'द हिन्दू' ने एक कार्टून पब्लिश किया, जिसमें कोरोना वायरस को हाथों में बन्दूक थामे हुए पृथ्वी ग्रह को डराते हुए बताया गया है कि इसने पूरी पृथ्वी को आतंकित किया है।
गुरु नानक ने स्वयं अपनी आँखों से देखे बाबर के अत्याचारों का ऐसा दर्दनाक वर्णन किया है कि आज भी उसको पढ़ कर किसी का भी दिल पसीजे बिना नहीं रह सकता। उस अत्याचारी बादशाह की जामिया मिलिया जैसे राष्ट्रीय संस्थान में जयंती मनाई गई थी।
क्या हमारे पास इतना समय है कि ऐसे सड़कछाप पत्रकारों के ट्वीट पर उसके घर दो पुलिस वाले को भेज कर उठवा लिया जाए जबकि हर मिनट बलात्कार हो रहे हैं? क्या सरकारों की पुलिस या कोर्ट जैसी संस्थाओं को पास ऐसी बातों को लिए समय है जबकि करोड़ से अधिक गंभीर केस लंबित पड़े हैं?
यहाँ दो अदालतों के दो जजमेंट सामने हैं जिनमें एक ही जैसा मामला है लेकिन इसे न्याय व्यवस्था की विडंबना ही कहा जाएगा कि एक मामले में एक पत्रकार सब कुछ जानते हुए एक नेता और मुख्यमंत्री के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट ट्वीट करता है जिसपर उसे उच्चतम न्यायालय से जमानत मिल जाती है। लेकिन...
'वीरे दी वेडिंग' फिल्म में खुलकर अपने 'मन की बात' करने वाली स्वरा भास्कर को बहुत आसानी से नारीवाद का चेहरा बना कर पेश किया जाने लगा है। यह वर्तमान समय का सबसे बड़ा दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि महिलाओं के अधिकारों को उसके शारीरिक सुख और जबरन फूहड़पन मात्र से जोड़कर पेश कर देने से वो समाज में महिलाओं की नई पहचान दिलाने वाले ठहराए जाने लगते हैं।
इन 600 खलिहर लोगों ने जो बात अपने पत्र में लिखी है वो है ‘हिंदुत्व के गुंडों’ का वर्णन! गुमनामी में जी रहे इन 600 लोगों ने भी सस्ती लोकप्रियता के लिए वही विधि अपनाई है, जो पुलवामा आतंकी हमले में समुदाय विशेष के उस भटके हुए फिदायीन ने अपनाई थी, यानि हिंदुत्व पर हमला!
अपनी फिल्मों के प्रचार के लिए अनाप-शनाप बयान देने के लिए मशहूर आमिर खान ने कहा था कि देश का माहौल देखकर उन्हें लगने लगा है कि वो भारत से बाहर चले जाएँ। इसके अलावा, कुछ दिन पहले ही आलिया भट्ट की माँ और महेश भट्ट की पत्नी सोनी राजदान ने भी कहा था कि वह पाकिस्तान में ज्यादा खुश रहेंगी।
अल्पसंख्यक समुदायों और उनसे संबंधित धर्मों (इस्लाम या ईसाई धर्म) की आलोचना पर सरकार हमेशा से कड़े रुख अपनाती रही है। जबकि हिंदू धर्म की आलोचना 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के तहत स्वीकार्य मानी जाती रही है। इस ऐतिहासिक फैसले के बाद शायद यह मान्यता टूटेगी!
संसदीय समिति ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया है कि वे ट्विटर के किसी भी अधिकारी से तब तक नहीं मिलेंगे जब तक कि समिति के समक्ष कोई वरिष्ठ सदस्य या ट्विटर के सीईओ पेश न हों।