पालघर में साधुओं पर नरभक्षियों की तरह प्रहार करने वाली भीड़ के ख़िलाफ़ गुस्सा रह-रहकर उमड़ता है। समझना मुश्किल हो जाता है कि आखिर समाज किस तरफ जा रहा है। एक ओर तो मौलाना साद को डिफेंड करने के लिए फेक न्यूज तक चलाने से किसी को कोई गुरेज नहीं होता, मगर दूसरी ओर साधुओं की हत्या कर दी जाती है और उनके पक्ष में बोलने से सब सेकुलरवादी परहेज करने लगते हैं।
इस दौरान जो खुद को सोशल मीडिया पर बैलेंस होकर पेश करना चाहते हैं, वो इस घटना पर कम्यूनल एंगल न ढूँढने की गुहार लगाते हैं और जो कट्टरपंथी पहले से ही अपने चेहरे से सेक्युलर मुखौटे को उतारकर फेंक चुके हैं, वो या तो इस घटना पर चुप रहते हैं या फिर इसे एक अतिवाद के ख़िलाफ़ प्रतिक्रिया मात्र बताते हैं।
अनुराग कश्यप, स्वरा भास्कर जैसे लोग बॉलीवुड के कुछ ऐसे नाम हैं जिन्हें सीएए/एनआरसी के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों में बढ़-चढ़कर भाग लेते देखा गया। इन्होंने इस बीच न बिलकुल एकतरफा होकर एक निराधार माँग को वाजिब ठहराने के लिए लड़ाई लड़ी। बल्कि समाज में ऐसे दर्शाया कि देश का बहुसंख्यक अब अल्पसंख्यकों पर हावी हो गया है। अनुराग कश्यप ने तो उस दौरान गृहमंत्री के लिए यहाँ तक कहा कि इतिहास थूकेगा इस जानवर पर।
मगर, जब महाराष्ट्र के पालघर में साधुओं पर हमला हुआ तो, वही अनुराग कश्यप के सुर पूरी घटना पर बदल गए और वे आक्रोश दिखाने वाले लोगों को समझाते नजर आए कि इस खबर में हिंदू मुस्लिम एंगल न ढूँढा जाए बल्कि उस माहौल को दोष दिया जाए जिसके कारण ये घटना घटी।
इसने भी हिंदू-मुसलमान ऐंगल ना ढूँढे । रिपोर्ट पढ़ें ।लगभग १०० लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है । उनकी निंदा तो करेंगे ही जो उस भीड़ में थे लेकिन उससे ज़्यादा निंदा उस माहौल की करूँगा जो इस देश में बनाया जा चुका है , जिसका यह सीधा नतीजा है । https://t.co/zzOs6AMD3L
— Anurag Kashyap (@anuragkashyap72) April 19, 2020
अब ये लिखने की बात नहीं है कि अनुराग कश्यप जैसे लोग इन घटनाओं के पीछे किसे जिम्मेदार मानते हैं। वे साल 2014 बाद से देश के माहौल को क्यों साम्प्रदायिक बताते हैं। मगर ये जरूर गौर करने की बात है कि जिस भीड़ ने साधुओं पर हमला किया उनमें से एक नाम शोएब भी कहा जा रहा है। जिसके अपराध को छिपाने के लिए शायद आज अनुराग कश्यप एक अलग नैरेटिव गढ़ रहे हैं और जो लोग वीडियो में शोएब के होने की बात को खुलकर बोल रहे। उनके ख़िलाफ़ एक्शन लेने की माँग कर रहे हैं।
Wait! what? pic.twitter.com/CP51SqIP3T
— Madhur (@ThePlacardGuy) April 19, 2020
यहाँ ऐसा नहीं है कि सेकुलर-सेकुलर का खेल खेलते अनुराग कश्यप ने हमेशा इस लीक को फॉलो किया हो और हमेशा हिंदू-मुस्लिम का एंगल उभारने पर लोगों को टोका हो। साल 2017 का उनका ट्वीट बताता है कि किस तरह वे हिंदुओं को अतिवादी और आतंकवादी तक कहते नजर आए थे।
उस दौरान शायद उन्हें यही लगता होगा कि उनके गैंग द्वारा समाज में फैलाया जहर अंतिम सत्य होगा और जिन लोगों को वो बचाने निकलेंगे वो हमेशा आस्तीन में रहकर डसने का काम करेंगे। न कभी इनकी सच्चाई सामने आएगी और न कभी उनके पूरे अजेंडा को कोई तोड़ पाएगा।
मगर आज जब धीरे-धीरे इन लोगों का प्रोपगेंडा दम तोड़ने लगा है और खुलेआम साधुओं को मारने की खबरें मीडिया में आने लगी है, तो ये भाषाई स्तर का खेल खेलकर नया तिलिस्म रचने की फिराक में हैं और लोगों को इंसानियत का पाठ पढ़ा रहे हैं क्योंकि इस बार मरने वालों में भगवा वेशधारी साधू हैं।
