Saturday, November 30, 2024
Homeविचारराजनैतिक मुद्देआखिर कैसे लिबरल्स के 'पोस्टर बॉय' बन गए तेजस्वी यादव? किस आधार पर माँग...

आखिर कैसे लिबरल्स के ‘पोस्टर बॉय’ बन गए तेजस्वी यादव? किस आधार पर माँग रहे हैं वोट?

तो फिर तेजस्वी को क्या खास बनाता है? लालू का बेटा होना और बीते कुछ दिनों में एक हेलीकॉप्टर की सवारी करते रहना? ये वही हैं, जिन्होंने संसार की समस्त सुविधाएँ मुहैय्या होने के बावजूद, दसवीं पास करने तक की मेहनत न की।

भारतीय ‘लिबरलिज़्म’ का एक नया उभरता चेहरा हैं बिहार के राजद नेता तेजस्वी यादव। कुछ ही हफ़्तों में ये युवक अपनी ‘दिव्य’ कर्मठता से लेकर अपनी विनम्रता, परिपक्वता तथा लोगों की समस्याओं को लेकर अपनी गहरी समझ तक, हर चीज़ के लिए विख्यात हो गए हैं। यह बात है तो रोचक, क्योंकि आमतौर पर ऐसे गुण अर्जित करने में एक पूरा जीवनकाल बीत जाता है। परन्तु तेजस्वी ने जैसे यह सब रातोंरात पा लिया हो।

हालाँकि, एक प्रश्न अनुत्तरित ही रह जाता है। आखिर तेजस्वी वोट माँग किस आधार पर रहे हैं? भारतीय नागरिक होने के नाते तेजस्वी को प्रश्न पूछने का पूर्ण अधिकार है। वे बिहार के मुख्यमंत्री से कोई भी प्रश्न पूछ सकते हैं। परन्तु वह उससे कुछ अधिक कर रहे हैं। वह अपनी पार्टी को एक विकल्प के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं और इसलिए उन्हें अवश्य ही यह बताना चाहिए कि वे किस आधार पर वोट माँग रहे हैं।

तो आखिर आधार है क्या? क्या हैं तेजस्वी के कीर्तिमान?

संयोग से, राजद के कीर्तिमानों का इतिहास है तो सही, परन्तु इतना भयावह की इनके प्रबल समर्थक भी इनका बचाव करने में संकोच करते हैं। कुख्यात जंगलराज और उसके अपराधों तथा अन्यायों की विरासत। क्या कोई भी, मतदाताओं के आँखों में आँखें डालकर एक कारण बता सकता है, जिससे यह सिद्ध होता हो कि राजद के 15 वर्ष उसके बाद आने वाली सरकार से बेहतर रहे हों? बल्कि यथायोग्य, लालू यादव वर्तमान में एक हज़ार करोड़ रुपयों के महाघोटाले में आरोपित भी हैं।

तो क्या इसी आधार पर वोट माँगे जा रहे हैं? यह तो संभव नहीं। बल्कि तेजस्वी स्वयं भी इस आधार पर वोट नहीं चाहते हैं। उनका कहना है कि पिता के अपराधों को पुत्र पर नहीं थोपा जाना चाहिए। चलिए ठीक है, यही माना जाए। इनके समर्थक कहते हैं कि वे उन्हें लालू के 15 वर्षों के आधार पर समर्थन नहीं दे रहे। परन्तु फिर कौनसा आधार है शेष रहता है?

तेजस्वी को क्या अलग बनाता है बिहार के उन करोड़ों युवाओं से? क्यों वही, कोई और नहीं? क्योंकि वे लालू के बेटे हैं, है न? तो हमें लालू का शासनकाल भी भूल जाना चाहिए और किसी को केवल इसलिए वोट दे देना चाहिए कि वह लालू का बेटा है। यह किस प्रकार का तर्क है?

तेजस्वी यादव को भी कुछ समय का कार्यकारी अनुभव है। उन्होनें 18 महीने नीतीश कुमार के सहायक के रूप में बिताए हैं। क्या उन्होनें उन 18 महीनों में कुछ अलग साध लिया? यदि हाँ, तो उनके समर्थक हमें बताते क्यों नहीं? यदि सचमुच कुछ हो, तो तेजस्वी स्वयं ही हमें क्यों नहीं बता देते?

