घर-घर अखबार पहुँचा कर अपनी रोजी-रोटी चलाने वाले मन्नूलाल वैष्णव को यह नहीं पता था कि एक दिन इन्हीं अखबारों में उनकी हत्या की खबर छपेगी! हत्या वो भी उस रफीक खान (इंसान या हैवान!) के द्वारा जो इन्हीं के लाए अखबारों को पढ़ता जरूर था लेकिन पैसे देने के नाम पर नजरें चढ़ाता था।
......उसके पास जो स्कार्फ मिला है वो कश्मीरी है। जिससे उसकी बात साफ झूठी लग रही है। अभी तक पूछताछ के दौरान वह ये नहीं बता पाया कि आखिर वह महिलाओं के कपड़े पहनकर क्यों घूम रहा था। इसलिए उस पर शक गहराता जा रहा है।
ममता बनर्जी, अशोक गहलोत और कमलनाथ सरकार ने इस अधिनियम को लागू करने से मना कर दिया है। मध्य प्रदेश की सरकार का कहना है कि जुर्माने की राशि काफी अधिक है। केंद्र सरकार संशोधित एक्ट को लेकर नोटिफिकेशन जारी कर चुकी है।
राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने वसुंधरा राजे सरकार के दौरान लागू किए गए भामाशाह स्वास्थ्य योजना को बंद कराने के बाद अब उसी भामाशाह के नाम पर शुरू किए गए भामाशाह टेक्नो हब की जमकर तारीफ की है।
लाठी चार्ज में कई छात्रों को भी चोटें आई है। छात्र मतगणना में धांधली का विरोध कर रहे थे। राजस्थान में आदिवासी और दलित समाज के लोगों के साथ पुलिसिया बर्बरता के हाल में कई मामले सामने आए हैं।
'कान्हा मटकी फोड़' में भाग लेने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुँचे थे। इसी दौरान एक भीड़ ने वहॉं पहुॅंच पथराव किया। पुलिस को भी भीड़ ने नहीं छोड़ा। तनाव को देखते हुए इलाके में भारी पुलिस बल तैनात किया गया है।
इस मामले में पुलिस ने 25 पत्थरबाजों को हिरासत में लिया है। फिलहाल, हालात नियंत्रण में हैं। बताया जाता है कि रविवार रात भी पुलिस को पथराव की घटनाओं की सूचना मिली। इसके बाद देर रात लोगों की धड़पकड़ की गई।
अगर भाजपा ने किसी स्वतंत्रता सेनानी या किसी महापुरुष को लेकर ऐसा निर्णय लिया होता तो कई लोग बवाल खड़ा करते हुए कहते कि सरकार पाठ्यक्रम से छेड़छाड़ कर रही है या उसका भगवाकरण कर रही है।
इस घटना में एक मुस्लिम भीड़ ने हरिद्वार जाने वाले काँवड़ियों को ले जा रही एक बस पर हमला किया था। घटना के दौरान 30 से अधिक काँवड़िए गंभीर रूप से घायल हो गए थे, वहीं क़रीब एक दर्जन से अधिक बसों को आग लगा दी गई थी।
आँकड़े बताते हैं कि राजस्थान में गहलोत सरकार के आने के बाद अपराधों में बड़ा उछाल आया है। पुलिसिया आँकड़ों के मुताबिक इस साल बढ़कर जनवरी से अप्रैल के बीच 62,666 आपराधिक मामले दर्ज हुए। महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा के मामलों में 40.56% उछाल आया।