अगर आप हिंदू हैं और अपने धर्म के बारे में लिखते, पढ़ते और बोलते हैं तो आप असहिष्णुता और कट्टरता का चेहरा हैं। आप विशेष मजहब से हैं और गंद भी परोस रहे हैं तो आप देश का वो अल्पसंख्यक चेहरा हैं जो बेचारा खुद के अस्तित्व को बचाए रखने की लड़ाई लड़ रहा है।
सोनिया को लिखे कमलनाथ के मंत्री के खत ने खड़े किए कई सवाल। क्या मध्य प्रदेश में कॉन्ग्रेस की सरकार चलेगी? ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रदेश अध्यक्ष बन पाएँगे? और सबसे महत्वपूर्ण क्या उमा भारती के 'मिस्टर बॅंटाधार' फिर से प्रदेश में पार्टी की कब्र खोद कर ही मानेंगे?
कहते हैं एक बिहारी सौ पर भारी। कहते तो यह भी हैं कि तीन तिगाड़ा, काम बिगाड़ा। यहॉं तो 2.5 ही 20 करोड़ पर भारी पड़े। 1.5 ने तो 'आतंक के अन्नदाता' की उनके ही घर लैंड कर लंका लगाई। 1 ने वाया-मार्फत मंतर भेजा, क्योंकि विरोधी कहते हैं उसके आँत में दॉंत है।
बीबीसी का वुसतुल्लाह ख़ान विश्व की सबसे बड़ी लोकतान्त्रिक पार्टी के मुखिया की तुलना 5 लाख लोगों के क़ातिल 'युगांडा के कसाई' से करता है। घृणा से ओत-प्रोत बीबीसी यह सपना देख रहा है कि सभी देश प्रवासी भारतीयों को भगा दें। लेकिन, ऐसा हो सकता है क्या?
क्या रोमिला थापर जेएनयू जैसे बड़े संस्थानों के नियम-क़ायदों से ऊपर हैं? क्या वह किसी संस्था में उसके नियम-क़ानून का पालन किए बिना बने रहना चाहती हैं। आख़िर उनके के पास ऐसा क्या है कि जेएनयू उनके कहे अनुसार अपना काम करे?
ऑपरेशन ख़त्म होते ही जीवनाथन गायब हो गए। उन्होंने अपने अंतर्गत कार्य कर रहे लोगों से साफ़ कह दिया कि वे ऐसा समझें कि कोई जीवनाथन था ही नहीं। नेपाल के कई नेता जीवनाथन को खोजते हुए भटक रहे थे लेकिन जीवनाथन तो कोई था ही नहीं।
यह मर्जी का मसला नहीं है। न ही प्रधानमंत्री की अपील या सख्त नियम-कायदों का होना जरूरी है। यह मसला आपकी जिंदगी, आने वाली पीढ़ियों की जिंदगी से जुड़ा। इसलिए, खुद से ही संभलिए। देर हुई तो न हम बचेंगे न पर्यावरण।
हिन्दू का व्यवसाय धंधा तो मजहब विशीष का कारोबार इबादत कैसे? क्यों असहिष्णुता गणेश चतुर्थी पर ही आती है, मुहर्रम पर नहीं? क्यों कम्पनियॉं मानती हैं कि जूते खाकर भी आप उनका ही प्रोडक्ट खरीदेंगे। जवाब है, हिन्दू आज अपनी ही संस्कृति, दर्शन और इतिहास का मज़ाक बनाने वालों के पोषक बने हुए हैं।