नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ विरोध की आड़ में दंगा किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में इन दंगाइयों की हिंसक भीड़ ने सबसे ज्यादा उत्पात मचाया। अंततः पुलिस को भी वो तरीके अपनाने पड़े, जिनसे अमूमन प्रशासन बचता है। उत्पाती और दंगाई भीड़ को शांत करने के लिए पुलिस को कहीं लाठियाँ तो कहीं आत्मरक्षा में गोली तक चलानी पड़ी। दंगाइयों की भ्रामक बातें और लोगों तक न पहुँचें और कम से कम लोग उनकी चाल में फँसे, इसी को लेकर मेरठ के सिटी एसपी अखिलेश नारायण सिंह संबंधित एरिया में लोगों को समझाते (उग्र होकर, गुस्से में) हैं। और उनका यह वीडियो वायरल कर दिया जाता है मीडिया गिरोह के द्वारा।
इस विडियो में कुछ गालियाँ हैं (जिसकी ऑपइंडिया निंदा करता है), लेकिन जिस तरह से NDTV ने संदर्भ हटा कर पुलिस को ‘मुस्लिमों को धमकाया’ कह कर चलाया है, उससे प्रतीत होता है कि समुदाय विशेष के लोग चाहे आग लगाएँ, सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान करें, पाकिस्तान के पक्ष में नारे लगाएँ, NDTV उन सारी बातों को उनके अल्पसंख्यक होने का गीत गा कर झुठला देगा।
UP Police roxx pic.twitter.com/Ht5TlPujNj
— Ankur Singh (@iAnkurSingh) December 28, 2019
इस विडियो में पुलिस बार-बार बता रही है कि ‘खाओगे यहाँ (भारत) का, गाओगे वहाँ (पाकिस्तान) का’ नहीं चलेगा। किस देश में वहाँ की पुलिस या वहाँ का राष्ट्रभक्त नागरिक इस बात को बर्दाश्त करेगा कि कुछ लोगों को एक दुश्मन देश ज्यादा प्रिय है? पुलिस ने तर्क के साथ दंगाइयों को सही बात समझाने की कोशिश की है। चूँकि माहौल संवेदनशील है, टेंशन वाला है तो पुलिस के मुँह से कुछ अपशब्द भी निकले जो गुस्से में हम-आप सब के मुँह से निकलते हैं। जहाँ बात जीवन और मृत्यु की हो, लोगों की जानें जा सकती हों, आगजनी और दंगे हो रहे हों, वहाँ पुलिस की भाषा पर सवाल नहीं उठाना चाहिए, फिर भी ऑपइंडिया इस भाषा का समर्थन नहीं करता।
लेकिन NDTV ने वही किया जो उसे करने में आनंद मिलता है। ये कमाल की बात है (और नहीं भी) कि NDTV ने पाकिस्तान ज़िंदाबाद का विचार रखने वाले समुदाय विशेष को कुछ नहीं कहा। क्या अब ‘विरोध’ के नाम पर दुश्मन देश के पक्ष में नारे लगेंगे क्योंकि वहाँ ‘अपनी कौम’ के मुस्लिम रहते हैं? फिर ऐसे लोगों को अगर पुलिस पाकिस्तान जाने बोल रही है तो इसमें समस्या क्या है?
अपने मतलब की चीज या प्रोपेगेंडा पर संदर्भ की बात करने वाले मीडिया गिरोह यह भूल जाते हैं कि संदर्भ तो हर एक पल, हर एक इंसान या हर एक फैसले का होता है। फैज की “हम देखेंगे… बस नाम रहेगा अल्लाह का” वाले पर इसी मीडिया गिरोह ने संदर्भ की बात करते हुए लेख पर लेख दे मारे। तो क्या दंगे-आगजनी की जगह पुलिस के निर्णय संदर्भ से परे हो जाते हैं? उसकी व्याख्या क्यों नहीं! क्योंकि ये आपके नैरेटिव को सूट नहीं करता।
फिर भी संदर्भ जानना जरूरी है। और इससे बेहतर क्या होगा जब संदर्भ वो इंसान खुद बताए, जिसने सारी बातें कहीं हैं। सुनिए मेरठ के सिटी एसपी की बात कि क्यों उन्हें उग्र भाषा में चेतावनी देनी पड़ी थी उस दिन।
#Breaking | Meerut SP AN Singh responds to the charge against Meerut top cop who was seen asking protesters to ‘go to Pakistan’ in a viral video.
— TIMES NOW (@TimesNow) December 28, 2019
More details by TIMES NOW’s Priyank. pic.twitter.com/Fiz3gkYZTl
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