कुछ ही साल पहले जेएनयू के कुछ छात्रों ने अपने कैंपस में संसद भवन पर हमले के गुनहगार अफजल गुरु की बरसी मनाई और नारे लगाए हुए ऐलान किया था कि ‘कितने अफजल मारोगे हर घर से अफजल निकलेगा।’ यह महज कुछ भटके हुए युवाओं की नारेबाजी नहीं बल्कि देश के अलग-अलग हिस्सों में चरमपंथ और आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए भारतीय सेना और सुरक्षा बलों के साथ ही केंद्र की दक्षिणपंथी सरकार के लिए वामपंथी कट्टरपंथियों की ओर से भेजा गया एक तरह का संदेश था।
लेकिन पिछले कुछ सालों में भारतीय सुरक्षाबलों ने जिस तरह से कश्मीर घाटी से आतंकवाद और चरमपंथ के खिलाफ अभियान चलाया है, उसने कट्टरपंथियों के हौंसले पस्त कर दिए हैं। हालत ये है कि कई बार हिज्बुल और जैश ए मोहम्मद जैसे संगठनों के शीर्ष पद खाली रहे, या फिर वह जल्दी भारतीय सेना और सुरक्षा बलों द्वारा खाली कर दिया गया।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, अब कश्मीर में 170 से 200 के बीच ही आतंकी शेष रह गए हैं। इनमें से 40 पाकिस्तान के बताए जा रहे हैं। इनमें सबसे अधिक आतंकी संगठन हिज्बुल और लश्कर के आतंकी हैं। सेना के ऑपरेशन का परिणाम ही है कि जैश के आतंकियों की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है क्योंकि सीमा पार से घुसपैठ पर विराम लग चुका है जिस कारण सीमा की दूसरी ओर से ट्रेनिंग लेकर जैश के आतंकी भारत में नहीं घुस पा रहे हैं।
आतंकवाद के सफाए के साथ-साथ सेना ने कई आतंकियों को सरेंडर करने का भी निमंत्रण दिया। इसका ही नतीजा है कि सेना के अधिकारियों के समक्ष इस वर्ष हथियार डालने वाले 17 युवकों ने हथियार डाले और मुख्यधारा में लौटने की बात पर सहमती जताई। इनमें से 12 आतंकियों ने सीधी मुठभेड़ के दौरान आत्मसमर्पण किया।
साल 2020 में हथियार डालने वाले 17 आतंकवादियों में अल-बद्र आतंकवादी समूह का शोएब अहमद भट भी है, जिसने इस वर्ष अगस्त में सरेंडर किया था। वह उस समूह का हिस्सा था जिसने दक्षिण कश्मीर के शोपियाँ जिले में टेरिटोरियल आर्मी के एक जवान की हत्या की थी।
ऑपरेशन ऑल आउट
2014 में इस देश में प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवादियों पर नकेल कसने के सख्त निर्देश दिए और यह अभियान 2017-18 में और भी तेज हो गया, जब भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन ऑल आउट’ शुरू किया। इसका उद्देश्य आतंकियों के नेतृत्व को खत्म करना और घाटी से आतंकी मॉड्यूल का सफाया था। वर्ष 2018 सबसे अधिक सफल कहा जा सकता है, जब भारतीय सेना 257 आतंकवादियों को मारने में सफल रही।
कश्मीर घाटी में भारतीय सेना की आतंकवाद के खिलाफ जंग का ही नतीजा रहा कि कट्टरपंथियों के साथ ही पड़ोसी देश पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान तक की नींद हराम रही और उसने कई बार संदेश जाहिर करते हुए भारत पर फॉल्स ऑपरेशन करने का आरोप भी लगाया है।
