हिमालय की गोद में बसा अमरनाथ धाम एक बार फिर श्रद्धालुओं के जयकारों से गूँजने को तैयार है। जम्मू-कश्मीर प्रशासन के अनुसार, इस बार यात्रा 3 जुलाई 2025 से शुरू होकर 9 अगस्त 2025 तक चलेगी। उम्मीद जताई जा रही है कि इस वर्ष 5 लाख से ज़्यादा श्रद्धालु ‘बाबा बर्फानी’ के दर्शन के लिए पहुँचेंगे।
इस बीच वर्ष 2025 की अमरनाथ यात्रा की तैयारियों ने रफ़्तार पकड़ ली है और प्रशासन सुरक्षा, सुविधा और श्रद्धालुओं की संख्या को लेकर हर मोर्चे पर मुस्तैद दिखाई दे रहा है। हाल ही हुए पहलगाम आतंकी हमले के कारण इस यात्रा को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं।
अमरनाथ यात्रा के सुरक्षा इंतजाम
कहते हैं जब आस्था पर्वतों से टकराती है, तो वह अमर बन जाती है। श्री अमरनाथ यात्रा न सिर्फ धार्मिक विश्वास का प्रतीक है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक एकता और भक्ति भावना की जीवंत मिसाल भी है, इसलिए देशभर से श्रद्धालु ‘बाबा बर्फानी’ के दर्शन को उत्साहित हैं और प्रशासन उनकी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम भी कर रहा है।
दरअसल, अमरनाथ यात्रा के लिए दो रास्तों से होते हुए यात्री गुफा तक जाते हैं, जिसमें एक रास्ता पहलगाम मार्ग का है जो 48 किलोमीटर लंबा और आसान है, मगर कुछ दिनों पहले ही वहाँ आतंकी हमला हुआ था, जिसमें 26 लोगों की जान चली गई। वहीं दूसरा, बालटाल मार्ग है जो 14 किलोमीटर छोटा लेकिन ज्यादा कठिन है। इस हमले के बाद सरकार ने यात्रा की सुरक्षा को सबसे बड़ी प्राथमिकता दी है, ताकि श्रद्धालु सुरक्षित माहौल में यात्रा कर सकें।
इसी क्रम में, इस साल 38 दिन की इस यात्रा में सबसे ज्यादा सुरक्षाकर्मी, श्रद्धालुओं की सुरक्षा में तैनात किए जाएँगे। लगभग 50 हजार। इनमें जम्मू कश्मीर पुलिस, CRPF, BSF, CISF, ITBP और SSB जैसी केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के जवान शामिल हैं। इसके अलावा जगह-जगह बम स्क्वॉड भी होगा और यात्रा पर निगरानी केवल सीसीटीवी कैमरों से नहीं, बल्कि ड्रोन समेत AI तकनीक आदि से रखी जाएगी। वहीं, जब श्रद्धालुओं का काफिला जाएगा तो नेशनल हाईवे की ओर जाने वाले रास्ते भी ब्लॉक होंगे। हर काफिले पर जैमर लगा होगा। सीआरपीएफ जवानों के हाथ में सैटेलाइट फोन भी होंगे। इतना ही नहीं, यात्रियों को रेडियो फ्रीक्वेंसी वाली आईडी दी जाएगी जो उनके साथ काफिले पर भी होग और चप्पे-चप्पे पर सुरक्षाकर्मी तैनात रहेंगे।
कुल मिलाकर, इस बार अमरनाथ यात्रा को पूरी तरह सुरक्षित और शांतिपूर्ण बनाने के लिए सरकार ने हर जरूरी कदम उठाए हैं, ताकि श्रद्धालु बिना किसी डर के अपनी यात्रा पूरी कर सकें।
अमरनाथ यात्रा पर आतंकी हमलों का इतिहास
अमरनाथ यात्रा 1990 से ही इस्लामिक आतंकियों के निशाने पर रही है। 2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार, 32 साल में यात्रा के बीच करीबन 36 बार आतंकी हमले हुए हैं। सबसे पहला हमला 1993 में हुआ था और इसके बाद लगातार चार सालों तक, यानी 1996 तक, आतंकियों ने हर साल लगतार हमले किए। सबसे बड़ा हमला साल 2000 में हुआ।
उस वक्त लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों ने पहलगाम बेस कैंप पर अंधाधुंध फायरिंग की, जिसमें 32 लोगों की मौत हो गई और करीब 60 लोग घायल हो गए। इसके बाद 2001 में फिर हमला हुआ। इस बार शेशनाग झील के पास यात्रियों के कैंप पर ग्रेनेड फेंके गए, जिसमें 12 लोगों की जान गई और 15 लोग घायल हुए।
2002 में भी ग्रेनेड हमला हुआ और 2006 में अमरनाथ यात्रियों की बस को निशाना बनाया गया। फिर 2017 में एक बार फिर हमला हुआ, आतंकियों ने यात्रियों की बस पर फायरिंग कर दी, जिसमें 7 लोगों की मौत हुई और 32 लोग घायल हो गए। इसके बाद से सुरक्षा व्यवस्था इतनी मजबूत हो गई कि पिछले 6 सालों में (2017 के बाद से) कोई बड़ा आतंकी हमला नहीं हुआ। लेकिन अब, जब यात्रा शुरू होने में सिर्फ दो महीने बचे हैं, पहलगाम आतंकी हमले ने फिर से कश्मीर घाटी का माहौल बिगाड़ने की कोशिश की है।
क्यों है हिंदुओं की आस्था पर इतना खतरा?
