Friday, March 29, 2024
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कारगिल में 527 सैनिकों का बलिदान Vs 798 सैनिकों ने बिना वजह गँवाई जान: OFB के ‘घटिया हथियार’ से मुक्ति कब?

ऑपरेशन पराक्रम के दौरान लगभग 8 लाख जवान बॉर्डर पर तैनात थे। लड़ाई नहीं हुई लेकिन 798 सैनिकों ने अपनी जान गँवाई। कारगिल में लड़ कर बलिदानी हुए थे हमारे जाँबाज लेकिन बिना लड़े सिस्टम की खामियों के कारण मौत क्यों और कब तक?

भारतीय सेना पर किन बातों का बुरा प्रभाव पड़ रहा है? इसका जवाब बहुत विस्तृत है लेकिन उन तमाम चीज़ों में ही एक बड़ा नाम है आयुध निर्माण बोर्ड/ऑर्डनेन्स फैक्ट्री बोर्ड (Ordnance Factory Board)। एक ऐसी एजेंसी जो रक्षा मंत्रालय के उत्पादन विभाग (Production Department) के अंतर्गत आती है। इस एजेंसी के तहत पूरे देश भर में 41 फैक्ट्री मौजूद हैं, जिन्हें ‘इंडियन ऑर्डनेन्स फैक्ट्रीज़ कहा जाता है और इनमें लगभग 80 से 82 हज़ार कर्मचारी काम करते हैं। 

OFB का मूल काम है भारतीय सेना के अलग-अलग धड़ों जैसे नौसेना, वायुसेना और थल सेना के लिए हथियार और उपकरण बनाना। यहीं से इस मुद्दे पर विमर्श शुरू होता है। OFB की कार्यशैली से लेकर यहाँ तैयार किए गए हथियारों तक सब कुछ उतना सही नहीं है। जिसके नकारात्मक परिणाम या आम शब्दों में कहें तो नुकसान भारत सरकार और मुख्य रूप से भारतीय सेना को झेलने पड़ते हैं। इसमें सिर्फ आर्थिक हानि शामिल नहीं है बल्कि सेना के जवानों-अफसरों का बहुमूल्य जीवन भी शामिल है। 

इस सम्बंध में पूर्व मेजर गौरव आर्या का एक वीडियो है, जिसमें उन्होंने विस्तार से चर्चा की है। उन्होंने आयुध निर्माण बोर्ड (OFB) के हर उस पहलू पर बात की है, जिसमें बदलाव की गुंजाइश और ज़रूरत है।

विश्व युद्ध के दौर में भारत दुनिया के उन देशों में शामिल था, जो हथियारों के उत्पादन और निर्यात के मामले में सबसे ऊपर थे। उस दौरान भी OFB ही सैन्य उपकरण और हथियार बनाती थी क्योंकि इसका गठन अंग्रेज़ों के ज़माने में ही हो गया था। ऐसे में सवाल उठता है कि अब किन वजहों से ऐसा नहीं हो पा रहा है? सबसे पहले समझ लेते हैं कि फ़िलहाल OFB की यथास्थिति क्या है और यह किस पैमाने पर और किस तरह काम कर रही है। 

अभी देश के अलग-अलग राज्यों में कुल 41 ऑर्डनेन्स फैक्ट्री हैं, जो तरह-तरह के सैन्य उपकरणों और हथियारों का उत्पादन करती हैं। वर्गीकरण के आधार पर हम इसे ऐसे समझ सकते हैं:

  1. असलहा और बारूद (Ammunition & Explosives) – 11 फैक्ट्री
  2. गाड़ी और बंदूक (Vehicles & Arms) – 11 फैक्ट्री
  3. सामग्री और कलपुर्जे (Materials & Components) – 8 फैक्ट्री
  4. बख्तरबंद गाड़ियाँ (Armored Vehicles) – 6 फैक्ट्री
  5. उपकरण (Equipments) – 5 फैक्ट्री