उपमुख्यमंत्री रहते हुए, तेजस्वी के कार्यकाल के विषय में जो हम जानते हैं वो यह कि उन्हें उस दौरान एक सरकारी बँगला आवंटित किया गया था। 2017 में जब राजद की सरकार नहीं रही, तब अपेक्षानुसार तेजस्वी द्वारा उनका सरकारी आवास छोड़ दिया जाना चाहिए था। परन्तु ऐसा हुआ नहीं। इसके उलट, वे स्वयं कई कानूनी चुनौतियाँ दर्ज करवाते रहे। यह तब तक चला, जब तक फ़रवरी 2019 में उच्चतम न्यायलय ने ज़ाहिर निर्णय न सुना दिया कि तेजस्वी को वह आवास छोड़ना ही होगा। क्या यही है वह आधार जिस पर तेजस्वी वोट माँग रहे हैं?

तो किस प्रकार तेजस्वी ने कर्मठ और लोगों की समस्याओं के प्रति सजग होने की प्रतिष्ठा अर्जित की? क्या वे बीते कुछ हफ़्तों में राज्य भ्रमण कर रहे थे? कैसे बने वे राजद के नेता? क्या उन्होनें राजद का वास्तविक नेता घोषित होने के लिए इसके अन्य नेताओं से किसी संघर्ष में विजय हासिल की?

तो फिर तेजस्वी को क्या खास बनाता है? लालू का बेटा होना और बीते कुछ दिनों में एक हेलीकॉप्टर की सवारी करते रहना? ये वही हैं, जिन्होंने संसार की समस्त सुविधाएँ मुहैय्या होने के बावजूद, दसवीं पास करने तक की मेहनत न की।

अचानक कैसे बन गए तेजस्वी परिश्रम तथा कर्मठता के पोस्टर बॉय? क्या ये उन सब का अपमान नहीं है, जो जीवन में कुछ पाने के लिए दिन रात परिश्रम करते हैं?

इस आर्थिक जगत में सदा हमें सचेत किया जाता है कि अतीत में किए गए कार्य भविष्य के परिणामों को सुनिश्चित नहीं करते। लुटियन्स दिल्ली से आने वाली सामयिक सूचना ने इस परम्परागत अस्वीकरण को पलट कर रख दिया है। यदि आप अपने मत को एक निवेश के रूप में देखते हैं, तो आपको यह बताया जा रहा है कि अतीत की असफलता ही दरअसल भविष्य की सफलता का आश्वासन है। तो कीजिए निवेश…

क्या आप अपना एक सफल व्यापार चाहते हैं? तो कृपया ऐसे किसी पर निवेश करें जिसके पिता व्यापार में असफल रहे हों। जानना चाहेंगे कि कौन बन सकता है एक सफल इंजीनियर? तो किसी ऐसे को खोजिए, जिसके पिता एक असफल इंजीनियर रहे हों या कभी इंजीनियर बन ही न पाए हों।

संक्षेप में कहें, तो यही है भारत के कुलीन वर्ग का सामूहिक ज्ञान। इससे मुझे एक हास्य गल्प याद आता है:

एक व्यक्ति, किसी बिल्डर से घर खरीदने जाता है और बिल्डर से पूछता है कि कहीं घर गिरने का खतरा तो नहीं होगा? ‘बेफिक्र रहें’, बिल्डर आश्वासन देता है कि उसके बनाए हुए घरों के गिरने की संभावनाएँ केवल 50 प्रतिशत ही होती हैं। व्यक्ति को शंका होती है। फिर बिल्डर समझाता है कि उसके बनाये हुए 50 प्रतिशत घर तो पहले ही गिर चुके हैं, जिसका अर्थ यह है कि जो घर आप खरीदेंगे वह पूरी तरह सुरक्षित है।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

खाने को सूअर का मांस, पीने को टॉयलेट का पानी… भारतीयों को बंधक बना रहा ‘थाइलैंड ड्रीम्स’, मगरमच्छ के सामने भी देते हैं डाल:...

भारतीय विदेश मंत्रालय ने बताया है कि वह नौकरी के नाम पर म्यांमार ले जाए गए 400 से अधिक लोगों को इन स्कैम सेंटर से बचा कर ला चुका है।

मस्जिद पर निचली अदालतें चुप रहे, कुरान पर हाई कोर्ट… वरना दंगे होंगे, गिरेंगी लाशें: ‘कलकत्ता कुरान’ मामले में एक CM ने हजारों की...

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट को चिट्ठी लिखकर चेतावनी दी है कि मस्जिदों का सर्वे जारी रहा तो संभल की तरह हिंसा भड़क सकती है।
- विज्ञापन -