साढ़े तीन साल तक कुशलतापूर्वक सेवा देने के बावजूद उन्हें पद छोड़ना पड़ा था, इसकी वजह राहुल का वो आदेश था जिसके मुताबिक़ जो 80 साल के हो गए हों उन्हें सत्ता में नही रहना चाहिए।
प्रियंका गाँधी की सीट का आवंटन इस ओर भी इशारा करता है कि कहीं न कहीं कॉन्ग्रेस को यह एहसास है कि वो वंशवादी परंपरा को आज भी जीवित रखे हुए है, जिसे दुनिया की नज़र से धूमिल करना होगा।
इन पोस्टरों में राहुल गाँधी नरेंद्र मोदी पर निशाना लगा रहे हैं। जी हाँ, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रावण के रूप में दिखाया गया है। मुख्यमंत्री कमलनाथ को 'गौ भक्त' हनुमान के रूप में दिखाया गया है।
दामाद जी को प्रवर्तन निदेशालय के दफ़्तर में हाज़िरी लगानी पड़ रही है। चिटफंड घोटालों की आँच ममता तक जा पहुँची है। फ़र्जी कंपनियों की पोल खुल रही है। इसीलिए, लोकतंत्र ख़तरे में है।
ये लोग लोकतंत्र, फ़ेडरल स्ट्रक्चर, संविधान और तमाम तरह की बातें करते हैं लेकिन सत्ता से दूर होने पर इनकी बिलबिलाहट इनसे हर वो कार्य पब्लिक में करवा रही है, जो किसी भी जन प्रतिनिधि को प्राइवेट स्पेस में भी नहीं करना चाहिए।
राज्यों में चुनाव जीतने से पहले राहुल यह वादा करते थे कि अगर वो चुनाव जीतते हैं तो 10 दिन के भीतर किसानों का कर्ज माफ़ कराएँगे। लेकिन चुनाव के तुरंत बाद राहुल जनता को समझाते नज़र आए कि यह इतना आसान काम नहीं हैं।
राहुल जी की रैली थी तो जैसा कि हमेशा होता है राफेल का जिक्र हुआ। उन्हें आज भी सही आंकड़ा याद नहीं था। 7 दिन पहले का 45,000 करोड़ आज 1 हजार लाख करोड़ हो गया (अंक में लिखना पड़ा क्योंकि मुझे 1 हजार लाख करोड़ लिखना नहीं आता)।