Thursday, April 25, 2024
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Oops Sorry शेखर गुप्ता! वित्त मंत्री ने बताया द प्रिंट की रिपोर्ट को फर्जी, कहा- नहीं दिए ऐसे बयान

'दी प्रिंट' ने रिपोर्ट के इस हिस्से को फ़ौरन एडिट करते हुए काट दिया और अंत में एक अस्वीकरण के साथ लिखा है- "इस खबर के सत्यापन तक इसे वापस ले लिया गया है।"

सरकार और उसके मंत्रालयों के खिलाफ आम जनता तक सबसे ज्यादा गुमराह करने का काम आज के समय में यदि कोई कर रहा है तो वह हमारे देश की कथित लिबरल मीडिया ही है। यही वजह है कि आम लोग नागरिकता संशोधन कानून से लेकर आधार कार्ड जैसे विषयों पर भी अक्सर गुमराह ही नजर आते हैं। और इसमें सबसे बड़ा योगदान होता है अपने मन से सिर्फ सत्ता के विरोध के लिए काल्पनिक, बेबुनियाद दावे करने वाले मीडिया गिरोहों का।

शेखर गुप्ता के प्रोपेगंडा वेबसाइट ‘दी प्रिंट’ ने फरवरी 14, 2020 को ही एक ऐसी खबर प्रकाशित की, जिसने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को इस पर स्पष्टीकरण देने पर मजबूर कर दिया। दरअसल, दी प्रिंट ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से सम्बन्धित एक ऐसी रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसे वित्त मंत्री ने एकदम मजाक और काल्पनिक कहते हुए कहा कि उन्होंने कभी इस तरह के कोई बयान दिए ही नहीं।

इसके बाद ट्विटर पर ही ‘दी प्रिंट’ ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को जवाब देते हुए कहा कि वो इस रिपोर्ट को एक बार फिर जाँचेंगे कि वास्तव में ऐसा कुछ हुआ भी है या नहीं। इसके बाद दी प्रिंट द्वारा इस पूरी रिपोर्ट की काया ही पलट दी गई और रिपोर्ट के ‘सत्यापित होने तक’ छुपा दिया।

दी प्रिंट की एक रिपोर्ट का शीर्षक था- “Why Nirmala Sitharaman doesn’t understand ‘Bombay people’” जिसका हिंदी अर्थ है – “निर्मला सीतारमण बॉम्बे के लोगों को क्यों नहीं समझती हैं?”

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दी प्रिंट की यह खबर ट्वीट करते हुए पुछा- “क्या यह कोई मजाक है? अगर यह मजाक न होकर गंभीर है तो फिर यह बदनाम करने के लिए और दुर्भावनापूर्ण है क्योंकि इस रिपोर्ट में जो कुछ मेरे हवाले से लिखा गया है वो शब्द मेरे नहीं हैं।”

‘दी प्रिंट’ की इस खबर में बताया गया था कि वित्त मंत्री ने मुंबई के उद्योगपतियों का अपमान किया है। इसके बाद वित्त मंत्री के व्यवहार पर ज्ञान देते हुए दी प्रिंट ने लिखा है कि निर्मला सीतारमण लोगों की खिंचाई करने के लिए जानी जाती हैं, खासतौर पर जब वो किसी मुद्दे पर हाशिए पर हों।

रिपोर्ट में कहा गया है कि बजट के बाद मुंबई में शीर्ष व्यवसायियों के साथ एक मीटिंग के दौरान उनसे डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स सम्बन्धी सवाल पूछे गए। रिपोर्ट में बताया गया था कि इसके बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वहीं मौजूद इन्वेस्टमेंट बैंकिंग के एक नामी व्यक्ति को अपमानित करते हुए कहा- “मैंने तुम लोगों के लिए सब कुछ किया, इससे ज्यादा तुम लोग क्या चाहते हो?”