इसके अलावा 13 डेवलपमेंट सेंटर्स हैं और 9 इंस्टिट्यूट ऑफ़ लर्निंग। इनमें से लगभग 80 फ़ीसदी उत्पाद सेना खरीदती है। इसमें एक बड़ा पेंच यह है कि दुनिया के ऐसे तमाम देश जिनके भारत के साथ अच्छे सम्बंध हैं, वह भी ऑर्डनेन्स फैक्ट्री के बनाए हथियार और उपकरण नहीं खरीदते हैं और यह भी होने वाले नुकसान का एक बड़ा कारण है।

OFB का मुख्यालय कोलकाता में स्थित है क्योंकि इसकी स्थापना ईस्ट इंडिया कंपनी ने की थी। जबकि इसके लगभग सारे ही ख़रीददार दिल्ली में मौजूद हैं। चाहे वह सेना हो, नौसेना हो, थल सेना हो या गृह मंत्रालय, इन सभी का मुख्यालय दिल्ली में है इसलिए संवाद की सम्भावनाएँ सीमित हो जाती हैं।

देश के अलग-अलग क्षेत्रों में स्थित OFB की फैक्ट्रीज़ में लगभग 80748 कर्मचारी काम करते हैं। इसके अलावा इससे सम्बंधित अन्य संस्थाओं में लगभग 1 से 1.5 हज़ार कर्मचारी काम करते हैं यानी मोटे तौर पर लगभग 82 हज़ार कर्मचारी OFB के अंतर्गत काम करते हैं। फिर भी OFB इतनी कमाई नहीं कर पाती कि अपने मुनाफ़े से फैक्ट्रीज़ चला सके यानी वह काफी बड़े पैमाने पर घाटे का सामना कर रही है।

OFB की कार्यशैली का एक छोटा सा उदाहरण है – ‘इंसास राइफल’। सेना इस हथियार को बहुत अच्छा नहीं मानती है फिर भी सेना को यह खरीदने पड़ते हैं, नहीं खरीदने का विकल्प ही नहीं है क्योंकि OFB इनका उत्पादन करती है। हालात ऐसे बने कि सरकार को यह खरीदने के बावजूद एके 203 और सिक्स आर्स जैसी अन्य राइफल खरीदनी पड़ी। 

अब कुछ ऐसी चीज़ों के बारे में जान लेते हैं, जिनका बाज़ार में मूल्य क्या है और OFB के निर्माण और उत्पादन के बाद मूल्य क्या होता है:

  1. कॉम्बैट ड्रेस – OFB से खरीदे जाने पर 3300 रुपए और बाज़ार से खरीदे जाने पर 1800 रुपए।
  2. कॉम्बैट जैकेट – OFB से खरीदे जाने पर 5950 रुपए और बाज़ार से खरीदे जाने पर 3500 रुपए।
  3. कोट (Extremely cold climate) – OFB से खरीदे जाने पर 6250 रुपए और बाज़ार से खरीदे जाने पर 4000 रुपए।
  4. हाई एल्टीट्यूड पैराशूट – OFB से खरीदे जाने पर 1 लाख 62 हज़ार रुपए और बाज़ार से खरीदे जाने पर 1 लाख 12 हज़ार रुपए।
  5. अशोक लेलैंड ‘आर्मी ट्रक’ – OFB से खरीदे जाने पर 28 लाख रुपए (पूरी तरह बना कर) और बाज़ार खरीदे जाने पर 17 लाख रुपए। 

इसके अलावा पिछले कुछ सालों में OFB ने काफी बड़े पैमाने पर आर्थिक गिरावट (shortfall) देखी है। साल 2009 से 2014 के बीच OFB से कुल 82 उत्पादों की माँग की गई थी, जिसकी कुल कीमत 25914 करोड़ रुपए थी। लेकिन बनाए गए सिर्फ 19917 करोड़ रुपए के उत्पाद यानी लगभग 23 फ़ीसदी की गिरावट।

इसी तरह साल 2014 से लेकर 2019 के बीच दोबारा 82 उत्पादों की माँग रखी गई, जिसकी कुल कीमत 26378 करोड़ रुपए थी। लेकिन बनाए गए सिर्फ 18538 करोड़ रुपए के उत्पाद यानी इस बार लगभग 29 फ़ीसदी की गिरावट। 

