Thursday, November 7, 2024
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भारत में मुस्लिम लेकर आए थे जलेबी तो फिर श्रीराम के जन्मदिन पर कैसे बनी थी ‘कर्णशष्कुलिका’: जलेबी के मुगलीकरण पर बहस

"जलेबी चूँकि कान के पन्ना जैसी लगती थी इसलिए इसका नाम 'कर्णशष्कुलिका' रखा गया। इसके अलावा, 17वीं सदी की किताब में एक मराठा ब्राह्मण रघुनाथ ने जलेबी बनाने की विधि का उल्लेख कुण्डलिनि नाम से किया है।"

इतिहास के साथ छेड़छाड़ करके उसे आज की पीढ़ी के सामने रखना सोशल मीडिया पर एक प्रचलन की तरह है। संस्कृति, सभ्यता से लेकर खाने पीने तक की चीजों में नैरेटिव घुसाने की कोशिश अक्सर यहाँ होती रहती है। ऐसे में तथ्य व तर्क ही इस नैरेटिव को धराशायी करने के कारगर तरीके हैं। हाल ही में कुछ ऐसा ही जलेबी को लेकर हुआ है। जी हाँ, बिरयानी के बाद अब जलेबी को लेकर दावा किया जा रहा है कि इसे भारत में मुस्लिम लेकर आए।

गुजरात हिस्ट्री’ नाम के ट्विटर हैंडल से कल दावा किया गया कि भारत में जलेबी मुस्लिमों की देन हैं। जलेबी नाम अरबी के शब्द जलाबिया से निकला है। फारसी में इसे जलिबिया कहा जाता है। यह भारत का मशहूर मिष्ठान है। इसके अलावा मुस्लिम भारत में चपाती बनाने की कला, कुल्फी, गुलकंद, गुलाबजामुन, जलेबी, पुलाव, फालुदा, बर्फी, बीरंज, मुरब्बो, हल्वो, शिरो और शक्कर पारा लेकर आए थे।

आगे ट्वीट में ‘गुजरात हिस्ट्री’ लिखता है कि मध्यकाल में कई सदियों तक मुस्लिमों ने भारत में राज किया। इसके बाद उन्होंने यह भी लिखा कि कुछ लोग हो सकता है उनके ट्वीट को पसंद करें कुछ न पसंद करें लेकिन वह ऐतिहासिक तथ्यों को नहीं बदल सकते।

अपने ट्वीट का स्रोत उन्होंने गुजरात की एक इतिहास की किताब, ‘भारत का सांस्कृतिक इतिहास’ को बताया है। साथ ही लिखा कि मुस्लिमों के 550 साल के शासल काल में मुस्लिमों और हिंदुओं के बीच खानपान, रहन-सहन, भाषा, मान्यताओं, संस्कृति और परंपराओं का आदान प्रदान हुआ।

अब ‘गुजरात हिस्ट्री’ के इसी दावे पर कुछ लोगों में काफी नाराजगी है। ‘आदि’ नाम के एक ट्विटर यूजर ने दावा किया है कि जलेबी प्रभु राम के जन्मदिन पर भी बनाई जाती थी जिसका जिक्र हिन्दुओं की आध्यात्मिक पुस्तक ‘रामायण’ में है। उस समय जलेबी को ‘कर्णशष्कुलिका’ कहा जाता था।

इसके बाद एक राज शर्मा नाम के ट्विटर यूजर ने बताया कि जलेबी चूँकि कान के पन्ना जैसी लगती थी इसलिए इसका नाम ‘कर्णशष्कुलिका’ रखा गया। इसके अलावा, 17वीं सदी की किताब में एक मराठा ब्राह्मण रघुनाथ ने जलेबी बनाने की विधि का उल्लेख कुण्डलिनि नाम से किया है। इसका आधार ‘भोजनकुतूहल’ नाम की किताब है।

राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों के जानकार दिव्य कुमार सोती लिखते हैं, “बर्फी बनाने के लिए दूध, बिरयानी बनाने के लिए चावल, मुरब्बा बनाने के लिए आँवला और जलेबी बनाने के लिए गुड़-चीनी मुसलमान अरब के रेगिस्तान से भारत लेकर आए थे। इतिहास नहीं जानते तो कम से कम आपको भूगोल और खेती का तो पता होना चाहिए!”

इसी प्रकार एक यूजर @commentlogy लिखता है कि मुगलों से 1500 साल पहले संगम काल में तमिल कविता में जिक्र है कि आखिर कैसे चावल व मसालों से मीट बनता था इसलिए ये मानना कि पुलाव मुगलों ने सिखाया गलत है और इसे सूची से हटाया जाए।

डॉ पीएस विष्णुवर्धन तंज भरे अंदाज में लिखते हैं, “तो धरती के सबसे अमीर भारतीय आदि काल की तरह तब तक कच्चा माँस खाते थे, जब तक धरती के सबसे गरीब इलाकों से मुगल यहाँ आइस्क्रीम और बिरयानी  नहीं लेकर आए।”

ट्विटर का मशहूर ट्विटर अकॉउंट ‘ट्र इंडोलॉजी’ भी गुजरात हिस्ट्री को चपाती बनाने की विधि पर आड़े हाथों लेता है और पूछता है कि रोटी बनाने की विधि मुस्लिम लेकर आए भारत में? फिर कहता है, “महान, चपाती मूलत: संस्कृत शब्द चर्पटी से निकला है। दोनों का अर्थ एक ही होता है। ऐसे कोई शब्द फारसी और अरबी में नहीं है। चर्पटी का उल्लेख अम्राकोसा (Amarakośa) में है, जिसे पैगंबर के जन्म से भी सैकड़ों साल पहले लिखा गया था।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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