देश के ख़िलाफ़ बयानबाजी करने वालों को अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में छिपाया जाता रहा है। उनके प्रति संवेदना दिखाई जाती रही है। एक तय क्रम के साथ उनके विवादों में आने के बाद उन्हें हीरो बनाने की कोशिश हुई। उससे पहले से मालूम चल चुका है कि शर्जील इमाम के मामले में अब आगे क्या होगा?
"यह पागलपन और हास्यास्पद है। मैंने आज तक कभी ऐसा कुछ नहीं सुना; कम से कम भारत में तो बिल्कुल नहीं। मुझे नहीं पता कि यह किस तरह की मानसिकता है। अगली बार जब आप यहाँ आएँगे तो हो सकता है कि आपको बैकग्राउंड में चर्च की प्रेयर या भगवत गीता सुनाई दे।"
इन पोस्टर पर साफ तौर से ‘Support Sharjeel Imam’ लिखा हुआ देखा जा सकता है। शरजील इमाम शाहीन बाग में हो रहे विरोध प्रदर्शन का मास्टरमाइंड है और उसने अलीगढ़ में एक सभा के दौरान भारत को तोड़ने वाला देशद्रोही बयान दिया था।
यह देखना हास्यास्पद है कि जब इस CAA-NRC विरोध प्रदर्शन को शुरू करने वाला शाहीन बाग ही शरजील इमाम से पीछा छुड़ाना चाह रहा है, तब यहाँ जेएनयू में अपनी पहचान तलाश रहा BAPSA शरजील के मुस्लिम होने और सताए जाने की बात करते हुए इसमें ब्राह्मणवाद निकाल लाया है।
इस वीडियो में आफरीन फातिमा देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था सुप्रीम कोर्ट और सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करते हुए देखी जा रही है। वीडियो में आफरीन फातिमा सुप्रीम कोर्ट द्वारा राम मंदिर और अफजल गुरु की फाँसी के फैसलों पर संदेह जताते हुए...
वास्तविकता आज बुरका पहनकर शाहीन बाग़ में अल्लाह हू अकबर के नारे लगाते हुए पत्रकारों की सामूहिक लिंचिंग कर रही है। सेकुलर शाहीन बाग़ आज ला इलाहा इल्लल्लाह और अल्हम्दुलिल्लाह का स्वर बोल रहा है, और क्योंकि यह स्वर क्रांतिजीवों, JNU-मतावलम्बियों के श्रीमुख से निकला है, इसलिए प्रोग्रेसिव लिबरल भी उनकी हाँ में हाँ मिलाता नजर आ रहा है।
अपनी प्रोफाइल में SFI से ताल्लुक बताने वाला हिमांशु सिंह और अभिराम, अगर कश्मीरी हिन्दुओं के साथ खड़े हैं तो वो फ्री कश्मीर के पोस्ट को ‘दिल’ क्यों दे रहे हैं? अगर वो दीपिका की श्रद्धांजलि सभा में शांति बना कर कुछ मिनट सुन लेते तो क्या वो खड़ा रहना नहीं कहलाता? दरअसल वामपंथी गुंडों का सारा अजेंडा बाहर आ चुका है और...
शाहीन बाग़ में चल रहे CAA-विरोधी प्रदर्शन में आज न्यूज़ नेशन के वरिष्ठ पत्रकार दीपक चौरसिया के साथ वहाँ प्रदर्शन कर रहे गुंडों ने बदसलूकी की। यही नहीं, उनके साथ हाथापाई करने के बाद उनका कैमरा भी तोड़ दिया गया।
जब से क्रांति कुमार उर्फ़ केके दिल्ली के मशहूर 'विष-विद्यालय' से अपनी सदियों से चली आ रही पीएचडी पूरी कर गाँव लौटा था, तब से वो बुझा-बुझा सा रहने लगा था। गाँव में न गंगा ढाबा का सस्ता किन्तु लजीज खाना था, ना ही सस्ते हॉस्टल और ना ही ढपली बजाने के लिए किसी तरह की कोई सब्सिडी।