Wednesday, January 15, 2025
Homeरिपोर्टमीडियाजिस फातिमा शेख को बताते हैं पहली महिला मुस्लिम टीचर, उसका वजूद ही नहीं?...

जिस फातिमा शेख को बताते हैं पहली महिला मुस्लिम टीचर, उसका वजूद ही नहीं? लेखक-चिंतक दिलीप मंडल बोले- मैंने गढ़ा था काल्पनिक कैरेक्टर, मुझे माफ करें

फातिमा के अस्तित्व में आने के बाद जिन लोगों को राजनीतिक और वैचारिक उद्देश्यों के लिए इस कहानी की ज़रूरत थी, उन्होंने इसे फैलाया और इस प्रकार यह नाम अस्तित्व में आया।

महिला शिक्षा के इतिहास में सावित्री बाई फुले के साथ-साथ आपको पिछले कुछ समय से फातिमा शेख का नाम भी सुनने को मिलता होगा। फातिमा कौन हैं ये सर्च करने पर जानकारी सामने आती होगी कि वो देश की पहली महिला मुस्लिम टीचर थीं जिन्होंने लड़कियों को शिक्षित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। अब इन्हीं फातिमा शेख को लेकर पत्रकार, लेखक, प्रोफेसर और चिंतक दिलीप मंडल ने बड़ा दावा किया है।

दिलीप मंडल ने अपने एक्स पर कन्फेशन डालते हुए लिखा, “मैंने एक मनगढ़ंत कैरेक्टर बनाया था- फातिमा शेख। कृपया मुझे माफ करें। सच्चाई तो ये है कि कोई फातिमा शेख कभी थी ही नहीं, वो कोई ऐतिहासिक हस्ती नहीं हैं। वो मेरी गलती थी कि अपने जीवन के एक निश्चित काल में मैंने इस नाम को अचानक गढ़ा। मैंने ये सब जानबूझकर ही किया था।”

दिलीप आगे कहते हैं- “आप इससे पहले गूगल में भी इस नाम की कोई एंट्री नहीं पाएँगे, न कोई किताब मिलेगी और न ही कहीं कोई जिक्र होगा।”

मंडल के अनुसार, फातिमा उन्हीं की वजह से सोशल मीडिया नैरेटिव में आईं और गायब भी हो गईं। वह अपने कन्फेशन में कहते हैं कि अब उनसे कोई सवाल न करे कि आखिर उन्होंने ऐसा किया क्यों था। ये समय और हालात वाली बात है। किसी कारणवश एक हस्ती को गढ़ना पड़ा था इसलिए उन्होंने वो किया। हजारों लोग इसकी गवाही दे सकते हैं – “जिनमें से कइयों ने तो पहली बार मुझसे ही ये नाम सुना।”

उन्होंने लिखा कि वह नैरेटिव गढ़ना, छवि निर्माण करना जानते हैं इसलिए उनके लिए ये सब कभी भी मुश्किल नहीं था। फातिमा की कोई तस्वीर भी नहीं है और जो हैं वो सब काल्पनिक ही हैं।

फातिमा के अस्तित्व में आने के बाद जिन लोगों को राजनीतिक और वैचारिक उद्देश्यों के लिए इस कहानी की ज़रूरत थी, उन्होंने इसे फैलाया और इस प्रकार यह नाम अस्तित्व में आया।

मंडल कहते हैं, “ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले का पूरा लेखन प्रकाशित हो चुका है, और उसमें कहीं भी फातिमा शेख का नाम नहीं है। यहाँ तक कि बाबा साहेब अंबेडकर ने भी कभी ऐसा नाम नहीं लिया।”

वह दावा करते हैं कि महात्मा फुले या सावित्रीबाई फुले के किसी भी जीवनीकार ने फातिमा शेख का ज़िक्र नहीं किया। 15 साल पहले तक किसी भी मुस्लिम विद्वान ने इस नाम का ज़िक्र नहीं किया। फुले दंपत्ति के शैक्षणिक प्रयासों की चर्चा करने वाले ब्रिटिश दस्तावेज़ों में भी फातिमा शेख का कोई ज़िक्र नहीं है।

दिलीप मंडल का चैलेंज

अपने इस पोस्ट के बाद मंडल ने इस मुद्दे से जुड़े कई सारे ट्वीट किए। उन्होंने बार-बार कहा कि सावित्री बाई का कैरेक्टर पूरी तरह काल्पनिक है। वहीं जब एक युवक ने कहा कि ये बात झूठ है तो उन्होंने कहा कि सावित्री बाई फुले कोई हडप्पा काल की नहीं हैं। उनसे जुड़े रिकॉर्ड हैं। पुराने अखबार और लाइब्रेरी हैं। वहीं फातिमा शेख को लेकर उन्होंने चैलेंज दिया कि अगर कोई 2006 से पहले दिखा देगा कि कहीं फातिमा शेख का जन्मदिन मनाया गया, तो वो मान लेंगे कि उन्होंने ऐसा नहीं किया।

गौरतलब है कि एक तरफ जहाँ दिलीप मंडल इस तरह के दावे कर रहे हैं कि फातिमा शेख का कैरेक्टर उन्होंने ही गढ़ा था, वहीं 1991 में पब्लिश हुई एक किताब है- Women Writing in India: 600 B.C. to the early twentieth century जिसमें ये पढ़ने को मिलता है कि फातिमा शेख, ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले की साथी थीं। इस किताब को सिटी यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क के फेमिनिस्ट प्रेस द्वारा प्रकाशित किया गया है।

किताब में फातिमा शेख के नाम का केवल एक ही बार जिक्र है, जिसमें कहा गया है, “पुणे में जोतिबा और सावित्रीबाई फुले ने जो स्कूल शुरू किए थे, वे खास तौर पर निचली जाति की लड़कियों के लिए थे। उनकी सहकर्मी फातिमा शेख एक मुस्लिम महिला थीं।” इसे देख लगता है कि संभव है कि फातिमा शेख नाम की महिला फुले की सहकर्मी रहीं हों, लेकिन शिक्षा क्षेत्र में प्रमुख कार्यकर्ता न हों। यही वजह है कि पहले उनका उल्लेख इंटरनेट पर न के बराबर था।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

संभल में जमीन हिंदुओं की, कब्जा था मुस्लिम का… 46 साल बाद हिंदू परिवारों को मिला मालिकाना हक: 1978 के दंगों में कत्लेआम के...

संभल प्रशासन ने ऑन द स्पॉट कार्रवाई करते हुए तुलसीराम के पोते अमरीश कुमार और उनके परिवार को जमीन पर कब्जा दिलाया।

कभी कार तो कभी अस्पताल… केरल में दलित खिलाड़ी से 5 बार गैंगरेप, 13 साल की उम्र से शुरू हुआ यौन शोषण: 5 साल...

डीआईजी ने बताया कि अब तक इस मामले में 30 एफआईआर दर्ज की गई हैं। इस मामले में 59 आरोपितों में से 44 को गिरफ्तार किया जा चुका है।
- विज्ञापन -