इस साल सेना द्वारा घाटी में चलाए गए कुछ सफलतम ऑपरेशंस में से एक ‘ऑपरेशन ऑलआउट’ (Operation All Out) भी है। रिपोर्ट्स के अनुसार, घाटी में मौजूद आतंकी संगठनों में शामिल होने वाले युवाओं की संख्या में भी कमी देखी गई है। वर्ष 2020 की शुरुआत में घाटी में करीब 300 आतंकी मौजूद थे जिनकी संख्या अब 170 से 200 के बीच बताई जा रही है। सुरक्षाबलों के अनुसार, जम्मू कश्मीर में साल 2020 में दिसंबर माह तक करीब 203 आतंकवादियों को मार गिराया गया है। पिछले वर्ष, 2019 में मारे गए आतंकियों की संख्या 152 थी।
वर्ष 2016, 2017, 2018 और 2019 में कई बड़े कमांडर मारे गए थे। इनमें सब्जार अहमद भट्ट, बुरहान वानी, जुनैद मट्टू, बशीर लश्करी, अबू लल्हारी, जाकिर मूसा, जीनल उल इस्लाम, सद्दाम पाडर, नाविद जट्ट, समीर टाइगर, मन्नान वानी आदि शामिल हैं।
ऑपरेशन जैकबूट
यही क्रम वर्ष 2020 में भी जारी रहा और इस साल सेना द्वारा मार गिराए गए कुछ बड़े आतंकियों की लिस्ट में जो एक बड़ा नाम शामिल है, वो है हिज्बुल मुजाहिद्दीन कमाडंर रियाज नाइकू का। सेना ने रियाज पर 12 लाख रुपए का इनाम भी रखा था। मीडिया द्वारा यह खबर भी जमकर सामने रखी गई थी कि आतंकी संगठन का लीडर बनने से पहले रियाज एक गणित का टीचर था।
बुरहान वानी गैंग के सफाए के बाद रियाज नायकू मोस्ट वांटेड बन चुका था। उसे पकड़ने के लिए काफी कोशिशें की गई। पहले उसके ओवरग्राउंड वर्कर नेटवर्क को नेस्तनाबूद करते हुए उसके 30 खबरियों को पकड़ा गया। साथ ही उसके सभी प्रमुख ठिकानों को भी नष्ट किया गया।
इसी के साथ भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल का ‘ऑपरेशन जैकबूट’ भी पूरा हो गया, जिसे उन्होंने घाटी में आतंकवाद को खत्म करने के पिछले साल अक्टूबर माह में शुरू किया गया था। बताया जाता है कि इस ऑपरेशन में आखिरी आतंकी रियाज नाइकू ही था।
रियाज नाइकू के बाद ‘आतंक का डॉक्टर’ कहा जाने वाला हिज्बुल मुजाहिदीन का टॉप कमांडर सैफुल्लाह भी सेना द्वारा ढेर कर दिया गया। हिज्बुल के टॉप कमांडर रियाज नाइकू के मारे जाने के बाद सैफुल्लाह को संगठन का चीफ बनाया गया था, जिसे नवम्बर माह की शुरुआत में ही एक ज्वाइंट ऑपरेशन के बाद ढेर कर दिया गया। सेना की लिस्ट में उसे भी A++ कैटेगरी में रखा गया था।
इससे पहले जून के महीने ही शोपियाँ में हिज्बुल का टॉप कमांडर फारुक अहमद भट उर्फ नाली को भी ठिकाने लगा दिया गया था। फारूक अहमद भट ने 2015 में हिज्बुल मुजाहिदीन को ज्वॉइन किया था।
आतंकवाद मुक्त हुए त्राल और डोडा
इस साल जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले के त्राल को हिज्बुल मुजाहिद्दीन के आतंकियों से पूर्ण रूप से मुक्त कराने के बाद सुरक्षाबलों ने श्रीनगर के डोडा इलाके को भी आतंकी मुक्त करवाया। यह जानकारी स्वयं जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीजीपी दिलबाग सिंह ने दी थी। डीजीपी ने बताया है कि एक मुठभेड़ में हिज्बुल कमांडर मसूद के मारे जाने के बाद इलाका पूरी तरह से आतंकी मुक्त हो गया। वह बलात्कार के मामले में भी वंछित था।
