Friday, December 13, 2024
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तिब्बत को संरक्षण देने के लिए अमेरिका ने बनाया कानून, चीन से दो टूक – दलाई लामा से बात करो: जानिए क्या है उस बिल में जिस पर राष्ट्रपति जो बायडेन ने किया दस्तखत

अमेरिका पहले की तरह ही वन-चाइना नीति का समर्थन करता रहेगा, इसके बावजूद कि वो ताइवान के साथ भी संबंध रखता है और उसे सैन्य साजो-सामान से लेकर आर्थिक मदद तक पहुँचाता है।

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बायडेन ने तिब्बत समाधान अधिनियम (Resolve Tiber Act) पर हस्ताक्षर कर दिया है, जिसके बाद ये कानून बन गया है। इस अधिनियम द्वारा अमेरिका ने चीन से साफ शब्दों में कहा है, “तिब्बत पर चीन के जारी कब्जे का समाधान दमन से नहीं, बल्कि बातचीत के माध्यम से शांतिपूर्ण ढँग से किया जाना चाहिए।” चीन ने रिज़ॉल्व तिब्बत एक्ट का विरोध किया था और इसे अस्थिरता पैदा करने वाला एक्ट बताया था। यह एक्ट पिछले साल फरवरी में प्रतिनिधि सभा द्वारा पारित किया गया था और मई में सीनेट ने इसे मंजूरी दे दी थी।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, राष्ट्रपति जो बाइडेन ने तिब्बत-चीन विवाद के समाधान को बढ़ावा देने वाले अधिनियम पर हस्ताक्षर किए, जिसे लोकप्रिय रूप से रिज़ॉल्व तिब्बत अधिनियम के रूप में जाना जाता है। कानून में कहा गया है कि यह अमेरिकी नीति है कि तिब्बत मुद्दे को बिना किसी पूर्व शर्त के बातचीत के माध्यम से शांतिपूर्ण तरीकों से अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार हल किया जाना चाहिए। इसमें तिब्बत के बारे में चीन के झूठ पर भी निशाना साधा गया है, तथा चीन से तिब्बत के इतिहास के बारे में गलत सूचना का प्रचार बंद करने को कहा गया है, तथा विदेश विभाग को इन झूठे दावों का सीधे तौर पर मुकाबला करने के लिए नया अधिकार दिया गया है।

बायडेन ने शुक्रवार (12 जुलाई 2024) को जारी एक बयान में कहा, “आज, मैंने एस. 138, “तिब्बत-चीन विवाद समाधान को बढ़ावा देने वाला अधिनियम” (“अधिनियम”) पर हस्ताक्षर किए हैं। मैं तिब्बतियों के मानवाधिकारों को आगे बढ़ाने और उनकी विशिष्ट भाषाई, सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को संरक्षित करने के प्रयासों का समर्थन करने के लिए कांग्रेस की द्विदलीय प्रतिबद्धता को साझा करता हूं।” बायडेन ने कहा, “मेरा प्रशासन पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना से दलाई लामा या उनके प्रतिनिधियों के साथ बिना किसी पूर्व शर्त के सीधी बातचीत फिर से शुरू करने का आह्वान करता रहेगा, ताकि मतभेदों को दूर किया जा सके और तिब्बत पर बातचीत के जरिए समझौता किया जा सके।”

इंटरनेशनल कैंपेन फॉर तिब्बत के अध्यक्ष तेनचो ग्यात्सो ने इस पर खुशी जताई और कहा, “रिज़ोल्व तिब्बत एक्ट तिब्बती लोगों के साथ चीन के क्रूर व्यवहार को दर्शाता है। तिब्बतियों के लिए यह उम्मीद का संदेश है। अन्य देशों के लिए यह मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता के लिए तिब्बत के शांतिपूर्ण संघर्ष का समर्थन करने का आह्वान है और बीजिंग के लिए यह एक घोषणा है कि तिब्बत के लिए अमेरिकी समर्थन खत्म नहीं हो रहा, बल्कि चीन को तिब्बत के साथ बातचीत फिर से शुरू करनी चाहिए और ऐसा समाधान खोजना चाहिए जो तिब्बती लोगों के मौलिक अधिकारों का समर्थन करता हो।” बता दें कि दलाई लामा ने बार-बार चीन से तिब्बती लोगों को वास्तविक स्वायत्तता देने का आह्वान किया है, और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत यह स्पष्ट है कि लोगों को आत्मनिर्णय का अधिकार है।

