Thursday, March 30, 2023
Homeरिपोर्टमीडियाब्लूमबर्ग की एजेंडा पत्रकारिता: रामजन्मभूमि को अब भी विवादित कहने वालों- गाड़ी वाला आया...

ब्लूमबर्ग की एजेंडा पत्रकारिता: रामजन्मभूमि को अब भी विवादित कहने वालों- गाड़ी वाला आया माथे से भूसा निकाल

इस बात की कल्पना ही कितनी भयानक है अगर किसी दूसरे धर्म से संबंधित किसी भी मुद्दे पर ऐसी टिप्पणी हो जाए तो उसके बाद की सामाजिक तस्वीर क्या होगी? लेकिन इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद एजेंडा और भ्रम कुछ लोगों की प्राथमिकता है।

धर्म हमेशा से संवेदनशील मसला रहा है। संवेदनशील इसलिए क्योंकि इसके इर्द-गिर्द भ्रम ख़ूब फैलाए जाते हैं। ऐसा करता कौन है? जवाब हैरान करने वाला है, जिन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। समाचार समूह ब्लूमबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में रामजन्मभूमि के लिए ‘Disputed’ यानी विवादित शब्द का इस्तेमाल किया है।

ख़बर देने वाले समूहों की बुनियाद ही इस बात पर टिकी होती है कि वे तथ्यों पर बात करें। जो सच है वही बताएँ। लोगों के सामने अपना नज़रिया या अपनी विचारधारा लेकर न आएं। अफ़सोस जिन पर इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी है, वही इसका मज़ाक बना रहे हैं। देश उस रास्ते पर चलता रहे जिसका अंत शांति हो, यह तय करने के लिए एक पूरा का पूरा तंत्र काम करता है। इस तंत्र का सबसे बड़ा चेहरा है देश की अदालतें और उनमें भी सबसे ऊपर है सर्वोच्च न्यायालय।

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट

देश की सबसे बड़ी अदालत ने पिछले साल ही साफ़ शब्दों में कहा था कि विवादित ज़मीन पर राम मंदिर बनेगा। इसका एक मतलब साफ़ है कि आज की तारीख़ वह ज़मीन किसी भी सूरत में विवादित नहीं है। आखिर होगी भी कैसे? देश की सबसे बड़ी अदालत से ऊपर कौन हो सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय ने जो आदेश में कहा वही सत्य और वही तथ्य। ऐसा तथ्य जो समाज के पत्थर पर सबसे मोटी लकीर है। भले लाख ऐसा समझा और सोचा जाए कि इतना पर्याप्त है, लेकिन कुछ लोग ठीक यहीं से नई बहस की ज़मीन तैयार करते हैं। 

लोकतांत्रिक व्यवस्था और अभिव्यक्ति के देश में बहस की ज़मीन के लिए जगह भी हमेशा ही रहती है। लेकिन सच के दायरे से हट कर नहीं और न ही लोगों के बीच भ्रम फैला कर। ऐसी बातें सतह पर बहुत सामान्य नज़र आती हैं, एक बार में पढ़ कर नज़रअंदाज़ करने लायक। यह रवैया स्वभाव में कितना लचर है कि एक समाचार समूह बड़ी सहजता से राम जन्मभूमि को “disputed site” कहकर निकल जाता है, जबकि ऐसे शब्दों से दूरी बनाने में अदालतों ने कई दशक खर्च कर दिए। कितने लोग खप गए इसका हिसाब ही नहीं। 

इस बात की कल्पना ही कितनी भयानक है अगर किसी दूसरे धर्म से संबंधित किसी भी मुद्दे पर ऐसी टिप्पणी हो जाए तो उसके बाद की सामाजिक तस्वीर क्या होगी? लेकिन इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद एजेंडा और भ्रम कुछ लोगों की प्राथमिकता है।

पत्रकारिता के छात्रों को ‘social responsibility theory’ पढ़ाई जाती है। यानी समाज के प्रति हमारी ज़िम्मेदारी क्या है? हम समाज को अपने हिस्से से क्या देते हैं? यही दो सवाल जब “disputed site” लिखने वालों से पूछा जाएगा तब उनका जवाब क्या होगा।

यह भ्रम ऐसे लोग फैला रहे हैं जो लेमैन (भीड़ का हिस्सा) नहीं हैं। जिनके हिस्से में समाज की सबसे अहम ज़िम्मेदारी है। यह बात भले छोटी नज़र आ रही है लेकिन जितनी छोटी नज़र आती है उतनी ही धोखे में रखने वाली भी है। ऐसी बातें समाज को सालों पीछे ले जाकर पटक देती हैं, ठीक उस जगह पर जहाँ से सब शुरू हुआ था। तथ्य लिखने का हासिल भले कुछ न हो पर भ्रम की कीमत बहुत भारी होती है। यह कीमत लिखने वाले नहीं पढ़ने वाले चुकाते हैं। 

शायद इसलिए ऐसे अहम मुद्दों पर कुछ भी बताते समय तस्दीक करना सबसे अहम पड़ाव है। इसके अलावा इस बात की कल्पना करना कि “disputed site” जैसे शब्द का असर क्या पड़ेगा? हर व्यक्ति अपने दिन की शुरुआत में दुनियादारी की ओर निहारता ज़रूर है, वह ऐसी भ्रामक बात पढ़ने/सुनने/समझने की उम्मीद किसी भी सूरत में नहीं करता होगा।

असल मायनों में इस तरह की बातों का लक्ष्य और वज़न दोनों ही बहुत हल्का है। फिर भी कोई भ्रम बच गया हो तो इस मुद्दे पर तमाम लोगों से बात करने की ज़रूरत है। ख़ास कर ऐसे लोग से जिनकी ज़िंदगी का सपना यही था कि वह इस ढाँचे को आकार लेते हुए देखें। भले जानकारी देने की आड़ में कितना भी भ्रम परोसा जाए लेकिन तथ्य का कोई विकल्प नहीं होता। जो सच है दिन के अंत में वही स्वीकार किया जाता है, पंक्ति के पहले व्यक्ति से लेकर पंक्ति के अंतिम व्यक्ति तक।

जनता भोली हो सकती है पर दिग्भ्रमित नहीं। लोग समझते हैं कि ऐसी बातों के लिए गाना बनाया गया है “गाड़ी वाला आया घर से कचरा निकाल।”

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

Editorial Desk
Editorial Deskhttp://www.opindia.com
Editorial team of OpIndia.com

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

‘जेल में डालने की धमकी दी’: भोपाल में मंदिर में लाउडस्पीकर बजाने पर SDM ने संचालक को थमाई नोटिस, बोला प्रशासन – लोगों ने...

मंदिर संचालक का कहना है कि लाउडस्पीकर पर भजन-कीर्तन और सुंदरकाण्ड का पाठ करने पर उन्हें और उनके बेटे को जेल में डालने की धमकी दी गई है।

‘इस बार बैसाखी ऐतिहासिक हो’ : सिखों को भड़काते अमृतपाल की वीडियो-ऑडियो मीडिया में वायरल, रिपोर्ट्स- सरेंडर के लिए भगोड़े ने रखी 3 शर्त

रिपोर्ट्स के अनुसार अमृतपाल का पहला वीडियो आया है जो पंजाबी में है। इसमें वह पंजाब के लोगों को भड़काने की कोशिश कर रहा है।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -

हमसे जुड़ें

295,307FansLike
251,649FollowersFollow
416,000SubscribersSubscribe