गौर रखिए कि स्वरा भास्कर जो समुदाय विशेष से संबंधित हर मुद्दे पर भावुक हो उठती हैं। उनकी आवाज में भारीपन दिखने लगता है, वे समय निकालकर प्रदर्शन में शाामिल होती हैं, वो इस खबर पर पूरी तरह मूक बनी बैठी हैं। उन्हें शायद मालूम भी नहीं है कि पालघर में साधुओं को उनके पोसे नरभक्षियों ने नोच लिया है।
इसके अलावा उनके गिरोह के लोग जो इस घटना पर मुँह खोल रहे हैं, वो अपने कड़ी निंदा में पालघर घटना को मात्र एक घटना की तरह पेश कर रहे है। उनके लिए मारे गए साधू मात्र आम व्यक्ति है, जिनको एक भीड़ ने लिंच कर दिया है। इन लोगों के पास न ही साधुओं को साधू कहने का समय है और न ही मॉब की हकीकत पर कुछ बोलने का। इन्हें न शिवसेना की नाकामयाबी पर बोलना है और न एनसीपी पर जिसके सदस्य खुद इस घटना के दौरान वहाँ मौजूद थे।
गौरतलब है कि बॉलीवुड का पूरा ये धड़ा केवल सोशल मीडिया के जरिए अपने इस अजेंडे को नहीं चलाता। इसके लिए इन्हें मीडिया गिरोह के लोगों का समर्थन प्राप्त होता है। हम कह सकते हैं कि समाज में फर्जी न्यूज फैलाने और बहुसंख्यकों के ख़िलाफ़ माहौल बनाने की प्रक्रिया में ये दो क्षेत्रों के बुद्धिजीवी एक दूसरे के परिपूरक होते हैं। इसलिए इसे भी समझिए जिस समय बॉलीवुड में अनुराग समेत कई लोग या तो इसपर चुप थे या फिर खुद को बैलेंस कर रहे थे उस समय किस तरह मीडिया गिरोह के लोग इस घटना पर चुप्पी साधकर मखौल उड़ा रहे थे।
गौर करिए जब कल ये खबर चारों ओर फैल चुकी थी उस समय मीडिया गिरोह के दिग्गज सोशल मीडिया पर क्या शेयर कर रहे थे। सिद्धार्थ वरदराजन, मीडिया गिरोह के वरिष्ठ पत्रकार और झूठ बनाने की फैक्ट्री ‘द लायर’ के मालिक, जिस समय ये घटना चारों ओर फैल चुकी थी उस समय वर्धराजन तबलीगी जमात से लेकर होशियारपुर के मुस्लिमों की परेशानी उजागर करने में लगे थे।
उनके ख़िलाफ़ हो रहे शोषण का मुद्दा उठा रहे थे। यूपी पुलिस के ख़िलाफ बोल रहे थे। लेकिन एक बार भी उन्होंने इस घटना पर बोलना उचित नहीं समझा। हाँ आज जरूर उन्होंने इस मामले पर ट्वीट किया। मगर अपने अजेंडे के अनुसार खबर को एंगल देकर, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा लीडर इस खबर को साम्प्रदायिक रंग दे रहे हैं।
The victims and perpetrators in Palghar are both from highly marginalised Scheduled Tribes, yet Hindutva political vultures are busy feasting on imaginary tales of “appeasement”, fuelling insecurity among Hindus. https://t.co/6QPJMWlHRI via @thewire_in
— Siddharth (@svaradarajan) April 20, 2020
इसी प्रकार राणा अयूब भी इस घटना के सुर्खियों में आने के बाद भी चुप्पी साधे बैठी रहीं। उन्होंने अपनी टाइमलाइन पर कश्मीर का मुद्दा उठाया। न्यूज़ीलैंड की सबसे प्रभावी लीडर के बारे में बताया। रमजान की खुशबू को महसूस किया। साथ ही मुस्लिमों के ख़िलाफ़ फैलाई जा रही नफरत के ख़िलाफ़ नैतिकता पर सवाल उठाया। मगर मजाल इस ‘जागरूक पत्रकार’ ने इस मुद्दे पर एक बार भी कोई बात की हो। इनके अलावा एक आरजे फहाद भी है जो इस घटना पर बोलते हैं लेकिन इसके पीछे मुस्लिमों की मॉब लिंचिंग को कारण बताते हैं।
Ramzan feels
— Rana Ayyub (@RanaAyyub) April 19, 2020