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communists
चिंतन: निराशावादी और विरोधाभासी है वामपंथ, समाज के विपरीत है इसकी अवधारणा
मार्क्सवाद समाज को दो भागों में वर्गीकृत करता है, जो कि शोषण कर रहे हैं और जो शोषित हैं। यह उन परिभाषाओं के विपरीत है, जिन पर 'समाज' मौजूद है। ये उन सभी सिद्धांतो को भी ख़ारिज करता है जो एक व्यक्ति या संस्था की सफलता और खुशी के उपायों का अनुमान लगाते हैं।
फ़्री-लान्स विरोधकर्मी से ऑन-डिमांड-एथीस्ट बनने वाली वामपंथन से नाराज हुए मार्क्स चचा
JNU वामपंथी की हालिया गतिविधियों के तार अगर एक सिरे से जोड़ते हुए देखा जाए, तो पता चलता है कि ये कोई विद्यार्थी या नेता या समाजवादी नहीं, बल्कि सिर्फ और सिर्फ एक शहरों में रहने वाला अनपढ़, कूप-मण्डूक, गतानुगतिक है, जिसे किसी भी हाल में क्रांति की तलाश थी और समय आने पर उसने अपनी क्रांति को परिभाषित भी कर डाला है, जिसका उदाहरण ऑन डिमांड आस्तिकता वाली शेहला राशिद है।
केरल के वामपंथी MLA का महिला-विरोधी बयान – ‘बिना दिमाग की हो’
"मैं अपने पद के अनुसार अपने कर्तव्य को निभाना जारी रखूँगी, बिना इस बात को तवज्जो दिए कि आगे क्या होगा।”
फ़ेक न्यूज़ का भस्मासुर अब नियंत्रण से बाहर हो चुका है
इंडिया टुडे जैसे प्रकाशनों से शुरू हुई ये व्यवस्था प्रचलित अखबार टाइम्स ऑफ़ इंडिया में आई। अब तो इसमें “द हिन्दू”, जनसत्ता और “इंडियन एक्सप्रेस” जैसे तथाकथित विचारधारा वाले अखबार भी शामिल हैं।
के के मुहम्मद को पद्मश्री: अयोध्या के गुनहगारों के मुँह पर ज़ोरदार तमाचा
विवादित ढाँचा गिराए जाने से पूर्व ऐसे एक-दो नहीं बल्कि 14 स्तंभों को के के मुहम्मद की टीम ने प्रत्यक्ष देखा था। उसी प्रकार के स्तंभ और उसके नीचे के भाग में ईंट का चबूतरा विवादित ढाँचे की बगल में और पीछे के भाग में उत्खनन करने से प्राप्त हुआ था।