कहा गया है – ‘अति सर्वत्र वर्जयेत्’, अर्थात कुछ भी जब बहुत ज़्यादा हो जाता है तो हानिकारक ही होता है। उदाहरण के लिए, बारिश फसलों के लिए लाभदायक है लेकिन अतिवृष्टि नहीं। इसी तरह, आजकल कुछ लोग कुछ ज़्यादा ही ‘जागरूक’ हो गए हैं। इतने ‘जागरूक’ कि किसी फिल्म में अश्वेत व्यक्ति को अच्छा दिखा दिया गया तो अवॉर्ड देने के मामले में अच्छी कहानी, निर्देशन और अभिनय वाली फिल्मों के ऊपर उसे तरजीह दे दी जाती है। इतने ‘जागरूक’, कि विमान में घूमने और फाइव स्टार होटल में रुकने वाले पर्यावरण पर ज्ञान बाँचते हैं और पूरी जनसंख्या को गाली देते हैं।
ऐसे ही लोगों के कारण आज ‘Woke’ शब्द गाली बन गया है। इसका ताज़ा इस्तेमाल दुनिया के सबसे अमीर शख्स एलन मस्क ने किया है। पहले इसकी पृष्ठभूमि समझते हैं। असल में रविवार (10 मार्च, 2024) को 96वें एकेडमी अवॉर्ड्स का आयोजन हुआ, जिसमें परमाणु बम के जनक रॉबर्ट ओपेनहाइमर के जीवन पर आधारित फिल्म ‘Oppenheimer’ को 7 पुरस्कारों से नवाजा गया। इसे कुल 13 नॉमिनेशन प्राप्त हुए थे। क्रिस्टोफर नोलन की ये फिल्म खासी विवादित रही थी।
एलन मस्क ने ऑस्कर अवॉर्ड्स की आलोचना की है। उन्होंने अपने मालिकाना हक़ वाले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “आजकल ऑस्कर जितने का मतलब है कि आपने वोक प्रतियोगिता जीत ली।” उनके कहने का अर्थ था कि जिस फिल्म में Wokism का जितना ज्यादा छौंक होगा, बाकी चीजों को नज़रअंदाज़ कर उसे अवॉर्ड मिलने की संभावना उतनी बढ़ जाएगी। वास्तविक मुद्दों से हट कर बनावटी मुद्दों को बढ़ा-चढ़ा कर प्रदर्शित करना ही तो Woke होने की निशानी है।
एलन मस्क ने कहा कि जब किसी पुरस्कार को कमजोर कर दिया जाता है तो हर कोई, यहाँ तक कि इसे जीतने वाले भी जानते हैं कि अब ये सम्मान का पात्र नहीं रह गया है। ऑस्कर हॉलीवुड ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के फ़िल्मी समाज के लिए सबसे प्रतिष्ठित अवॉर्ड माना जाता रहा है लेकिन हाल के कुछ वर्षों में इसकी गरिमा धूमिल हुई है। ‘Moonlight’ जैसी बोरिंग फिल्मों को अवॉर्ड मिलने के बाद इस पर तेज़ बहस शुरू हुई। सेक्सुअल ओरिएंटेशन, अश्वेत और क्लाइमेट चेंज जैसे मुद्दों का हौव्वा बना दिया गया।
विवादों में रही थी फिल्म ‘Oppenheimer’
फिल्म ‘Oppenheimer’ काफी विवादों में रही थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय ‘मैनहटन प्रोजेक्ट’ के तहत विकसित किए गए ‘लॉस एलामोस लेबोरेटरी’ के डायरेक्टर अमेरिकी फिजिसिस्ट रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने जो परमाणु बम बनाया था, उसका ही इस्तेमाल कर के अमेरिका ने जापान में तबाही मचाई थी। जब दुनिया का पहला परमाणु ब्लास्ट सफल रहा था तब रॉबर्ट ओपेनहाइमर के मन में हिन्दू धर्मग्रंथ भगवद्गीता के शब्द गूँजे थे – “अब मैं मृत्यु बन गया हूँ, संसारों का विध्वंस करने वाला।”