हिज्बुल के आलावा, आतंकी संगठन अल बद्र और लश्कर (LET) के आतंकवादियों का सफाया भी सेना द्वारा जमकर किया गया। जुलाई के माह ही श्रीनगर में सुरक्षाबलों और आतंकियों के बीच हुई मुठभेड़ में भारतीय सेना ने दो आतंकियों को मार गिराया गया, जिनमें से एक इशफाक रशीद खान लश्कर-ए-तैयबा का टॉप कमांडर था, जबकि एक दूसरा आतंकी एजाज भट भी इसी आतंकी संगठन से जुड़ा था।
इशफाक रशीद खान श्रीनगर के सोजिथ इलाके का रहे वाला था और उसे 2018 में आतंकी संगठन का टॉप कमांडर बना दिया गया था। उसकी मौत के बाद कश्मीर पुलिस ने घोषणा की थी कि अब श्रीनगर जिले का एक भी आतंकी जिंदा नहीं बचा है।
ऑपरेशन रंदोरी बहक
सेना और सुरक्षाबलों को कुछ मुठभेड़ों में अपने जवानों को भी गँवाना पड़ा। यह बड़े ऑपरेशन सफल तो रहे लेकिन सेना ने अपने जवानों को भी खोया। ऐसे ही एक ऑपरेशन जो इस वर्ष सबसे साहसी, खतरनाक और रक्त रंजित माना जाता है, उसका नाम था- ऑपरेशन रंदोरी बहक!
अप्रैल, 2020 के ही एक दिन सुरक्षा बलों ने कुपवाड़ा में LOC पर मुठभेड़ में 5 आतंकियों को मार गिराया। इस ऑपरेशन (Operation Randori Behak) में सेना ने अपने पाँच सैनिकों को खो दिया। तीन मुठभेड़ के दौरन और दो सैनिकों ने पास के सैन्य अस्पताल में दम तोड़ दिया। खराब मौसम के कारण जख्मी जवानों को निकालने में सेना को बहुत मश्क्कत करनी पड़ी थी।
भारतीय सेना ने नियंत्रण रेखा पर कुपवाड़ा के केरन सेक्टर में ऑपरेशन रंदोरी बहक शुरू किया, जो 5 दिनों तक जारी रहा और इसमें हेलीकॉप्टर और ड्रोन की मदद ली जा रही थी। घुसपैठ के दौरान सुरक्षा बलों से उनकी मुठभेड़ हुई, लेकिन खराब मौसम और घने जंगल का फायदा उठा कर आतंकी भाग निकलने में कामयाब हो गए थे। सेना ने अपना ऑपरेशन जारी रखते हुए पूरे इलाके की घेराबंदी करके ऑपरेशन को जारी रखा।
पहली अप्रैल को नियंत्रण रेखा के पास पैरों के निशान देखे गए थे। इस जगह पर बाड़ पूरी तरह से बर्फ में डूबे हुए थे। इसके बाद पैरों के निशानों को ही आधार बनाकर सर्च ऑपरेशन चलाया गया था। इस ऑपरेशन में भारतीय सेना के विशेष बल के दस्ते का नेतृत्व सूबेदार संजीव कुमार ने किया और इसमें हवलदार डावेंद्र सिंह, पैराट्रूपर बाल कृष्ण, पैराट्रूपर अमित कुमार और पैराट्रूपर छत्रपाल सिंह शामिल थे। वे सभी इस मुठभेड़ में वीरगति को प्राप्त हुए।
सेना द्वारा घाटी में आतंक के सफाए का अभियान लगातार जारी है। आज बुधवार (दिसंबर 30, 2020) को भी सेना तीन आतंकियों को ठिकाने लगाने में कामयाब रही है। सेना ने बताया कि ये आतंकवादी आगामी गणतंत्र दिवस पर किसी बड़े हमले की साजिश रच रहे थे। यदि आतंकवाद विरोधी अभियान इसी गति से जारी रहा, तो हम 2022 के अंत तक घाटी से आतंकवाद के पूर्ण उन्मूलन की आशा कर सकते हैं। यह एक सकारात्मक संकेत है।