दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि लेखक सलमान रुश्दी की विवादास्पद पुस्तक ‘द सैटेनिक वर्सेज’ के आयात पर प्रतिबंध लगाने वाली सीमा शुल्क की अधिसूचना अस्तित्वहीन हो गई है। इसके साथ ही इसके आयात पर 36 सालों से लगा प्रतिबंध खत्म हो गया। केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड ने कोर्ट को बताया कि प्रतिबंध वाली 1988 की इस अधिसूचना का अब कोई पता नहीं है।
न्यायमूर्ति रेखा पल्ली और न्यायमूर्ति सौरभ बनर्जी की पीठ ने 5 नवंबर को इस प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका में इसकी वैधता पर विचार करने से इनकार कर दिया। इसके बाद कोर्ट ने कहा, “अब हमारे पास यह मानने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है कि ऐसी कोई अधिसूचना मौजूद नहीं है। इसलिए हम इसकी वैधता की जाँच नहीं कर सकते।”
इस अधिसूचना को साल 2019 में संदीपन खान नाम के व्यक्ति ने कोर्ट में चुनौती दी थी। उन्होंने न्यायालय को बताया कि वे पुस्तक पर प्रतिबंध होने के कारण इसे आयात नहीं कर पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि अधिसूचना न तो किसी आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध है और न ही किसी प्राधिकरण के पास उपलब्ध है। संदीपन खान ने RTI के तहत केंद्रीय गृह मंत्रालय से इस संबंध में जवाब भी माँगा था।
गृह मंत्रालय ने जवाब में कहा था कि ‘द सैटेनिक वर्सेज’ (हिंदी में इसका अर्थ है- शैतानी आयतें) पर प्रतिबंध लगा है। इस मामले से केंद्र सरकार ने हाथ खींच लिए थे। गृह मंत्रालय ने आदेश के मुताबिक, सीमा शुल्क विभाग से भी याचिका का बचाव करने को कहा गया था। वहीं, केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क के अधिकारी प्रतिबंध से संबंधित अधिसूचना कोर्ट में पेश नहीं कर पाए।
इसके बाद कोर्ट ने इसे अस्तित्वहीन मान लिया और खान को यह पुस्तक आयात करने की अनुमति दे दी। पीठ ने कहा, “याचिकाकर्ता उक्त पुस्तक के संबंध में कानून के अनुसार सभी कार्रवाई करने का हकदार होगा।” दिल्ली हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद सैटेनिक वर्सेज के आयात पर 36 साल से लगा प्रतिबंध खत्म हो गया है। अब इसे कोई भी आयात कर सकता है।
बता दें कि साल 1988 में राजीव गाँधी के नेतृत्व वाली कॉन्ग्रेस सरकार ने मुस्लिम समुदाय की शिकायत पर इस पुस्तक के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था। मुस्लिमों का कहना था कि यह पुस्तक इस्लामी आस्था के खिलाफ है और यह किताब ईशनिंदा करती है। इस किताब पर सबसे पहले भारत ने ही प्रतिबंध लगाया था। माना जाता है कि कॉन्ग्रेस ने तुष्टिकरण की राजनीति के तहत ऐसा निर्णय लिया था।
इस किताब को बैन करने का आह्वान तत्कालीन कॉन्ग्रेस सांसद सैयद शहाबुद्दीन और खुर्शीद आलम खान (कॉन्ग्रेस नेता सलमान खुर्शीद के अब्बा) ने किया था। शहाबुद्दीन ने किताब के खिलाफ याचिका दायर कर इस पुस्तक को सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा बताया था। इसके बाद राजीव गाँधी की सरकार ने 26 सितंबर 1988 को ब्रिटेन में पहली बार पब्लिश इस किताब पर 10 दिनों के भीतर बैन लगा दिया।
दिलचस्प बात ये है कि भारत ने कभी भी पुस्तक पर एकमुश्त प्रतिबंध नहीं लगाया। इसकी बजाए ‘सीमा शुल्क अधिनियम’ के तहत पुस्तक के आयात पर बैन लगाते हुए वित्त मंत्रालय के माध्यम से किताब को प्रतिबंधित कर दिया गया। इतना ही नहीं, कॉन्ग्रेस सरकार ने रुश्दी के भारत आने पर भी रोक लगा दी। हालाँकि, साल 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने इसे हटा दिया।
ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खुमैनी ने सलमान रुश्दी की पुस्तक ‘द सेटेनिक वर्सेज’ को लेकर उनके खिलाफ 14 फरवरी 1989 को फतवा जारी किया था। उन पर 6 मिलियन डॉलर (लगभग 48 करोड़ रुपए) का इनाम घोषित किया था। फतवे के साढ़े 33 साल बाद 13 अगस्त 2022 को न्यूयॉर्क में हादी मतार नाम के संदिग्ध ने रुश्दी को कई बार चाकू मार कर उन्हें गंभीर रूप से घायल कर दिया था।