गौरतलब है कि हिंदुओं की आस्था पर हमलों की कहानी कोई अब की नहीं है। सालों से होते आए हमलों से ये बात तो साफ है कि इस्लामी आतंकवादियों को केवल हिंदू धार्मिक स्थलों और यात्राओं से समस्या नहीं है, बल्कि उन्हें हिंदुओं से ही दिक्त है। यही वजह है कि कभी वो वैष्णो देवी गए श्रद्धालुओं को अपना निशाना बनाते हैं तो कभी पहलगाम घूमने गए पर्यटकों को।
इनका प्रयास हिंदुओं के मन में खौफ को जगा कर उन्हें मानसिक तौर पर कमजोर करना है ताकि ऐसी यात्रा कभी सफल नए हो सकें, जबकि हैरान कर देने वाली बात ये है कि कभी कोई मुस्लिम त्योहार या नमाज होती है, तो क्या हमने कभी सुना है कि वहाँ आतंकी हमले हुए हों? शायद नहीं।
हमारे देश में मस्जिदों को सुरक्षा देने की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन मंदिरों और तीर्थ यात्राओं को किले की तरह सुरक्षा देनी पड़ती है। इससे हम ये समझ पाते है कि अपने ही देश में हिंदू असुरक्षित हैं। भारत में हिंदू बहुसंख्यक जरूर हैं, लेकिन इसके बावजूद अपनी आस्था को लेकर उन्हें बार-बार सावधानी बरतनी पड़ती है। यह स्थिति तब और विचलित करती है जब यह देश ‘हिंदुस्तान’ कहलाता है, मगर हिंदू ही अपने त्योहारों, मंदिरों और यात्राओं पर डर के साए में रहते हैं।
ये केवल अमरनाथ यात्रा तक सीमित नहीं है। काशी, अयोध्या, मथुरा जैसे स्थानों पर भी बार-बार विवाद और विरोध खड़ा किया जाता है। अगर कोई हिंदू मंदिर के लिए आवाज उठाए, तो उसे ‘कट्टरपंथी’ कहा जाता है, लेकिन कोई मजहबी संगठन खुलेआम धमकी दे, तो उसे ‘अल्पसंख्यकों का अधिकार’ बताया जाता है।
ये समस्या सिर्फ सीमा पार से फैलाए जा रहे आतंकवाद की नहीं है, बल्कि देश के भीतर पनप पही एक कट्टरपंथी मानसिकता की है, जो हिंदुओं की आस्था को बार-बार नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं। इस मानसिकता वाले लोगों को हिंदुओं के पूजा-पाठ, मंदिर, और तीर्थ यात्राओं से तकलीफ होती है। ये खुलेआम कहते हैं कि अगर इनके इलाके में मंदिर बना तो उसे उन्हें जलाना या तोड़ना पड़ेगा। ये लोग कमाते तो भारत में है मगर जब मौका मिलता है तो मजहब परस्ती दिखाते हुए पाकिस्तान के प्रति अपना प्रेम जाहिर करते हैं।