दिल्ली जब जल रही थी, तब मीडिया का एक वर्ग क्या कर रहा था? कोई दिल्ली पुलिस को गाली दे रहा था तो कोई कपिल मिश्रा को जिम्मेदार ठहरा रहा था। जान भी गँवाए दिल्ली पुलिस और गाली भी वही सुने? जिस उपद्रव में गाँधी को फासिस्ट बताया गया, उसे गांधीवादी कैसे साबित किया जा सकता है?
जैसे ही जामिया कोऑर्डिनेशन कमिटी ने इस वीडियो को रिलीज किया, लिबरल सेक्युलर मीडिया गैंग के कथित पत्रकारों ने इसे हाथों-हाथ लेते हुए प्रोपेगेंडा फैलाना शुरू कर दिया। मीडिया गैंग के अनुसार इस वीडियो में साफ़ नजर आ रहा है कि पुलिस ने ही पहले छात्रों पर बर्बरता दिखाई, जिसके बाद कैंपस में हिंसा भड़की। लेकिन कहानी कुछ और ही है।
यह पहली बार नहीं है, या फिर इस प्रकार की रिपोर्टिंग करने वालों में बीबीसी ही अकेला नहीं है। बीबीसी की ही तर्ज पर दी लल्लनटॉप एक साल पहले इस तरह की रिपोर्ट शेयर कर चुका है। वैसे लल्लनटॉप एक बार हिटलर का लिंग भी नाप चुका है।
'दी प्रिंट' की इस खबर में बताया गया था कि वित्त मंत्री ने मुंबई के उद्योगपतियों का अपमान किया है। इसके बाद वित्त मंत्री के व्यवहार पर ज्ञान देते हुए दी प्रिंट ने लिखा है कि निर्मला सीतारमण लोगों की खिंचाई करने के लिए जानी जाती हैं, खासतौर पर जब वो किसी मुद्दे पर हाशिए पर हों।
मीडिया के लोग आतंकवादियों के एक 'आम आदमी' से आतंकवादी बनने की घटना का बेहद फ़िल्मी तरीके से महिमामंडन करते नजर आते हैं। आतंकवादियों से अलग यह अपना एक अलग किस्म का बौद्धिक जिहाद चला रहे होते हैं, जिनका पहला संघर्ष सामान्य विवेक और तर्क क्षमता से नजर आता है।
विचारधारा के आधार पर लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। इसके कारण संपादकीय टीम में एक डर का माहौल है। जो लोग भी बीजेपी के समर्थक समझे जाते हैं उनमें से ज़्यादातर ने सोशल मीडिया पर कुछ भी लिखना बंद कर दिया है। जबकि वामपंथी, कॉन्ग्रेसी और आम आदमी पार्टी समर्थक माने जाने वालों पर ऐसी कोई पाबंदी लागू नहीं है।
सत्यान्वेषी पत्रकार रवीश कालजयी मुस्कान लेकर जरा देर से अपने प्राइम टाइम में आए लेकिन इससे पहले ही उनकी घातक टुकड़ियों के सिपहसालार ध्रुव राठी से लेकर शेहला रशीद और स्वरा भास्कर ट्विटर पर गोडसे और गो** में तालमेल बैठाते नजर आए।
"हम अपनी विचारधारा से समझौता नहीं कर रहे बल्कि अपने तरीके और स्ट्रेटेजी बदल रहे हैं। सभी जाति, धर्म के लोग साथ आएँ। घर पर खूब मजहबी नारे पढ़कर आइए, उनसे आपको ताकत मिलती है। लेकिन सिर्फ मुस्लिम बनकर विरोध मत कीजिए, आप लड़ाई हार जाएँगे।"
कौन हैं वो 'मसीहा पत्रकार', जिनकी पूर्ववर्ती सरकारों में अच्छी-ख़ासी मौज रहती थी? मोदी के आने से उन्हें दिक्कत क्यों हुई? 'इंडिया टीवी' के न्यूज़ एंकर सुशांत सिन्हा से समझिए कि अवार्ड-वापसी और 'लिंचिंग' की कैसे रची गई पूरी साज़िश। लुटियंस गैंग की तिलमिलाहट का पोस्टमॉर्टम।