Monday, May 6, 2024
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9 भारतीय, 1 नाव, 10 दिन में 3000 किमी का समुद्री सफर : घर लौटे यमन में बंधक बने भारतीय मछुआरे

मछुआरों ने बताया कि नौकरी के बहाने उन्हें ले जाया गया था। वहॉं उन्हें एक नाव में कैद कर रखा गया था। काम के बदले उन्हें केवल खाना मिलता था। इतना ही नहीं उनकी पिटाई भी की जाती थी।

यमन में बंधक बने नौ भारतीय मछुआरे आखिरकार सुरक्षित देश लौटने में कामयाब रहे। कोच्चि तट पहुॅंचते ही उन्होंने घुटनों के बल बैठकर जमीन को चूमा। देश की सीमा में दाखिल होते वक्त उनकी नाव में 500 लीटर ईंधन और आधी बोरी प्याज़ बचा था। इनमें से दो मछुआरे केरल से और सात तमिलनाडु से हैं।

ये मछुआरे बीते साल भर से यमन में बंधक बने थे। इनसे ज़रूरत से ज़्यादा काम कराया जाता था और मारा-पीटा जाता था। इन मछुआरों ने किसी तरह अपने मालिक की नाव चुरा ली और 10 दिनों में 3000 किलोमीटर लंबा समुद्री सफर तय कर भारत पहुँचने में कामयाब रहे। कोच्चि तट से लगभग 75 नॉटिकल मील (138.9 किमी) की दूरी पर भारतीय कोस्ट गार्ड के जवान अल थिराया बोट में सवार हुए थे। यह बोट शुक्रवार दोपहर 1:15 बजे कोच्चि तट पर पहुॅंची। इस बोट के बारे में कोस्ट गार्ड के डॉर्नियर एयरक्राफ्ट को जानकारी मिली थी।

ख़बर के अनुसार, 13 दिसंबर, 2018 को इन मछुआरों ने तिरुवनंतपुरम का तट छोड़ा था। उन्हें एक यमन एंप्लॉयर ने नौकरी का झाँसा देकर क़ैद कर लिया। 10 महीने तक क़ैद में वो उन्हें नाव में ही रखता था और काम करवाता था। इसके बदले में उन्हें खाने के अलावा कुछ नहीं मिलता था।

मछुआरों में से एक, तिरुनेलवेली ज़िले के सहाय रविकुमार ने अधिकारियों को बताया,  “हमें गल्फ में ले जाया गया और एक स्पॉन्सर द्वारा हमें ओमान में नौकरी देने का वादा किया गया, जिसे हम मछली पकड़ने की नौकरियों दिलाने वाले शख़्स के तौर पर पहले से जानते थे। लेकिन हमें यमन में ही रखा गया। हम में से पाँच 13 दिसंबर, 2018 को तिरुवनंतपुरम से रवाना हुए और हमें शारजाह ले जाया गया। ओमान जाने के बहाने यमन ले जाने से पहले हम एक महीने तक अजमान में एक नाव पर रुके रहे। अन्य लोग सलाला पहुँचने के बाद सड़क के माध्यम से यमन आए।”

पुलिस ने बताया कि इन मछुआरों को इमिग्रेशन की औपचारिकताएँ पूरी करने के बाद ही परिजनों को सौंपा जाएगा। एक तटीय पुलिस अधिकारी ने बताया, “उन्होंने फोन पर अपने परिवारों से बात की और रात का भोजन किया।”

सभी नौ मछुआरों ने सावधानीपूर्वक भागने की योजना बनाई थी, उन्होंने ईंधन और भोजन का स्टॉक पहले से ही कर लिया था। इनमें जो तमिलनाडु के मछुआरे हैं, उनमें जे विंस्टन (47), एस अल्बर्ट न्यूटन (35), ए एस्सलिन (29), पी अमल विवेक (33), जे शजन (24) और एस सह्या जगन (28) कन्याकुमारी ज़िले के हैं और  पी सहाय रवि कुमार तिरुनेलवेली ज़िले के हैं। केरल के दो मछुआरे नौशाद (41) और निज़ार (44) हैं, जो कोल्लम से हैं।

मछुआरों के अनुसार, उनका एकमात्र उद्देश्य अपने परिवारों के लिए कुछ धन इकट्ठा करना था, लेकिन वो जाल में फँस गए और उनका यह उद्देश्य एक दुःस्वप्न में बदल गया। उनका बचना किसी भी तरह से सुगम नहीं था, वो लोग अक्सर तड़के समुद्र और ख़राब मौसम का सामना करते थे। विवेक नाम के मछुआरे ने कहा, “सोमालिया के पास समुद्र में कोच्चि की हमारी यात्रा इतनी उबड़-खाबड़ थी कि हमने नावों के ज़रिए बहुत अधिक ईंधन का इस्तेमाल किया। जो हमें ज़मीन की ओर खींच रही थी। इसके लिए हमने ईंधन बचाने के लिए एक सीमित गति बनाए रखी।”

लक्षदीप के पास अल थरिया में सवार एक तटरक्षक अधिकारी ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया को बताया कि सभी मछुआरों के पास पासपोर्ट थे। उन्होंने योजनाबद्ध तरीक़े से वापस लौटने पर काम किया। उनके पास भारत पहुँचने के लिए लगभग 7,000 लीटर ईंधन था, लेकिन जब वो लक्षद्वीप के पास पहुँचे तो उनके पास मुश्किल से 500 लीटर ईंधन बचा था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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