यह मैथिली की खूबसूरती है कि 'हम देखेंगे' की 'बुतपरस्ती' सगुण-निर्गुण ब्रह्म में बदल जाती है। लेकिन, फैज कट्टर पाकिस्तानी थे। यह बात सालों पहले हरिशंकर परसाई दुनिया को बता चुके हैं।
"यदि हम हिंदुओं से घृणा नहीं करते हैं, अपनी सरकार को या सुरक्षा बलों को खलनायक नहीं बताते, तो यहाँ आपको सराहा नहीं जाएगा। सराहा तब जाएगा जब आप देश के भविष्य के बारे में निराशावादी हों, पाकिस्तान से और उसके आतंकियों से प्यार करें... इसलिए क्षमा करें मुझे ऐसे प्यार की जरूरत नहीं।"
‘लिबरल’ बुलियों ने जोहो के ग्राहकों और कर्मचारियों से कहा कि ‘वे वही करें जो उनका अंतरात्मा कहता है।’’ साथ ही वेम्बू को धमकी भी दी गई कि अगर वे इस लाइन से नहीं हटेंगे, तो उन्हें सोशल बायकॉट का भी सामना करना पड़ेगा।
सिर्फ मूर्तियों को नष्ट किए जाने की कल्पना मात्र और केवल अल्लाह का नाम ही इस दुनिया में रहना चाहिए, ये सोच मात्र ही इस कविता का विरोध करने के लिए काफी होना चाहिए ना? या फिर लिबरल्स को ये लगता है कि उनकी भावनाएँ दूसरों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण हैं?
लिबरल गैंग को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनका कहा सच है या झूठ। वे केवल अपने एजेंडे की परवाह करते हैं। उसे आगे बढ़ाने के लिए हिंदुओं पर क्रूर अत्याचार करने वाले इस्लामी शासकों का महिमामंडन करते हैं।
वक्त है चेत जाने का। खुद की आवाज बनने का। गिरोह घात लगाए बैठा है। उसे नहीं कुचला तो वह गजवा-ए-हिंद के ख्वाब बुनने वालों के पीठ पर हाथ फेरेगा और आपको भगवा आतंकवादी घोषित कर देगा।
2024 बहुत दूर है। उस समय क्या होगा, यकीनी तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन, जितने जोर-शोर से CAA+NRC को मुस्लिम विरोधी बताया जाएगा, इस्लाम विरोधी भावनाएँ गहराती जाएँगी। वैसे भी इस उन्माद के सारे सूत्र भीड़ अपने हाथ ले ही चुका है।
राम जन्मभूमि मंदिर में विघ्न डालने के आज आखिरी दरवाजे भी सुप्रीम कोर्ट ने बंद कर दिए हैं। जमीयत उलेमा ए हिन्द, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के इशारे पर याचिका डालने वालों, इरफ़ान हबीब-प्रशांत भूषण के लिबरल गिरोह समेत 18 याचिकाएँ सुप्रीम कोर्ट की नई संविधान पीठ ने ख़ारिज कर दी हैं।
याचिका में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को एक आस्था को तरजीह देना वाला बताया गया है। कहा गया है कि हिन्दू पक्ष को जन्मभूमि की ज़मीन देने का आधार केवल आस्था को माना गया है। मस्जिद के पक्ष में पुरातात्विक साक्ष्यों को नज़रंदाज़ कर दिया गया।
वामपंथियों की पैदल सेना में सबसे ज्यादा लोग दिल्ली जैसी जगहों के कॉलेजों के नए बच्चे होते हैं। व्यवस्थित तरीके से उनके दिमाग में झूठ का सहारा ले कर खास धर्म और विचार के खिलाफ जहर भरा जाता है। रवीश और केजरीवाल से ले कर कामरा, राठी, बनर्जी, पीईंग ह्यूमन आदि इसकी पूरी योजना बनाते हैं।