"सभी कॉन्ग्रेस विधायक एकजुट हैं। कोई भी विधायक पार्टी से अलग नहीं होगा। पार्टी हाईकमान के आदेश का विधायक पालन करेंगे। उन्होंने कहा, “हम बीजेपी को राज्य में सरकार बनाने नहीं देंगे राष्ट्रवादी कॉन्ग्रेस पार्टी (एनसीपी) हमारी सहयोगी है, वे हमारे साथ हैं।"
शिवसेना सांसद संजय राउत का कहना है कि वो महाराष्ट्र के राज्यपाल से मिल चुके हैं। रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया के रामदास अठावले भी राज्यपाल से मिल चुके हैं। अगर अब बीजेपी नेता राज्यपाल से मिलकर सरकार बनाने का दावा करने जा रहे हैं, तो उन्हें सरकार बनानी चाहिए।
इससे पहले शरद पवार के बयान से शिवसेना को झटका लगा था। पवार ने साफ़ कर दिया था कि भाजपा और शिवसेना को ही जनादेश मिला है और उन्हें ही सरकार बनाना है। साथ ही एनसीपी सुप्रीमो ने विपक्ष में बैठने की घोषणा कर दी।
इस बैठक में शिवसेना के 6 मंत्री शामिल हुए। साउथ मुंबई में स्थित सह्याद्रि गेस्ट हाउस में ये बैठक हुई, जिसमें एकनाथ शिंदे और रामदास कदम भी शामिल हुए। दोनों शिवसेना नेता महाराष्ट्र सरकार में मंत्री हैं।
पवार ने सरकार बनाने के लिए शिवसेना के साथ कॉन्ग्रेस-एनसीपी की अटकलों पर विराम लगा दिया है। उन्होंने कहा है कि राष्ट्रपति शासन से बचने का एकमात्र विकल्प यह है कि भाजपा-शिवसेना मिलकर सरकार बनाएँ।
"शिवसेना के फ़ैसला लेते ही सब कुछ तय हो जाएगा क्योंकि ठाकरे को समर्थन देने को लेकर कॉन्ग्रेस में कोई अंदरूनी विवाद नहीं है। शिवसेना जब से भाजपा के साथ गई, तभी से उसने धर्म की राजनीति शुरू की है। भाजपा का साथ छोड़ते ही उसकी विचाधारा बदल जाएगी।"
इमरजेंसी के दौरान इंदिरा का समर्थन। चुनाव में कॉन्ग्रेस का समर्थन। मुस्लिम लीग का समर्थन। फिर कॉन्ग्रेस के विरोध के लिए पवार के साथ मंच साझा करना। 2 राष्ट्रपति चुनावों में कॉन्ग्रेस उम्मीदवार का समर्थन। बालासाहब ठाकरे के रहते ही शिवसेना 'सौदेबाजी' में पारंगत हो गई थी।
BJP के दो महासचिव शिवसेना से आखिरी दौर की बातचीत कर चुके। कोई परिणाम नहीं निकला। भाजपा सीएम पद को लेकर किसी भी प्रकार का समझौता करने को तैयार नहीं है। इसी बीच पर्यटन मंत्री जयकुमार रावल ने राज्य में दोबारा चुनाव...
अख़बार ने 1955-99 का भी दौर याद दिलाया, जब शिवसेना महाराष्ट्र के राजग गठबंधन में 'बड़ा भाई' की भूमिका में थी और बालासाहब ठाकरे ने मातोश्री से रिमोट कण्ट्रोल सरकार चलाई थी। अगर उस समय भाजपा सीएम पद माँगती तो क्या शिवसेना दे देती?