हाल ही में सेना ने इस सम्बंध में एक आधिकारिक बयान जारी किया था जिसके अनुसार सेना को OFB द्वारा बनाए गए हथियार और सैन्य उपकरण नष्ट करने पड़े थे। उनकी हालत इतनी बदतर थी कि उन्हें उपयोग में लाया ही नहीं जा सकता था, अगर ऐसा करने का प्रयास होता तो जान और माल की हानि होती। इतना ही नहीं, अगर यह हथियार और सैन्य उपकरण उचित गुणवत्ता के होते तो सेना उस मुनाफ़े से 100 तोपें खरीद सकती थी।

अब एक नज़र उन आँकड़ों पर डाल लेते हैं कि पिछले कुल सालों में खराब हथियारों और सैन्य उपकरणों की कीमत कितने भारतीय जवानों ने चुकाई: 

  1. 2014 – 1 मृत्यु और 15 घायल
  2. 2015 – 0 मृत्यु और 14 घायल
  3. 2016 – 19 मृत्यु और 28 घायल
  4. 2017 – 1 मृत्यु और 18 घायल
  5. 2018 – 3 मृत्यु और 43 घायल
  6. 2019 – 3 मृत्यु और 28 घायल
  7. 2020 – 0 मृत्यु और 13 घायल (अभी तक) 

यानी खराब सैन्य उपकरणों और हथियारों की वजह से पिछले 7 सालों में 27 जवान अकारण बलिदान हुए और 159 फौजी घायल हुए। भारतीय जवानों की जान को लेकर हुए नुकसान के संदर्भ में एक और बहुत मज़बूत उदाहरण है, ‘ऑपरेशन पराक्रम’।

साल 2001 में भारतीय संसद पर हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत पाकिस्तान सीमा पर लगभग 8 लाख जवान तैनात किए गए थे। युद्ध जैसे हालात बन गए थे, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तैयारी पूरी कर ली थी। युद्ध भले नहीं हुए लेकिन इतने सैनिकों की जान गई, जिसकी कल्पना करना मुश्किल है और कारण वही, खराब गुणवत्ता के हथियार और सैन्य उपकरण।

कारगिल की लड़ाई में आधिकारिक रूप से जारी की गई जानकारी के मुताबिक़ कुल 527 सैनिक बलिदानी हुए थे लेकिन ऑपरेशन पराक्रम के दौरान 798 सैनिकों ने अपनी जान गँवाई। इस ऑपरेशन के चलते भारत सरकार को हज़ारों करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था।                             

यह तो फिर भी बड़े उदाहरण हैं। इसके अलावा बहुत सी ऐसी वजहें हैं, जिन पर ध्यान ही नहीं जाता है। देश के अलग-अलग हिस्सों में सेना के हथियार बनाने वाली बहुत सी निजी फैक्ट्री हैं और आश्चर्यजनक रूप से उनमें से कुछ NATO तक को हथियार निर्यात करती हैं। सेना उनसे चाह कर भी हथियार नहीं खरीद सकती है और न ही उन पर किसी का ध्यान जाता है।

हाल फ़िलहाल के कुछ सालों में OFB का औसत मानव संसाधन उपयोग (average man utilization) लगभग 127 फ़ीसदी रहा है। जबकि औसत मशीन उपयोग (average machine utilization) 75 फ़ीसदी है। इसके अलावा लगभग हर OFB फैक्ट्री में मजदूर संघ (लेबर यूनियन) है, जिनमें से कुछ की कार्यशैली अक्सर हैरान करती है। अक्सर सीमा पर चीन के साथ तनाव होने पर एक हिस्सा (वामपंथी विचारधारा से प्रभावित) विरोध जताने लगता है, कभी-कभी तो वह काम करना ही बंद कर देते हैं।

इन सारी बातों के अलावा OFB से जुड़े हुए जितने भी कर्मचारी हैं, वह बेहद कर्मठ और समर्पित हैं। उन्हें अपनी ज़िम्मेदारी का आभास है लेकिन उन्हें उचित दिशा-निर्देश, प्रोत्साहन और बढ़ावा देने की ज़रूरत है। सरकार को भी इस सम्बंध में कठोर होकर विचार करना पड़ेगा, जिससे सेना का बुनियादी ढाँचा सुधरे।   

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