"2013 में जब हम हारे तो कॉन्ग्रेस को दिल्ली में 24.55 फीसदी वोट मिले थे। शीला जी 2015 के चुनाव में शामिल नहीं थीं, जब हमारा वोट प्रतिशत गिरकर 9.7 फीसदी हो गया। 2019 में जब शीला जी ने फिर से कमान संभाली तो कॉन्ग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़कर 22.46 फीसदी हो गया।"
आज जब दिवगंत शीला दीक्षित के मत्थे हार का दोष मढने की कोशिश हो रही यह जानना जरूरी है कि इस बार दिल्ली की सत्ता में वापसी के लिए सोनिया गॉंधी ने हर उस शख्स को गले लगाया था जिससे पूर्व मुख्यमंत्री के मतभेद थे, जो उनसे कभी बदला लेना चाहते थे।
इस पोस्टर में लिखा हुआ है- "अरे ओ सुन ले, तू हमें करंट क्या लगाएगा? अब तू दिल्ली से ही नहीं, हिंदुस्तान से भी जाएगा।" शाहीन बाग़ वालों से जब मीडिया ने सवाल पूछा तो वो गुजरात दंगे की बातें करने लगे। भाजपा के प्रति अपने नफरत का इजहार करने लगे।
दिल्ली विधानसभा चुनावों में 5 दिन पूर्व एक समाचार चैनल द्वारा आयोजित कार्यक्रम में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने लोगों के कहने पर हनुमान चालीसा का पाठ किया था।
मोदी मैजिक पर सवार होकर आए पीके को अब तक जो एकमात्र मुश्किल मोर्चा मिला है उस पर वे बुरी तरह नाकाम रहे। सो, यह देखना दिलचस्प होगा कि वे सियासी महत्वाकांक्षाओं को पूरा कर पाएँगे या फिर ब्रांडिंग की दुनिया के रामविलास' बनकर ही रह जाएँगे।
आप की जीत पर कॉन्ग्रेस नेताओं की खुशी शर्मिष्ठा मुखर्जी को नागवार गुजरी है। उन्होंने पूछा है कि अपनी बुरी हार पर चिंतित होने की बजाए कॉन्ग्रेस किसी दूसरी पार्टी की जीत पर ख़ुश क्यों हो रही है?
शीर्ष नेतृत्व की मोदी घृणा ने कॉन्ग्रेस को इतना कुंठित कर दिया है कि वह राजनीति के सामान्य तकाजे से भी दूर जा चुकी है। इस नियति को उसने खुद चुना है। अतीत के अनुभवों से नहीं सीखा। न ही यह याद रख पाई कि दिल्ली की सत्ता में AAP उसे बेदखल कर आई थी न कि BJP को।
संसद से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक, हर जगह बलि का बकरा मुझे ही बनाया जाता है। एक दिन पहले मुझे गालियाँ दी जाती हैं, अगले ही दिन मनपसंद परिणाम आते ही उन बातों को भुला दिया जाता है। इस बार मेरी लाज बच गई। चलिए, दिल्ली चुनाव को वणक्कम।
मुफ्त में चीजें देने के बल पर राजनीति हर जगह नहीं चल सकती। ये ट्रेंड दक्षिण भारत से चला लेकिन आज वहीं फेल हो रहा है। ये चुनाव विकास के मुद्दे पर नहीं लड़ा गया, ये स्पष्ट है। फिर मुद्दे क्या थे? जब चुनाव में कोई बड़ा चेहरा आता है, तो दिल्ली उस पर भरोसा जताती है।
राहुल गाँधी की नर्वसता उस दिन साफ़ देखी गई कि, जब राहुल गाँधी दिल्ली की इकलौती अपनी जनसभा में बोल बैठे, "6 महीने बाद मोदी को देश के युवा डंडा मारेंगे।" दिल्ली में कॉन्ग्रेस की इकलौती जनसभा में दिया राहुल गाँधी का यह बयान पार्टी के गले की फाँस बन गया, जिसे लेकर कॉन्ग्रेस पार्टी के कई बड़े नेताओं को सफाई तक देनी पड़ी।