ब्रिटिश पाकिस्तानी मूल के थे। इस दौरान तीन लड़कियों की हत्या कर दी गई और दो की मौत हो गई। 170,000 की आबादी वाले शहर में 1,000 से ज़्यादा लड़कियों को पीड़ित होना पड़ा। टेलफ़ोर्ड शहर में पाकिस्तानी ग्रूमिंग गिरोह सचमुच एक ‘रेप सेंटर’ चला रहे थे। हालाँकि पीड़ितों को शराब, सिगरेट खरीदकर, उनके मोबाइल टॉप-अप करके, उपहार खरीदकर उन्हें यह विश्वास दिलाते थे कि वे प्यार में हैं।

रॉदरहैम में भी इसी तरह का एक रैकेट चल रहा था, जिसमें 260,000 की आबादी वाले शहर में पाकिस्तानी मूल के पुरुषों द्वारा लगभग 1,500 लड़कियों का बलात्कार किया गया। उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया, उन्हें बेचा गया और खरीदा गया। कई पीड़ितों के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और 1997 से 2013 तक यह दुर्व्यवहार बेरोकटोक चलता रहा। रोशडेल में ये मामला 2002 में सामने आया। यहाँ कम से कम 47 युवा लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार किया गया। इसके बाद ये प्रतिक्रिया आ रही है कि ग्रूमिंग गिरोह “ग्रेट ब्रिटेन” की सड़कों पर खुलेआम घूमते रहते हैं।

हडर्सफ़ील्ड, रॉदरहैम, रोशडेल, ऑक्सफ़ोर्ड, ब्रिस्टल, पीटरबोरो और न्यूकैसल सहित यू.के. में कई स्थानों पर यौन शोषण के घोटाले व्यापक रूप से उजागर हुए हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इंग्लैंड में लगभग 19,000 बच्चियों का यौन शोषण किया गया।

ये ‘ग्रूमिंग’ अपराध यूनाइटेड किंगडम को परेशान करना जारी रखते हैं क्योंकि नेशनल सोसाइटी फॉर द प्रिवेंशन ऑफ़ क्रुएल्टी टू चिल्ड्रन (NSPCC) ने 2023 में रिपोर्ट की थी कि पिछले पाँच वर्षों में युवाओं के खिलाफ़ ऑनलाइन ग्रूमिंग अपराधों में 82% की वृद्धि हुई है।

पाकिस्तानी मूल के पुरुषों द्वारा संचालित ग्रूमिंग गिरोहों द्वारा कमजोर श्वेत और अन्य गैर-मुस्लिम लड़कियों के साथ बलात्कार करने का मुद्दा सबसे पहले रॉदरहैम, रोशडेल और टेलफ़ोर्ड जैसे शहरों में सामने आया। रॉदरहैम पर 2014 की जे रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 1,400 बच्चों का 16 वर्षों में यौन शोषण किया गया। शोषण करने वाले अधिकांश पाकिस्तानी मूल के पुरुष थे।

कई मामलों में, बलात्कारियों को गिरफ्तार करने के बजाय, पुलिस ने पीड़ितों और उनके परिवारों को ही गिरफ्तार कर लिया। यह आमतौर पर स्थिति को ‘गलत तरीके से समझने’, ग्रूमिंग वाले हिस्से की जाँच करने में विफलता और ज़्यादातर मामलों में जानबूझकर मामले को छिपाने के कारण होता है। ऐसे मामलों में पीड़ितों को अपराधी माना जाता है।

कई सालों तक, यू.के. में ग्रूमिंग गिरोहों को मीडिया और इस्लाम समर्थक राजनेताओं द्वारा “एशियाई” या “दक्षिण एशियाई ग्रूमिंग गिरोह” बताकर बचाया जाता रहा। हालाँकि लुईस केसी की ऑडिट रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि ग्रूमिंग गिरोहों में ज्यादातर पाकिस्तानी मुसलमान शामिल हैं।

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Shraddha Pandey
Shraddha Pandey
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