कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल और मल्लिकार्जुन खड़गे एक कार में बैठकर एनसीपी चीफ शरद पवार के घर जाते हैं मीटिंग के लिए। यह कार किसी कॉन्ग्रेसी की नहीं बल्कि एक BJP नेता की होती है। अब सवाल लाजिमी है कि कॉन्ग्रेस नेताओं एक भाजपा नेता ने अपनी कार क्यों दी?
शपथ ग्रहण का समय गठबंधन के अनुकूल नहीं। इस समय वृष आरोही है। शनि, शुक्र और चंद्रमा भी आठवें घर में, जो अंत समय को दर्शाता है। मंगल और बुध भी छठे स्थान पर, जो दुश्मनों का घर है। इसलिए ये गठबंधन उसी समय बिखर जाएगा, जब ये सभी ग्रह राहु-केतु के मध्य आएँगें।
राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी के पीएम बनने की बात चलती थी तो बालासाहब पूछते थे कि प्रधानमंत्री का पद भिंडी बाजार में रखी कोई कुर्सी है क्या? बाल ठाकरे के ख़ून पसीनों से सींची हुई पार्टी ने उसके नाम पर शपथ ली, जिसके सामने झुकने वालों को वो हिजड़ा मानते थे।
अमित शाह ने कहा कि जनादेश देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाने के लिए था, जिसका शिवसेना ने अपमान किया है। उन्होंने कहा कि अंत में स्थिर सरकार को ही जनता वापस लेकर आती है और महाराष्ट्र में भी ऐसा ही होगा।
जब अजित भाजपा के साथ चले गए थे तो सुप्रिया ने अपने व्हाट्सएप स्टेटस में लिखा था कि पवार परिवार और पार्टी बॅंट गई है। उन्होंने लिखा था, “आप जीवन में किस पर भरोसा करोगे। इतना ठगा हुआ कभी महसूस नहीं हुआ। उनका बचाव किया, उन्हें प्यार दिया। देखो बदले में क्या मिला मुझे।”
फडणवीस के इस्तीफे को लेकर सोशल मीडिया में लोगों ने निराशा जताई। उनकी पत्नी अमृता फडणवीस ने इन पंक्तियों के माध्यम से अपने दिल की बात रखी है, "पलट के आऊँगी शाखों पे खुशबुएँ लेकर, खिज़ाँ की ज़द में हूँ मौसम ज़रा बदलने दे!"
बाल ठाकरे के निधन के बाद नितिन गडकरी ने कहा था, 'हिंदुत्व का विचार उनका हुँकार था'। मौत के 7 साल बाद उद्धव ठाकरे ने उस हुँकार को चीत्कार में बदल दिया है। बदले में मिली सीएम की कुर्सी, जिसकी बाल ठाकरे कभी रिमोट अपने पास रखते थे।
"मैंने 21 साल तक बिना पद, प्रतिष्ठा या टिकट की माँग के रात-दिन पार्टी के लिए काम किया। लेकिन जब शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने एनसीपी और कॉन्ग्रेस से हाथ मिला लिया है तो... ज़मीर इजाजत नहीं दे रहा है। आधे-अधूरे मन से कोई काम नहीं करना चाहता, इसलिए इस्तीफ़ा दे रहा हूँ।"
अजित पवार को उम्मीद थी कि भाजपा संग उनके गठबंधन को समर्थन देने के लिए कम से कम 30 विधायक ज़रूर साथ होंगे हालाँकि अंत तक उन्हें सिर्फ 12 विधायकों का ही समर्थन मिल सका। इस सियासी घटनाक्रम में धनंजय मुंडे द्वारा यू-टर्न ले लेने से पवार के फैसले पर काफी असर पड़ा।