‘दी प्रिंट’ ने लिखा है कि वित्त मंत्री यहीं पर नहीं रुकीं और उन्होंने सभा में मौजूद लोगों से कहा- “मैं बॉम्बे के लोगों को नहीं समझ पाती हूँ। हमने सब कुछ कर रखा है लेकिन यह तीसरे क्वार्टर की विकास दर अभी भी 4.3% पर ही अटकी हुई है। तुम लोग कर क्या रहे हो?”

मीडिया गिरोह की ‘बेस्ट कोटेशंस’ के प्रति लगाव, चाहे वो फैज़ हो या फिर कोई विदेशी द्वारा कही गई हो, कोई नई बात नहीं है। वित्त मंत्री द्वारा कहे गए इस (दी प्रिंट के अनुसार) घटना पर दी प्रिंट ने यूएस के एक पूर्व राष्ट्रपति जॉन कैनेडी की एक उक्ति को भी लिखा है- ““Ask not what your country can do for you…” यानी, यह मत पूछिए कि आपका देश क्या कर सकता है?

‘दी प्रिंट’ की इस खबर का स्क्रीनशॉट आप यहाँ पढ़ सकते हैं, यह अब उनकी वेबसाइट पर मौजूद नहीं है –

लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की आपत्ति के बाद ‘दी प्रिंट’ ने रिपोर्ट के इस हिस्से को फ़ौरन एडिट करते हुए काट दिया और अंत में एक अस्वीकरण के साथ लिखा है- “इस खबर के सत्यापन तक इसे वापस ले लिया गया है।”

जब मीडिया ही सूचना की जगह अफवाह का स्रोत बन जाए

हम एक ऐसे समय में रह रहे हैं, जब हमारे ‘मीडिया प्रमुख’ खबर छापने के बाद उसके सत्यापन के लिए दौड़ते हैं। ऐसा करने वालों में ‘दी प्रिंट’ अकेला महारथी नहीं है, बल्कि इसके जैसे ही और कई बार कहीं बड़े मीडिया प्रमुखों की घातक टुकड़ियाँ यही काम सदियों से करती आ रही है।

जब मीडिया ही, जो कि लोकत्नत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है, सूचनाओं के बजाए अफवाहों का प्रमुख स्रोत बन जाए तो फिर क्या किया जा सकता है? वामपंथी मीडिया का यह पुराना शगल है। रवीश कुमार जैसे पत्रकार यह कहते हुए भी सुने गए हैं कि मीडिया द्वारा लगाए गए आरोपों पर मानहानि नहीं की जानी चाहिए। रवीश कुमार, मीडिया के प्रोपेगेंडा प्रमुख, इस बात के समर्थन में कहते हैं कि मानहानी मीडिया की स्वतन्त्रता में बाधक है।

वास्तव में मनगढ़ंत आरोपों के खिलाफ मानहानि मीडिया की स्वतन्त्रता नहीं बल्कि कुछ चुनिंदा पत्रकारों की चुगलखोरी की स्वतन्त्रता में बाधक है। लेकिन गद्य और पद्य शैली में प्रोपेगेंडा को पत्रकारिता नाम देने वाले कभी भी अपनी स्पष्ट जुबान से यह स्वीकार नहीं करना चाहेंगे कि उन्हें पत्रकारिता नहीं बल्कि राजनीतिक द्वेष के लिए चुगलखोरी की आजादी चाहिए।

हर दूसरे दिन मीडिया ऐसी सैकड़ों खबरें प्रकाशित कर रहा होता है, जिनकी प्रमाणिकता हमेशा संदेहास्पद ही होती है और इसके कई सबूत भी मौजूद हैं। लेकिन भारतीय मीडिया यदि ऐसे हवा में तीर छोड़ना बंद कर दे तो फिर वह सनसनी कैसे कर सकेगा?

फिलहाल, ‘दी प्रिंट’ ने अपने आर्टिकल को छुपा दिया है। लगता नहीं है कि सत्यापन जैसी कोई चीज बाहर आ सकेगी। यह जरूर हो सकता है कि स्पष्टीकरण के बदले सरकार और मंत्रालय पर नया कोई मनगढ़ंत आरोप लगाते हुए ‘दी प्रिंट’ की कोई नई रिपोर्ट प्रकाशित हो जाए।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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