वामपंथी प्रोपेगेंडा मैगजीन ‘द कारवाँ’ ही नहीं, बल्कि उसमें काम कर रहे लोग भी हिंदुओं के खिलाफ घृणा और हिंदुओं के दमन की खबरों को दबाने में लगे हैं। हाल ही में ‘द कारवाँ’ के कॉन्ट्रिब्यूटिंग एडिटर सलिल त्रिपाठी ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमलों को लेकर बात करने वालों को चुप कराने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि इस मामले पर सिर्फ बांग्लादेशियों को ध्यान देना चाहिए और बाकी लोगों को इससे कोई मतलब नहीं रखना चाहिए।
ट्रंप प्रशासन और बांग्लादेश की स्थिति पर चर्चा में कूदे
हाल ही में जब जियोपॉलिटिकल एनालिस्ट जेफ एम. स्मिथ ने सुझाव दिया कि ट्रंप प्रशासन को बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति पर भारत की चिंताओं को समझना चाहिए, तो सलिल ने रविवार (1 दिसंबर 2024) को एक्स पर कहा, “बांग्लादेश में जो कुछ हो रहा है, वो बांग्लादेशियों का मामला है। दूसरों को इसमें दखल नहीं देना चाहिए, जब तक उनका कोई एजेंडा न हो।”
What's happening in Bangladesh is a matter for Bangladeshis, and nobody elsewhere should bother, unless they have an agenda. https://t.co/SyGNgN4kYm
— saliltripathi (জয় বাংলা!) (@saliltripathi) December 1, 2024
सलिल ने सोशल मीडिया पर बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमलों को लेकर आवाज उठाने वालों के इरादों पर सवाल खड़े किए। इससे ऐसा लगा कि वो लोगों को इस मुद्दे पर बोलने से हतोत्साहित करना चाहते थे।
यह कोई नई बात नहीं है। वामपंथी और उदारवादी तबके अक्सर इस तरह के तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। उनकी कोशिश होती है कि जो लोग उनके नैरेटिव के खिलाफ बोलें, उन्हें चुप कराया जाए। सलिल त्रिपाठी ने भी इसी रणनीति के तहत, बांग्लादेश में कट्टरपंथी मुस्लिमों द्वारा हिंसा के मुद्दे से चर्चा को भटकाने का प्रयास किया।
इसी तरह से सलिल ने इसी साल 6 अगस्त को ट्वीट किया था कि “युवा मुसलमान बांग्लादेश में हिंदू मंदिरों की रक्षा कर रहे हैं।” यह ट्वीट उस समय आया जब शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से हटाया गया था।
Young Muslims protecting Hindu temples in Bangladesh: pic.twitter.com/5akcwjZLOP
— saliltripathi (জয় বাংলা!) (@saliltripathi) August 5, 2024
सलिल के ट्वीट का मकसद यह दिखाना था कि मुस्लिम हिंदू मंदिरों की रक्षा कर रहे हैं, जबकि सच्चाई यह थी कि हिंदुओं और उनके मंदिरों पर हमले हो रहे थे। इस तरह उन्होंने मुद्दे से ध्यान हटाने की कोशिश की। ऐसे में साफ है कि उनके ध्यान भटकाने वाले ट्वीट का उद्देश्य मुस्लिम भीड़ द्वारा हिंदुओं और उनके मंदिरों पर किए गए अत्याचारों से ध्यान हटाकर हिंदू पूजा स्थलों की ‘रक्षा’ करने के फोटो-ऑप्स की ओर ध्यान केंद्रित करना था।
Salil Tripathi:
— Dibakar Dutta (দিবাকর দত্ত) (@dibakardutta_) December 2, 2024
➡️Don't bother about Bangladesh unless you have an agenda. Please leave it to Bangladeshis.
Also Salil Tripathi:
➡️See Muslims are protecting Hindu temples (from other Muslims) in Bangladesh.
Mental gymnastics of the contributing editor of 'The Caravan'. pic.twitter.com/vn01AAJvjV
बांग्लादेश में हिंदुओं पर लगातार हो रहे हमले
बता दें कि बांग्लादेश में इस साल 5 अगस्त को आवामी लीग प्रमुख शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार के पतन के बाद से ही कट्टरपंथियों द्वारा हिंदू अल्पसंख्यकों और उनके धार्मिक व्यापारिक प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया जा रहा है। बांग्लादेश में इस समय मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार शासन देख रही है। उस पर चरमपंथियों को पराश्रय देने का आरोप है। शेख हसीना सरकार के पतन के कुछ दिनों के भीतर हिंदू मंदिरों, दुकानों और व्यवसायों पर कम से कम 205 हमले हुए हैं।
इसी कड़ी में बांग्लादेश में इस्कॉन के संत को गिरफ्तार कर लिया गया है। उनके खिलाफ देशद्रोह का मामला चलाया जा रहा है। यहाँ तक कि हिंदू संतों को देश से बाहर भी नहीं जाने दिया जा रहा है, तो हिंदुओं की पहचान कर उन्हें निशाना बनाए जाने की भी जानकारी सामने आई।
चटगाँव में एक हिंदू युवक को ईशनिंदा के आरोप में उसकी मॉब लिंचिंग के लिए इस्लामी कट्टरपंथियों की भीड़ ने पूरे थाने को ही घेरा लिया और आर्मी की गाड़ियों तक में आग लगा दी थी।
ओपइंडिया ने पहले बताया था कि कैसे खुलना के सोनाडांगा इलाके में एक मुस्लिम भीड़ ने हिंदू लड़के उत्सव मंडल को ‘ईशनिंदा’ के आरोप में लगभग मार डाला था।
यह भी खुलासा हुआ था कि मुस्लिम छात्रों ने 60 से अधिक हिंदू शिक्षकों, प्रोफेसरों और सरकारी अधिकारियों को अपने पदों से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया है।
हाल ही में, मानवाधिकार कार्यकर्ता और निर्वासित बांग्लादेशी ब्लॉगर असद नूर ने बताया कि अल्पसंख्यक समुदाय को ‘जमात-ए-इस्लामी’ में शामिल होने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
6 सितंबर को चटगाँव के कादम मुबारक इलाके में गणेश उत्सव के दौरान हिंदू भक्तों की एक शोभायात्रा पर भी हमला हुआ था।