यह अधिनियम तिब्बत के लिए अमेरिकी समर्थन को बढ़ाता है – जिससे विदेश विभाग के अधिकारियों को चीनी सरकार द्वारा तिब्बत के बारे में फैलाई जा रही गलत सूचनाओं का सक्रियतापूर्वक और सीधे तौर पर मुकाबला करने का अधिकार मिलता है। साथ ही यह इस झूठे दावे को खारिज करता है कि तिब्बत “प्राचीन काल” से चीन का हिस्सा रहा है, तथा चीनी सरकार और दलाई लामा या उनके प्रतिनिधियों या तिब्बती समुदाय के लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नेताओं के बीच बिना किसी पूर्व शर्त के वार्ता के लिए दबाव डालता है, तथा तिब्बत पर वार्ता के माध्यम से समझौते के लक्ष्य की दिशा में बहुपक्षीय प्रयासों में अन्य सरकारों के साथ समन्वय करने के लिए विदेश विभाग की जिम्मेदारी की पुष्टि करता है।

अमेरिकी कॉन्ग्रेस के कुछ चुनिंदा सदस्यों द्वारा तीन वर्षों के प्रयास के बाद, जिसे तिब्बत समर्थकों और तिब्बती अमेरिकियों का व्यापक समर्थन प्राप्त था, रिज़ॉल्व तिब्बत एक्ट कानून बन गया। केंद्रीय तिब्बती प्रशासन और आईसीटी बोर्ड तथा कर्मचारियों के वरिष्ठ नेताओं ने कॉन्ग्रेस के नेताओं से मुलाकात की और उन्हें तिब्बत की स्थिति के बारे में जानकारी दी तथा चर्चा की कि किस तरह से नई पहल से मदद मिल सकती है। प्रतिनिधि जिम मैकगवर्न (डी-एमए) और माइकल मैककॉल (आर-टीएक्स) ने सदन में नेतृत्व किया, जबकि सीनेटर जेफ मर्कले (डी-ओआर) और टॉड यंग (आर-आईएन) ने सीनेट में विधेयक पेश किया। सभी चार प्रमुखों और उनके कर्मचारियों ने इस कानून को लागू करने के लिए अथक प्रयास किया।

यह अधिनियम तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र और चीन के अन्य तिब्बती क्षेत्रों को पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) के हिस्से के रूप में मान्यता देने की अमेरिका की लंबे समय से चली आ रही नीति में कोई बदलाव नहीं करता है। इस नीतिगत निर्णय के बारे में बायडेन ने कहा कि यह विदेशी राज्यों और ऐसे राज्यों की क्षेत्रीय सीमाओं को मान्यता देने के उनके अधिकार में आता है। अमेरिका पहले की तरह ही वन-चाइना नीति का समर्थन करता रहेगा, इसके बावजूद कि वो ताइवान के साथ भी संबंध रखता है और उसे सैन्य साजो-सामान से लेकर आर्थिक मदद तक पहुँचाता है।

गौरतलब है कि 14वें दलाई लामा 1959 में तिब्बत से भागकर भारत आ गये, जहाँ उन्होंने हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में निर्वासित सरकार स्थापित की थी। साल 2002 से 2010 तक दलाई लामा के प्रतिनिधियों और चीनी सरकार के बीच नौ दौर की वार्ता हुई, लेकिन कोई ठोस परिणाम नहीं निकला। चीन भारत में रहने वाले 89 वर्षीय तिब्बती आध्यात्मिक नेता को एक “अलगाववादी” मानता है, जो तिब्बत को देश के बाकी हिस्सों से अलग करने के लिए काम कर रहा है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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