फिल्म में इस अंश को जिस तरह से प्रदर्शित किया गया, उस पर लोगों ने आपत्ति जताई। फिल्म में एक सेक्स वाले दृश्य में दिखाया गया है कि अभिनेता लड़की को भगवद्गीता पढ़ने के लिए देता है। युवती पूछती है कि ये क्या है? इस पर वो बताता है कि ये संस्कृत में है। इसके बाद वो इसे पढ़ने के लिए कहता है। इसके बाद वो ग्रन्थ का वो हिस्सा पढ़ती है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण अपने विष्णु के रूप में अर्जुन को अपना विकराल स्वरूप दिखाते हैं। इसके बाद अभिनेता युवती को आगे पढ़ने के लिए कहता है।
इस दृश्य में अभिनेता और अभिनेत्री, दोनों ही बिस्तर पर नंगे हैं। युवती को पूरी तरह न्यूड दिखाया गया है और उसके स्तन पर्दे पर दिख रहे होते हैं। आगे वो भगवद्गीता का वो श्लोक पढ़ती है, जिसे रॉबर्ट ओपेनहाइमर दोहराया करते थे। इतिहास में ऐसा कहीं नहीं लिखा कि सेक्स करते समय वो गीता पढ़ते थे। एक सेक्स सीन घुसा कर उसमें भगवद्गीता को दिखाना कहाँ तक उचित था? क्या इन्हीं चीजों के लिए ‘Oppenheimer’ को सम्मानित किया गया है?
भरे समारोह में मंच पर नंगे जॉन सीना: ऑस्कर में Wokism
2024 के ऑस्कर समारोह में एक और नज़ारा देखने को मिला। WWE के रेसलर जॉन सीना बेस्ट कॉस्ट्यूम का अवॉर्ड देने के लिए मंच पर पहुँचे। इस दौरान वो पूरी तरह नग्न थे। उन्होंने एक कार्डबोर्ड से अपने प्राइवेट पार्ट को ढँक रखा था। इस दौरान हँसी-मजाक भी चलता रहा। क्या कपड़े उतार देना ही जागरूक होने की निशानी है? खुले मंच पर नंगा हो जाना ही अगर जागरूकता है तो फिर कपड़ों की ज़रूरत ही नहीं है। अजीबोगरीब हरकतों को सामान्य साबित करने की प्रक्रिया ही तो Wokism है।
A naked John Cena and Jimmy Kimmel bicker on stage at the 2024 #Oscars pic.twitter.com/1JYd5qth6F
— The Hollywood Reporter (@THR) March 11, 2024
यही कारण है कि एलन मस्क ने इस पुरस्कार समारोह पर निशाना साधा है। लोग अब उन्हें सलाह दे रहे हैं कि वो एकेडमी अवॉर्ड्स को भी ट्विटर की तरह खरीद लें और उसमें सुधार करें। हिन्दू धर्मग्रंथ का अपमान करने वाली फिल्म को जिस तरह से अवॉर्ड दिया गया है, उसके बाद ये सवाल उठना लाजिमी है कि क्या इस्लाम या ईसाइयत का अपमान करने वालों को सम्मानित करने की इनकी हिम्मत होती? अगर यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में ऑस्कर का और भी बुरा हाल होगा।
भारत में बॉलीवुड भी इन्हीं चीजों से प्रेरणा लेता है। अमेरिकी फिल्मों में जिन चीजों को बढ़ावा दिया जाता है, बॉलीवुड उसकी नक़ल करता है। फिल्मों में पार्टी-पब कल्चर को दिखाना हो, पारिवारिक मूल्यों के खिलाफ युवाओं को भड़काना हो, दारू-शराब-सिगरेट की लत को बढ़ावा देना हो, सेक्स-हिंसा के दृश्यों का महिमामंडन करना हो या फिर व्यभिचार को सामान्य बताना हो – बॉलीवुड हर मामले में इसी नक्शेकदम पर चलता दिखता है। यहाँ के अवॉर्ड समारोहों में भी वही फूहड़ता आ रही है।